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सुदामा पाण्डेय धूमिल
- धूमिल ( 9 नवम्बर 1936-10 फरवरी 1975) का जन्म वाराणसी के पास खेवली गांव में हुआ था।
- उनका मूल नाम सुदामा पांडेय था।
- उनके पिता का नाम पंडित शिवनायक था और माँ का नाम रसवंती देवी था ।
- सन् 1958 में आई टी आई (वाराणसी) से विद्युत डिप्लोमा लेकर वे वहीं विदयुत अनुदेशक बन गये।
- 38 वर्ष की अल्पायु में ही ब्रेन ट्यूमर से उनकी मृत्यु हो गई।
- उनकी कविताओं में आजादी के सपनों के मोहभंग की पीड़ा और आक्रोश की सबसे सशक्त अभिव्यक्ति मिलती है।
- व्यवस्था जिसने जनता को छला है, उसको आइना दिखाना मानों धूमिल की कविताओं का परम लक्ष्य है।
- उन्हें मरणोपरांत 1979 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।
सुदामा पाण्डेय धूमिल की प्रमुख रचनाएं:-
- संसद से सड़क तक-1972 ( प्रथम काव्य संग्रह)
- कल सुनना मुझे-1976 (साहित्य अकादमी पुरस्कार 1979 ई.)
- सुदामा पांडे का प्रजातंत्र ( इस रचना की भूमिका विद्यानिवास मिश्र ने लिखी है)
प्रसिद्ध कविताएं:-
- मोचीराम (मोचीराम इनकी सर्वश्रेष्ठ कविता है)
- पटकथा (भारतीय लोकतंत्र की त्रासदी के बारे में)
- रोटी और संसद
- नक्सलबाड़ी
- अकाल दर्शन
- भाषा की रात
- जनतन्त्र के सूर्योदय में
- अकाल-दर्शन
- वसन्त
- एकान्त-कथा
- शान्ति पाठ
- उस औरत की बगल में लेटकर
- कुत्ता
- शहर में सूर्यास्त
- एक आदमी
- सच्ची बात
- पटकथा
- बीस साल बाद
- मोचीराम
- गाँव
- कविता के द्वारा हस्त्तक्षेप
- अंतर
- दिनचर्या
- नगर-कथा
- गृहस्थी : चार आयाम
- उसके बारे में
- किस्सा जनतंत्र
- एक कविता: कुछ सूचनाएं
- रोटी और संसद
- खेवली
- लोहे का स्वाद (अंतिम कविता)
- सुदामा पाण्डे का प्रजातंत्र (एक)
- सुदामा पाण्डे का प्रजातंत्र (दो)
- ट्यूशन पर जाने से पहले
- न्यू ग़रीब हिन्दू होटल
- कविता के भ्रम में
- बसंत से बातचीत का एक लम्हा
- घर में वापसी
- मुक्ति का रास्ता
- चुनाव
- सिलसिला
- हरित क्रांति
- वापसी
- लोहसाँय
- रात्रि-भाषा
- भूख
- प्रस्ताव
- मैमन सिंह
- लोकतंत्र
- मैंने घुटने से कहा
- पत्नी के लिए
- सत्यभामा
- पुरबिया सूरज
- पाँचवे पुरखे की कथा
- स्त्री
व्यंग्यात्मक निबंध:-
“चार घोंघे”शीर्षक से (विनियोग पत्रिका में प्रकाशित)
सुदामा पाण्डेय धूमिल के बारे में विशेष तथ्य
- मुक्तिबोध के बाद सर्वाधिक विद्रोही और बेबाक कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं।
- धूमिल हिंदी कविता में एंग्री यंग मैन के रूप में विख्यात है।
- इन्होंने आम आदमी को कविता मिला कर खड़ा किया है।
- धूमिल का उदय धूमकेतु की तरह होता है जिसमें अग्नि भी हैं, धुआं भी।धुआं आधुनिकता है और अग्नि प्रगतिशील चेतना।[#बच्चन_सिंह]
- धूमिल का काव्य स्वाधीन भारत की हिंदी कविता की नक्सलबाड़ी है:-[#रामकृपाल_पांडे]
- उनके आने तक आलोचना का मुंह कहानी की ओर था।वह आया और आलोचना का मुँह कविता की ओर कर दिया:-[#काशीनाथ_सिंह]
सुदामा पाण्डेय धूमिल की रचनात्मक विशेषताएं :-
- सन 1960 के बाद की हिंदी कविता में जिस मोहभंग की शुरूआत हुई थी, धूमिल उसकी अभिव्यक्ति करने वाले अंत्यत प्रभावशाली कवि हैं ।
- उनकी कविता में परंपरा, सभ्यता, सुरुचि, शालीनता और भद्रता का विरोध है, क्योंकि इन सबकी आड़ में जो हृदय पलता है, उसे धूमिल पहचानते हैं।
- कवि धूमिल यह भी जानते हैं कि व्यवस्था अपनी रक्षा के लिये इन सबका उपयोग करती है, इसलिये वे इन सबका विरोध करते हैं। इस विरोध के कारण उनकी कविता में एक प्रकार की आक्रामकता मिलती है। किंतु उससे उनकी कविता की प्रभावशीलता बढती है।
- धूमिल अकविता आन्दोलन के प्रमुख कवियों में से एक हैं। धूमिल अपनी कविता के माध्यम से एक ऐसी काव्य भाषा विकसित करते हैं जो नई कविता के दौर की काव्य- भाषा की रुमानियत, अतिशय कल्पनाशीलता और जटिल बिंबधर्मिता से मुक्त है। उनकी भाषा काव्य-सत्य को जीवन सत्य के अधिकाधिक निकट लाती है।
कविता क्या है ? धूमिल इसको 'आदमी होने की तमीज़' कहते हैं
कविताभाषा में आदमी होने की तमीज़ है ।और धूमिल कविता को एक सार्थक वक्तव्य कहते हैं
एक सही कविता पहले एक सार्थक वक्तव्य होती है ।लेकिन आज के हालात में कविता की भूमिका बदल गयी है
कविता घेराव में किसी बौखलाये हुये आदमी का संक्षिप्त एकालाप है ।तथा कविता शब्दों की अदालत में अपराधियों के कटघरे में खड़े एक निर्दोष आदमी का हलफ़नामा है ।
वह हँसते हुये बोला
बाबूजी, सच कहूँ
मेरी निगाह मेंन कोई छोटा है,
न कोई बड़ा है मेरे लिये,
हर आदमी एक जोड़ी जूता है
जो मेरे सामने मरम्मत के लिये खड़ा है।…..
धूमिल की कविता ‘मोचीराम’ में जातिवादी समाज का यथार्थपरक चित्रण है