सोमप्रभ सूरि का साहित्यिक परिचय

सोमप्रभ सूरि––ये भी एक जैन पंडित् थे। इन्होंने संवत् 1241 में “कुमारपालप्रतिबोध” नामक एक गद्यपद्यमय संस्कृत-प्राकृत-काव्य लिखा जिसमें समय समय पर हेमचंद्र द्वारा कुमारपाल को अनेक प्रकार के उपदेश दिए जाने की कथाएँ लिखी हैं। यह ग्रंथ अधिकांश प्राकृत में ही है––बीच बीच में संस्कृत श्लोक और अपभ्रंश के दोहे आए हैं।

अपभ्रंश के पद्यों में कुछ तो प्राचीन हैं और कुछ सोमप्रभ और सिद्धिपाल कवि के बनाए हैं। प्राचीन में से कुछ दोहे दिए जाते है––

रावण जायउ जहि दिअहि दह मुह एक सरीरु।
चिंताविय तइयहि जणणि कवणु पियवउँ खीरु॥

(जिस दिन दस मुँह एक शरीरवाला रावण उत्पन्न हुआ तभी माता चिंतित हुई कि किसमें दूध पिलाऊँ।)

You might also like
Leave A Reply