यहाँ पर सिद्ध साहित्य कवि व उनके रचनाओं की सूची दिया गया हैं जो आपके विविध परीक्षाओं के दृष्टिकोण से बेहद उपयोगी साबित हो सकती हैं.

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सिद्ध साहित्य
बौद्ध धर्म के वज्रयान तत्व का प्रचार करने के लिए जो साहित्य देश भाषा (जनभाषा) में लिखा गया वही सिद्ध साहित्य कहलाता है .
84 सिद्धों के नाम
राहुल संकृत्यायन ने 84 सिद्धों के नामों का उल्लेख किया है जिनमें सिद्ध ‘सरहपा’ से यह साहित्य आरंभ होता है |

- लूहिपा,
- लोल्लप,
- विरूपा,
- डोम्भीपा,
- शबरीपा,
- सरहपा,
- कंकालीपा,
- मीनपा,
- गोरक्षपा,
- चोरंगीपा,
- वीणापा,
- शांतिपा,
- तंतिपा,
- चमरिपा,
- खंड्पा,
- नागार्जुन,
- कराहपा,
- कर्णरिया,
- थगनपा,
- नारोपा,
- शलिपा,
- तिलोपा,
- छत्रपा,
- भद्रपा,
- दोखंधिपा,
- अजोगिपा,
- कालपा,
- घोम्भिपा,
- कंकणपा,
- कमरिपा,
- डेंगिपा,
- भदेपा,
- तंघेपा,
- कुकरिपा,
- कुसूलिपा,
- धर्मपा,
- महीपा,
- अचिंतिपा,
- भलहपा,
- नलिनपा,
- भुसुकपा,
- इन्द्रभूति,
- मेकोपा,
- कुड़ालिया,
- कमरिपा,
- जालंधरपा,
- राहुलपा,
- धर्मरिया,
- धोकरिया,
- मेदिनीपा,
- पंकजपा,
- घटापा,
- जोगीपा,
- चेलुकपा,
- गुंडरिया,
- लुचिकपा,
- निर्गुणपा,
- जयानंत,
- चर्पटीपा,
- चंपकपा,
- भिखनपा,
- भलिपा,
- कुमरिया,
- जबरिया,
- मणिभद्रा,
- मेखला,
- कनखलपा,
- कलकलपा,
- कंतलिया,
- धहुलिपा,
- उधलिपा,
- कपालपा,
- किलपा,
- सागरपा,
- सर्वभक्षपा,
- नागोबोधिपा,
- दारिकपा,
- पुतलिपा,
- पनहपा,
- कोकालिपा,
- अनंगपा,
- लक्ष्मीकरा,
- समुदपा
- भलिपा।
सिद्ध साहित्य कवि व उनके रचना
- सरहपा- (769 ई.)- दोहाकोश
- लुइपा (773 ई.लगभग)- लुइपादगीतिका
- शबरपा (780 ई.) -१ चर्यापद , २ महामुद्रावज्रगीति , ३ वज्रयोगिनीसाधना
- कण्हपा (820 ई. लगभग)- १ चर्याचर्यविनिश्चय. २ कण्हपादगीतिका
- डोंभिपा (840 ई. लगभग)- १डोंबिगीतिका, २ योगचर्या, ३ अक्षरद्विकोपदेश
- भूसुकपा- बोधिचर्यावतार
- आर्यदेवपा – कावेरीगीतिका
- कंवणपा – चर्यागीतिका
- कंबलपा – असंबंध-सर्ग दृष्टि
- गुंडरीपा – चर्यागीति
- जयनन्दीपा – तर्क मुदँगर कारिका
- जालंधरपा – १ वियुक्त मंजरी गीति, २ हुँकार चित्त , ३ भावना क्रम
- दारिकपा – महागुह्य तत्त्वोपदेश
- धामपा – सुगत दृष्टिगीतिकाचर्या
सिद्ध साहित्य की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि, ” जो जनता तात्कालिक नरेशों की स्वेच्छाचारिता, पराजय या पतंग से त्रस्त होकर निराशा के गर्त में गिरी हुई थी, उनके लिए इन सिद्धों की वाणी ने संजीवनी बूंटी का कार्य किया |
हजारी प्रसाद द्विवेदी
सिद्ध साहित्य की प्रमुख विशेषताएं:-
तंत्र साधना पर अधिक बल दिया गया |
साधना पद्धति में शिव शक्ति के युगल रूप की उपासना की जाती है |
जाति प्रथा एवं वर्णभेद व्यवस्था का विरोध किया गया |
ब्राह्मण धर्म एवं वैदिक धर्म का खंडन किया गया है |
पंच मकार की दुष्प्रवृति देखने को मिलती है यथा-
- मांस,
- मछली,
- मदिरा,
- मुद्रा,
- मैथुन |
सिद्ध साहित्य के 3 श्रेणी
- नीति या आचार संबंधित साहित्य
- उपदेश परक साहित्य
- साधना संबंधी या रहस्यवादी साहित्य
चरिया गीत/ चर्यागीत किसे कहते है ?
साधना अवस्था से निकली सिद्धों की वाणी ‘चरिया गीत/ चर्यागीत’ कहलाती है |
सिद्ध साहित्य का विस्तार कहाँ तक था ?
सिद्ध साहित्य बिहार से लेकर आसाम तक फैला था ।