मैथिलीशरण गुप्त का साहित्यिक परिचय

मैथिलीशरण गुप्त का साहित्यिक परिचय (1886-1964) – इनका जन्म चिरगांव (झांसी) में हुआ था। ये द्विवेदी काल के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि थे। द्विवेदी के स्नेह और प्रोत्साहन से इनकी काव्य-कला में निखार आया। इनकी प्रथम पुस्तक ‘रंग में भंग’ (1909) है किन्तु इनकी ख्याति का मूलाधार ‘भारत-भारती’ (1912) है।

  • श्री मैथिलीशरण गुप्त की सुप्रसिद्ध काव्यकृति ‘भारत-भारती’ 1914 में प्रकाशित हुआ।
  • साहित्यजगत में दद्दा के नाम से प्रसिद्ध
  • जन्म उत्तर प्रदेश की चिरगांव, ज़िला झांसी में
  • 12 वर्ष की उम्र में उन्होंने ब्रज भाषा में ‘कनकलता’ नाम से कविताएं लिखनी शुरू कर दी थी।
  • इनका प्रथम काव्य संग्रह “रंग में भंग” तथा वाद में “जयद्रथ वध” प्रकाशित हुआ।
मैथिलीशरण गुप्त का साहित्यिक परिचय

मैथिलीशरण गुप्त का साहित्यिक परिचय

मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त 1886 में पिता सेठ रामचरण कनकने और माता काशी बाई की तीसरी संतान के रूप में उत्तर प्रदेश में झांसी के पास चिरगांव में हुआ। माता और पिता दोनों ही वैष्णव थे।

पुरस्कार व सम्मान :

  • 1936 में साहित्य सम्मेलन प्रयाग से ‘साकेत’ के लिए ‘मंगला प्रसाद’ पुरस्कार।
  • 1946 में साहित्य सम्मेलन प्रयाग से साहित्य वाचस्पति का सम्मान।
  • 1948 में लखनऊ विश्वविद्यालय से मानद्‌डि.लिट. की उपाधि से विभूषित।
  • 1952 से 1964 तक राज्यसभा के मनोनित सदस्य।
  • 1953 में भारत सरकार द्वारा पद्मविभूषण से सम्मानित किए गए।

रचनाएं :

महाकाव्य- साकेत, यशोधरा

खण्डकाव्य- जयद्रथ वध, भारत-भारती, पंचवटी, द्वापर, सिद्धराज, नहुष, अंजलि और अर्घ्य, अजित, अर्जन और विसर्जन, काबा और कर्बला, किसान, कुणाल गीत, गुरु तेग बहादुर, गुरुकुल , जय भारत, युद्ध, झंकार , पृथ्वीपुत्र, वक संहार , शकुंतला, विश्व वेदना, राजा प्रजा, विष्णुप्रिया, उर्मिला, लीला[ग], प्रदक्षिणा, दिवोदास , भूमि-भाग

नाटक – रंग में भंग , राजा-प्रजा, वन वैभव , विकट भट , विरहिणी , वैतालिक, शक्ति, सैरन्ध्री , स्वदेश संगीत, हिड़िम्बा , हिन्दू, चंद्रहास

मैथिलीशरण गुप्त ग्रन्थावली

फुटकर रचनाएँ- केशों की कथा, स्वर्गसहोदर, ये दोनों मंगल घट (मैथिलीशरण गुप्त द्वारा लिखी पुस्तक) में संग्रहीत हैं।

अनूदित (मधुप के नाम से)-

संस्कृत- स्वप्नवासवदत्ता, प्रतिमा, अभिषेक, अविमारक (भास) (गुप्त जी के नाटक देखें), रत्नावली (हर्षवर्धन)

बंगाली- मेघनाथ वध, विहरिणी वज्रांगना (माइकल मधुसूदन दत्त), पलासी का युद्ध (नवीन चंद्र सेन)

फारसी- रुबाइयात उमर खय्याम (उमर खय्याम) [घ]

काविताओं का संग्रह – उच्छवास

पत्रों का संग्रह – पत्रावली

काव्य विशेषताएँ

उत्तर-भारत में राष्ट्रीयता के प्रचार और प्रसार में ‘भारत-भारती‘ के योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता। ‘भारत-भारती’ ने हिंदी-मनीषियों में जाति और देश के प्रति गर्व और गौरव की भावनाएँ उत्पन्न की और तभी से ये राष्ट्रकवि के रूप में विख्यात हुए। ये रामभक्त कवि भी थे। ‘मानस’ के पश्चात् हिंदी में रामकाव्य का दूसरा स्तम्भ इनके द्वारा रचित ‘साकेत’ ही है। खड़ीबोली के स्वरूप-निर्धारण और विकास में इनका अन्यतम योगदान है।

गुप्त जी के काव्य की विशेषताएँ इस प्रकार उल्लेखित की जा सकती हैं

(१) राष्ट्रीयता और गांधीवाद की प्रधानता
(२) गौरवमय अतीत के इतिहास और भारतीय संस्कृति की महत्ता
(३) पारिवारिक जीवन को भी यथोचित महत्ता
(४) नारी मात्र को विशेष महत्व
(५) प्रबन्ध और मुक्तक दोनों में लेखन
(६) शब्द शक्तियों तथा अलंकारों के सक्षम प्रयोग के साथ मुहावरों का भी प्रयोग
(७) पतिवियुक्ता नारी का वर्णन

भाषा शैली

मैथिलीशरण गुप्त की काव्य भाषा खड़ी बोली है। शैलियों आप ने विविधता दिखाई, किन्तु प्रधानता प्रबन्धात्मक इतिवृत्तमय शैली की है।

मैथिलीशरण गुप्त का जयद्रथ वध

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