वल्लभाचार्य का साहित्यिक परिचय

श्रीवल्लभाचार्यजी को वैश्वानरावतार (अग्नि का अवतार) कहा गया है। वे वेदशास्त्र में पारंगत थे। वर्तमान में इसे वल्लभसम्प्रदाय या पुष्टिमार्ग(pushtimarg) सम्प्रदाय के नाम से जाना जाता है। और वल्लभसम्प्रदाय वैष्णव सम्प्रदाय अन्तर्गत आते हैं।

वल्लभाचार्य का साहित्यिक परिचय - 25 04 2022 mahaprabhu vallabhacharya 22658477 - हिन्दी साहित्य नोट्स संग्रह

वल्लभाचार्य का साहित्यिक परिचय

श्रीवल्लभाचार्यजी (1479-1531) का प्रादुर्भाव विक्रम संवत् 1535, वैशाख कृष्ण एकादशी को दक्षिण भारत के कांकरवाड ग्रामवासी तैलंग ब्राह्मण श्रीलक्ष्मणभट्टजी की पत्नी इलम्मागारू के गर्भ से हुआ।

वल्लभाचार्य की रचनाएँ

श्री वल्लभाचार्य ने अनेक भाष्यों, ग्रंथों, नामावलियों, एवं स्तोत्रों की रचना की है, जिनमें प्रमुख निम्नलिखित ये सोलह सम्मिलित हैं, जिन्हें ‘षोडश ग्रन्थ’ के नाम से जाना जाता है –

१. यमुनाष्टक
२. बालबोध
३. सिद्धान्त मुक्तावली
४. पुष्टिप्रवाहमर्यादाभेद
५. सिद्धान्तरहस्य
६. नवरत्नस्तोत्र
७. अन्तःकरणप्रबोध
८. विवेकधैर्याश्रय
९. श्रीकृष्णाश्रय
१०. चतुःश्लोकी
११. भक्तिवर्धिनी
१२. जलभेद
१३. पंचपद्यानि
१४. संन्यासनिर्णय
१५. निरोधलक्षण
१६. सेवाफल

वल्लभाचार्य की वर्ण्य विषय

श्री वल्लभाचार्यजी के चौरासी शिष्यों के अलावा अनगिनत भक्त, सेवक और अनुयायी थे। उनके पुत्र श्रीविट्ठलनाथजी (गुसाईंजी) ने बाद में उनके चार प्रमुख शिष्यों – भक्त सूरदास, कृष्णदास, परमानन्द दास और कुम्भनदास, तथा अपने स्वयं के चार शिष्यों – नन्ददास, छीतस्वामी, गोविन्दस्वामी तथा चतुर्भुजदास, जो सभी श्रेष्ठ कवि तथा कीर्तनकार भी थे, का एक समूह स्थापित किया जो “अष्टछाप” कवि के नाम से प्रसिद्ध है। सूरदासजी की सच्ची भक्ति एवं पद-रचना की निपुणता देख अति विनयी सूरदासजी को भागवत् कथा श्रवण कराकर भगवल्लीलागान की ओर उन्मुख किया तथा उन्हें श्रीनाथजीके मन्दिर की की‌र्त्तन-सेवा सौंपी।

वल्लभाचार्य जी का लेखन कला

श्रीवल्लभाचार्यजी के मतानुसार तीन स्वीकार्य तत्त्‍‌व हैं- ब्रह्म, जगत् और जीव। ब्रह्म के तीन स्वरूप वर्णित हैं- आधिदैविक, आध्यात्मिक एवं अंतर्यामी रूप। अनंत दिव्य गुणों से युक्त पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण को ही परब्रह्म स्वीकारते हुए उनके मधुर रूप एवं लीलाओं को ही जीव में आनंद के आविर्भाव का स्रोत माना गया है। जगत् ब्रह्म की लीला का विलास है। संपूर्ण सृष्टि लीला के निमित्त ब्रह्म की आत्म-कृति है।

वल्लभाचार्य जी साहित्य में स्थान

श्रीवल्लभाचार्यजी (1479-1531) भक्तिकालीन सगुणधारा की कृष्णभक्ति शाखा के आधारस्तंभ एवं पुष्टिमार्ग के प्रणेता थे।

You might also like
Leave A Reply