श्रीधर पाठक का साहित्यिक परिचय

श्रीधर पाठक जी का साहित्यिक जीवन परिचय

श्रीधर पाठक (11 जनवरी 1858 – 13 सितंबर 1928 )का जन्म उत्तर प्रदेश में जौंवरी नाम गांव, तहसील-फ़िरोजाबाद, जिला- आगरा में पंडित लीलाधर के घर हुआ। वे हिंदी साहित्य सम्मेलन के पाँचवें अधिवेशन (1915, लखनऊ) के सभापति हुए और ‘कविभूषण’ की उपाधि से विभूषित भी।

श्रीधर पाठक जी की रचनाएँ

इनकी रचनाये क्रमशः इस तरह हैं : मनोविनोद 1882 (भाग-1,2,3), एकांतवासी योगी (1886) , जगत सचाई सार (1887) , धन विनय (1900), गुनवंत हेमंत (1900), वनाष्टक (1912), देहरादून (1915), गोखले गुनाष्टक (1915), सांध्य अटन (1918) इत्यादि।

अन्य रचनाएँ हैं- बाल भूगोल, काश्मीरसुषमा (1904) , आराध्य शोकांजलि (1905; पिता की मृत्यु पर ) , जार्ज वंदना (1912) , भक्ति विभा, श्री गोखले प्रशस्ति (1915) , श्रीगोपिकागीत, भारतगीत (1928) , तिलस्माती मुँदरी और विभिन्न स्फुट निबंध तथा पत्रादि।

इनकी मौलिक खड़ी बोली हिन्दी की पहली रचना गुनवंत हेमंत (1900) है। एकांतवासी योगी ख्याल/लावनी शैली में लिखी गई रचना है। 

श्रीधर पाठक जी का वर्ण्य विषय

श्रीधर पाठक प्राकृतिक सौंदर्य, स्वदेश प्रेम तथा समाजसुधार की भावनाओ के हिन्दी कवि थे। वे प्रकृतिप्रेमी, सरल, उदार, नम्र, सहृदय, स्वच्छंद तथा विनोदी थे। उनके काव्य की विशेषताएँ हैं – सहज प्रकृतिचित्रण, वैयक्तिक अनुभूति, राष्ट्रीयता, नए छंदों, लयों और बंदिशों की खोज, विषयप्रधान दृष्टि, नवीन भावप्रकाशन की क्षमता से भरकर नवीन भाषाप्रयोग, प्राच्य और पाश्चात्य तथा पुराने और नए का समन्वय।

श्रीधर पाठक जी का लेखन कला

हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी पर उनका समान अधिकार था। पाठक जी मौलिक उद्भावनाओं के कवि हैं। विषय और शिल्प दोनों ही दृष्टियों से आधुनिक हिंदी काव्य को एक नया मोड़ देने के कारण उन्हें स्वच्छंद भावधारा का सच्चा प्रवर्तक ठहराया गया। 

श्रीधर पाठक जी साहित्य में स्थान

सफल काव्यानुवादों द्वारा उन्होंने हिंदी को नई दृष्टि देने का प्रयत्न किया। यद्यपि उन्होंने ब्रजभाषा और खड़ीबोली दोनों में रचनाएँ कीं तथापि समर्थक वे खड़ीबोली के ही थे।

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