लौकिक पद्य साहित्य

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लौकिक पद्य साहित्य

प्रमुख रचनाएं

ढोला मारू रा दूहा –

  • यह रचना सर्वप्रथम 1473 ईस्वी में *’कल्लोल कवि’* द्वारा रची गई थी बाद में जैन कवि ‘कुशललाभ’ के द्वारा 1561 में रची गई|
  • इसकी भाषा शैली डिंगल हैं

कवि विद्यापति-

पदावली* (1380 ई.),कीर्तिलता (1403 ई.),कीर्तिपताका (1403 ई.)

  • इनकी पदावली रचना मैथिली भाषा तथा कीर्ति लता एवं कीर्तिपताका में अवहट्ठ भाषा का प्रयोग हुआ है |
  • मैथिली भाषा में सरस काव्य रचना करने के कारण इनको ‘मैथिली कोकिल’ भी कहा जाता हैं
  • इनको अभिनव जयदेव भी कहा जाता है
  • इनको नव कवि शेखर भी कहा जाता है
  • ये तिरहूत के राजा ‘शिवसिंह’ दरबारी कवि है
  • ये शैव मतानुयायी माने जाते है
  • कीर्तिलता पुस्तक में तिरहूत के राजा कीर्तिसिंह की वीरता उदारता गुणग्राहकता आदि का वर्णन हैं
  • कीर्तिलता रचना में जौनपुर राज्य का रोचक वर्णन है
  • कीर्तिपताका पुस्तक में राजा शिवसिंह की वीरता उदारता एवं गुणग्राहिता का वर्णन हैं
  • हिंदी में कृष्ण को काव्य का विषय बनाने का श्रेय विद्यापति को ही दिया जाता है
  • हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कीर्तिलता रचना को ‘ भृंग-भृंगी संवाद’ कहा है
  • रामचंद्र शुक्ल ने विद्यापति को शुद्ध श्रृंगारी कवि माना है

जयचंद_प्रकाश- भट्ट केदार

जयमयंक_जस_चंद्रिका- मधुकर कवि(1186 ईसवी)

वसंत_विलास – अज्ञात

  • यह रचना सर्वप्रथम 1952 ईस्वी में ‘हाजी मोहम्मद स्मारक ग्रंथ’ में प्रकाशित हुई थी|
  • श्री केशवलाल हर्षादराय ध्रुव इसके प्रथम संपादक थे|

रणमल_छंद- श्रीधर व्यास (1454 ई.)

राउलवेल-रोडा़ कवि एक शिलांकित चम्पू काव्य हैं (गद्य पद्य मिश्रित)

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