लौकिक गद्य साहित्य(laukik gady saahity)
राउलवेल-रोडा कवि (10वीं शताब्दी)
- – यह रचना सर्वप्रथम शिलाओं पर रची गई थी|
- -मुंबई की प्रिंस ऑव् वेल्स संग्रहालय से इसका पाठ उपलब्ध करवा कर प्रकाशित करवाया गया था|
- – यह हिंदी साहित्य की प्राचीनतम गद्य-पद्य मिश्रित रचना (चंपू काव्य) मानी जाती है|
- – इस रचना में ‘राउल’ नामक नायिका के सौंदर्य का नख-शिख वर्णन पहले पद्य में तदुपरांत गद्य में किया गया था|
- – हिंदी में नखशिख वर्णन की श्रृंगार परंपरा का आरंभ इसी रचना से माना जाता है|
- – इसकी भाषा में हिंदी की सात बोलियों के शब्द प्राप्त होते हैं, जिनमें राजस्थानी प्रधान हैं|
- – इसका शिलांकित रूप मुंबई के म्यूजियम में सुरक्षित है|
laukik gady saahity
उक्ति व्यक्ति प्रकरण-पं. दामोदर शर्मा (12वीं शताब्दी)
- – पंडित दामोदर शर्मा महाराजा गोविंदचंद्र (1154ई.) के सभा पंडित थे|
- – इस रचना में बनारस और उसके आसपास के प्रदेशों की संस्कृति और भाषा पर प्रकाश डाला गया है|
- – इस रचना को पढ़ने से यह मालूम चलता है कि उस समय गद्य पद्य दोनों काव्यों में तत्सम शब्दावली का प्रयोग बढ़ने लगा था एवं व्याकरण पर भी ध्यान दिया जाने लगा था|
laukik gady saahity
वर्ण रत्नाकर-ज्योतिरीश्वर ठाकुर
- – रचना काल- चौदहवीं शताब्दी (आचार्य द्विवेदी के अनुसार)
- – ज्योतिरीश्वर ठाकुर मैथिली भाषा के कवि थे|
- – इस रचना का प्रकाशन सुनीत कुमार चटर्जी में पंडित बबुआ मिश्र के द्वारा बंगाल एशियाटिक सोसाइटी के माध्यम से करवाया गया था|
- – इस रचना की भाषा शैली को देखने से यह एक शब्दकोश-सा प्रतीत होती है|
- – इसे मैथिली का विश्वकोष भी कहा जाता हैं