कारक

संज्ञा या सर्वनाम के आगे जब ‘ने’, ‘को’, ‘से’ आदि विभक्तियाँ लगती हैं, तब उनका रूप ही ‘कारक’ कहलाता हैं।

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कारक

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उनका (संज्ञा या सर्वनाम का) सम्बन्ध सूचित हो, उसे (उस रूप को) ‘कारक’ कहते हैं।

परिभाषा

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उनका (संज्ञा या सर्वनाम का) क्रिया से सम्बन्ध सूचित हो, उसे (उस रूप को) ‘कारक’ कहते हैं।

दूसरे शब्दों में- संज्ञा अथवा सर्वनाम को क्रिया से जोड़ने वाले चिह्न अथवा परसर्ग ही कारक कहलाते हैं।

जैसे- ”रामचन्द्रजी ने खारे जल के समुद्र पर बन्दरों से पुल बँधवा दिया।”
इस वाक्य में ‘रामचन्द्रजी ने’, ‘समुद्र पर’, ‘बन्दरों से’ और ‘पुल’ संज्ञाओं के रूपान्तर है, जिनके द्वारा इन संज्ञाओं का सम्बन्ध ‘बँधवा दिया’ क्रिया के साथ सूचित होता है।

दूसरा उदाहरण-
श्रीराम ने रावण को बाण से मारा
इस वाक्य में प्रत्येक शब्द एक-दूसरे से बँधा है और प्रत्येक शब्द का सम्बन्ध किसी न किसी रूप में क्रिया के साथ है।

यहाँ ‘ने’ ‘को’ ‘से’ शब्दों ने वाक्य में आये अनेक शब्दों का सम्बन्ध क्रिया से जोड़ दिया है। यदि ये शब्द न हो तो शब्दों का क्रिया के साथ तथा आपस में कोई सम्बन्ध नहीं होगा। संज्ञा या सर्वनाम का क्रिया के साथ सम्बन्ध स्थापित करने वाला रूप कारक होता है।

कारक के भेद-

हिन्दी में कारको की संख्या 8 है-
(1)कर्ता कारक
(2)कर्म कारक
(3)करण कारक
(4)सम्प्रदान कारक
(5)अपादान कारक
(6)सम्बन्ध कारक
(7)अधिकरण कारक
(8)संबोधन कारक

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