द्विवेदी युग के प्रमुख कवि
- द्विवेदी युग का समय – 1900 से 1920 तक
- नग्रेन्द्र के अनुसार – 1900- 1918 तक
- भारतीय जनमानस में स्वदेश प्रेम एवं नवजागरण के जे बीज भारतेन्दु युग में अंकुरित हुए थे वे द्विवेदी युग में पूर्ण पल्लवित होकर सामने आए।
- इस युग का नामकरण ‘आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी’ के नाम पर है।
- इस काल में काव्य भाषा के रूप में ब्रज भाषा का स्थान ‘खड़ी बोली हिन्दी’ ने लिया।
- द्विवेदी जी ने भाषा संस्कार, व्याकरण, शुद्धि, विराम-चिन्हों के प्रयोग द्वारा हिन्दी को परिनिष्ठित करने का कार्य किया।
- संस्कृत छंदो की उपयोगिता बताकर द्विवेदी जी ने छंदो में क्रांति लाने का कार्य किया तथा ‘‘कवित सवैया’’ का बहिष्कार किया।
- हिन्दी कविता को प्राचीन रूढि़बद्धता से अलग करने में द्विवेदी युग के कवियों का विशेष योगदान रहा।
- भारतेन्दु कालीन साहित्यकार जहां भारत दुर्दशा पर दुःख प्रकट करके रह गए थे वहीं द्विवेदी युग के कवियों ने स्वतंत्रता प्राप्ति की प्रेरणा भी दी।
- इस काल में मातृभूमि प्रेम, स्वदेश गौरव, सामाजिक विषय आदर्शवाद आदि को कविता में स्थान मिला।
- द्विवेदी के प्रभाव से श्रीधर पाठक, नाथूराम शर्मा (शंकर) एवं ‘हरिऔध’ ने ब्रज भाषा को छोड़कर खड़ी बोली को अपनाया।
- ‘प्रभा’ एवं ‘मर्यादा’ इस काल का महत्वपूर्ण पत्रिकाएं थी।
- सरस्वती पत्रिका का प्रकाशन 1900 ई. से प्रारम्भ हुआ तथा सन् 1903 से 1920 ई. तक द्विवेदी जी ने सपांदन कार्य किया।
- द्विवेदी युग में प्रकृति को पहली बार काव्य विषय के रूप में मान्यता मिली है।
इस काल में जगन्नथदास रत्नाकर सत्यनारायण कविरत्न, रमाशंकर शुक्ल ‘रसाल’ एवं वियोगी हरि ने ब्रज भाषा में रचनाएं की।
अनुशासन धारा के कवि – (द्विवेदी मण्डल कवि)
- मैथिलीशरण गुप्त
- हरिऔध
- नाथूराम शर्मा (शंकर)
- सियारामशरण गुप्त
स्वछंदतावादी काव्यधारा के कवि – द्विवेदी मण्डल के बाहर के कवि
- मुकुटधर पांडे
- लोचन प्रसाद पांडेय
- रामनरेश त्रिपाठी
– ‘‘सरस्वती पत्रिका के ‘‘हे कवियो’ प्रकाशन में द्विवेदी जी ने ब्रज भाषा के चिर प्रयोग पर क्षोभ व्यक्त किया।
प्रमुख प्रवृतियां-
- राष्ट्रीय भावना
- सामाजिक समस्याओं का चित्रण
- इतिवृतात्मकता
- नैतिकता एवं आदर्शवाद
- काव्यरूपों की विविधता
- खड़ी बोली का काव्यभाषा के रूप में प्रयोग
- प्रकृति चित्रण
- छन्दों की विविधता
- हास्य व्यंग्य
प्रमुख रचनाकार एवं रचनाएं –
1. मैथिलीशरण गुप्त –
- इन्हें हिन्दी का राष्ट्रीय काव्यधारा का प्रतिनिधि कवि एवं राष्ट्रकवि कहा जाता है।
- इन्होंने हिन्दी साहित्य में उपेक्षित नारी पात्रों को विषेष महत्व दिया ।
- तथा ‘‘साकेत-यषोधरा’’ आदि रचनाएं की।
- ‘भारत-भारती’ ने बहुत प्रसिद्धि पायी जिसमें भारत अतीत गौरव का गान है। अंग्रेजों ने इसे प्रतिबंधित कर दिया था।
- इनकी आरम्भिक रचनाएं ‘वेष्योपकारक’ में प्रकाशित होती थी बाद में सरस्वती में प्रकाशित होने लगी।
- इनकी प्रथम रचना ‘रंग में भंग’ का प्रकाषन 1909 में हुआ।
- ‘भारत-भारती’ का प्रकाषन – 1912 में (राष्ट्रकवि की उपाधि मिली)
- ये रामभक्त कवि थे इसका उदाहरण इनकी रचना साकेत है।
- साकेत के 9वें सर्ग में उर्मिला का विरह वर्णन है।
- यशोधरा – बुद्ध के गृह त्याग पर आधारित है।
अन्य रचनाएं –
- जयद्रथ वध
- पंचवटी
- झन्कार
- साकेत (1931)
- यशोधरा (1932)
- – द्वापर
- – जयभारत
- – विष्णुप्रिया
प्रमुख नाटक –
- चन्द्रहास
- अनध
- अर्जन और विसर्जन’ तथा ‘‘काबा और कर्बला’’ इनकी मुस्लिम संस्कृति से संबंधी रचनाएं है।
- ‘‘किसान’’ और ‘‘विश्ववेदना’’ सामाजिक रचनाएं है।
2. अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘‘हरिऔध’’ –
- पुरातन संस्कृत का पुनरोद्धार एंव कविता में उपदेशात्मक प्रवृत्तियाँ इनकी मुख्य विषेषताएं है।
- (1914) ‘‘प्रिय प्रवास’’ खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है। इसमें राधा और कृष्ण को सामान्य नायक-नायिकाओं तो ऊपर विष्वशैली एवं विश्व प्रेमी के रूप में चित्रित कर ‘हरिऔध’ ने अपनी मौलिकता का परिचय दिया है।
- (1940) ‘‘वैदेही वनवास’’ खड़ी बोली में रचित तथा रामकथा पर आधारित महाकाव्य है।
- ‘‘रसकलष’’ रीति ग्रंथ रस के प्रकार एवं स्वरूप का वर्णन भाषा ब्रज है।
- ‘‘पद्य प्रसुन’’
- चुभते चौपदे
- चाैखे चापदै
- बोलचाल
- परिजात
- ‘‘प्रिय प्रवास’’ के लिए ‘‘मंगलप्रसाद’’ पारितोषिक मिला
इन्हें ‘कवि सम्राट’ भी कहा जाता है।
3. नाथूराम शर्मा (शंकर) –
- इन्होंने राजा विवर्मा के चित्रों के आधार पर सुन्दर काल की रचना की।
- इन्हें ‘कविता कामिनी कान्त’, ‘भारतेन्दु प्रज्ञेन्दु, ‘साहित्य सुधाकर’
- आदि उपाधियों से विभूषित किया गया है।
4. श्रीधर पाठक –
इन्होंने ब्रज एंव खड़ी बोली दोनों में काव्य रचना की
प्रमुख वृतियां –
- काश्मीर सुषमा
- देहरादून
- वनाष्टक
- श्रृंगार
इन्होंने ‘गोल्ड स्मिथ’ की रचनाओं का अनुवाद ‘‘उजड़ग्राम’’’ (डेजर्ट विलेज) एकान्तवासी योग (हर्मिट), श्रान्तपथिक (दे ट्रेवलर) नाम से किया
5. महावीर प्रसाद द्विवेदी –
रचनाएं –
- काव्य मंजूषा
- सुमन
- कान्यकुब्ज
- अबला विलाप (मौलिक अध्याय)
- गंगा लहरी, ऋतुतरंगिणी, कुमार सम्भव सार (अनुदित रचनाएं)
6. राय देवीप्रसाद पूर्ण –
- इन्होंने ‘‘धारा-धर-धावन’’ शीर्षक से ‘कालीदास’ के ‘मेघदूत’ का पद्यानुवाद किया।
- ‘स्वदेशी कुण्डल’ में देषभक्ति से पूर्ण 52 कुण्डलियों की रचना की है।
अन्य रचनाएं –
- मृत्युंजय
- राम रावण विरोध
- वसन्त वियोग
7. गया प्रसाद शुक्ल ‘स्नेही’ –
- इन्होंने हिन्दी के साथ उर्दू में भी रचनाएं की।
- ण् श्रृंगार से सम्बन्धित रचनाएं ‘स्नेही’ उपनाम से तथा राष्ट्रीय भावना से सम्बन्धित रचनाएं ‘‘त्रिशुल’’ उपनाम से की।
- ‘‘सुकवि’’ नामक पत्रिका का सम्पादन किया।
प्रमुख रचनाएं –
- कृषक क्रन्दन
- प्रेम पचीसी
- राष्ट्रीय वीणा
- त्रिशुलत रंग
- करूणा कादम्बिनी
- ‘भारतोत्थान’ एवं ‘भारत प्रशंसा’ उनके देशभक्ति के परिपूर्ण काव्य है।
- ‘बाल विधवा’ में सामाजिक भावना तथा जार्ज वंदना में राजभक्ति की भावना विद्यमान है।
8. रामनरेश त्रिपाठी –
प्रमुख रचनाएं –
- मिलन (1977)
- पथिक (1920)
- मानसी (1927)
- स्वप्न (1929)
- कविता कौमुदी (आठ भागों में)
मानसी’ में देशभक्ति की फुटकर कविताएं है।
9. गिरीधर शर्मा (नवरत्न) –
- ये झालारापाटन राजस्थान के थे।
- इनकी प्रमुख मौलिक रचना ‘‘मातृवंदना’’ है।
- ‘‘ब्रज भाषा में काव्य रचना’’
10. जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ –
- इन्होंने ‘जकी’ उपनाम से उर्दू में रचना की।
- इनकी रचना ‘उद्धवशतक’ भ्रमरगीत परम्परा का ग्रंथ है। तथा यह
- ब्रज भाषा की अंतिम प्रसिद्ध रचना मानी जाती है।
प्रमुख रचनाएं –
- – गंगावतरण
- – श्रृंगार लहरी
- – हरिश्चन्द
- – हिंडोला
ये भक्तिकाल और रीतिकाल के समन्वय के कवि माने जाते हैं।