धनपाल का साहित्यिक परिचय

धनपाल

अपभ्रंश कवि धनपाल ने भविसयत्त कहा (भविष्यदत्त कथा) नामक अपभ्रंश काव्य की रचना की है। उन्होंने अपने माता-पिता का नाम धनश्री एवं मातेश्वर प्रकट किया है। इनके रचनाकाल का समय १०वीं शती अनुमान किया गया है।

भविसयत्त कहा

काव्यरचना, बहुलता से पद्धडिया छंद के कडवकों और घत्ताओं में की गई है। यह चौपाई-दोहा-रूप काव्य का पूर्वरूप है। स्थान-स्थान पर अन्य नाना छंदों का भी प्रयोग किया गया है। ग्रंथ २२ संधियों (परिच्छेदों) में समाप्त हुआ है। चरित्रनायक भविष्यदत्त वणिक्पुत्र है। वह अपने सौतेले भाई बंधुदत्त के साथ व्यापार के लिए परदेश जाता है, धन कमाता है, और विवाह भी कर लेता है। किंतु उसका सौतेला भाई उसे बार-बार धोखा देकर दु:ख पहुँचाता है। यहाँ तक कि वह उसे एक द्वीप में अकेला छोउकर उसकी पत्नी के साथ घर लौट आता है, और उसी से अपना विवाह करना चाहता है। परंतु इसी बीच भविष्यदत्त एक यक्ष की सहायता से घर लौट आता है एवं राजा को प्रसन्न कर राजकन्या से विवाह करता है। अंत में मुनि द्वारा धर्मोपदेश तथा अपने पूर्वजन्म का वृत्तांत सुनकर पुत्र को राज्य दे मुनि हो जाता है।

यह कथानक जैनधर्म संबंधी श्रुत पंचमी-व्रत का माहात्म्य प्रकट करने के लिए लिखा गया है। ग्रंथ के अनेक प्रकरण काव्यगुणों से युक्त सुंदर और रोचक हैं। बालक्रीड़ा, समुद्रयात्रा, नौकाभंग, उजाड़नगर, विमानयात्रादि वर्णन पढ़ने योग्य हैं। कवि के समय में विमान नहीं थे, किंतु उसने विमानयात्रा का वर्णन बहुत सुंदर और सजीव किया है।

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