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हिंदी साहित्य
हिंदी साहित्य: हिंदी भारत और विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। उसकी जड़ें प्राचीन भारत की संस्कृत भाषा में तलाशी जा सकती हैं। परंतु हिन्दी साहित्य की जड़ें मध्ययुगीन भारत की अवधी, मागधी , अर्धमागधी तथा मारवाड़ी जैसी भाषाओं के साहित्य में पायी जाती हैं। हिंदी में गद्य का विकास बहुत बाद में हुआ। हिंदी ने अपनी शुरुआत लोकभाषा कविता के माध्यम से की। हिंदी का आरंभिक साहित्य अपभ्रंश में मिलता है।
अभिव्यंजनावाद पर वस्तुनिष्ठ प्रश्न
अभिव्यञ्जनावाद एक आधुनिकतावादी आन्दोलन था जो 20वीं शताब्दी के आरम्भ में जर्मनी से आरम्भ हुआ था। पहले यह काव्य (पोएट्री) और चित्रकला के क्षेत्र में आया था।
अभिव्यंजनावाद के प्रवर्तक बेनेदेत्तो क्रोचे (Benedetto Croce) मूलतः आत्मवादी!-->!-->!-->…
भ्रमरगीतसार पर वस्तुनिष्ठ प्रश्न
भ्रमरगीत सार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा सम्पादित महाकवि सूरदास के पदों का संग्रह है। उन्होने सूरसागर के भ्रमरगीत से लगभग 400 पदों को छांटकर उनको 'भ्रमरगीत सार' के रूप में प्रकाशित कराया था।
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भारतीय आर्य भाषाएँ
यहाँ पर भारतीय आर्य भाषा के बारे में दिया गया हैं जो आपके विविध परीक्षाओं के दृष्टिकोण से बेहद उपयोगी साबित हो सकती हैं.
भारतीय आर्य भाषाएँ
हिन्द-आर्य भाषाएँ हिन्द-यूरोपीय भाषाओं की हिन्द-ईरानी शाखा की एक उपशाखा हैं, जिसे!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
हिंदी की व्युत्पत्ति
हिंदी की व्युत्पत्ति
हिन्दी शब्द का सम्बंध संस्कृत शब्द 'सिन्धु' से माना जाता है। यह सिन्धु शब्द ईरानी में जाकर ‘हिन्दू’, हिन्दी और फिर ‘हिन्द’ हो गया। बाद में ईरानी धीरे-धीरे भारत के अधिक भागों से परिचित होते गए और इस शब्द के अर्थ में!-->!-->!-->…
देवनागरी लिपि
प्राचीन नागरी लिपि का प्रचार उत्तर भारत में नवीं सदी के अंतिम चरण से मिलता है, यह मूलत: उत्तरी लिपि है, पर दक्षिण भारत में भी कुछ स्थानों पर आठवीं सदी से यह मिलती है। दक्षिण में इसका नाम नागरी न होकर नंद नागरी है।
आधुनिक काल की!-->!-->!-->!-->!-->…
ध्वनि विज्ञान
इन्हें भी पढ़ें :-
स्वनिम विज्ञान की परिभाषास्वन और वागीन्द्रियस्वनों का वर्गीकरणस्वनिम परिवर्तन के कारण
ध्वनि या स्वन की परिभाषा
भाषा की लघुत्तम इकाई स्वन है। इसे ध्वनि नाम भी दिया जाता है। ध्वनि के अभाव में भाषा की कल्पना भी नहीं!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
संस्कृत आलोचना के प्रमुख आचार्य
संस्कृत आलोचना के प्रमुख आचार्य
भरतमुनि
भामह
दण्डी
वामन
उद्भट
रूद्रट
आनंद वर्धन
अभिनव गुप्त
कुन्तक
कुन्तक
क्षेमेंद्र
विश्वनाथ
जगन्नाथ
साहित्य में विविध वाद
साहित्य में विविध वाद
उत्तर आधुनिकतावादअति यथार्थवादअस्तित्ववादसरंचनावादकलावादप्रतीकवादमिथकमनोविश्लेषण वादविखंडनवादस्वछंदतावादरुपवाद
काव्य प्रयोजन
काव्य रचना का उद्देश्य ही काव्य प्रयोजन होता है.
संस्कृत आचार्यों के अनुसार काव्य-प्रयोजन
भरत मुनि –
धर्म्यं यशस्यं आयुष्यं हितं बुद्धि विवर्धनम्।लोको उपदेश जननम् नाट्यमेतद् भविष्यति।।
भरत मुनि
धर्म, यश, आयु-साधक, हितकर,!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…