भूषण का साहित्यिक परिचय

महाकवि भूषण का जन्म संवत 1670 तदनुसार ईस्वी 1613 में हुआ। वे मूलतः टिकवापुर गाँव के निवासी थे जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के घाटमपुर तहसील में पड़ता है। उनके दो भाई चिन्तामणि और मतिराम भी कवि थे।

‘शिवराज भूषण’ ग्रंथ के निम्न दोहे के अनुसार ‘भूषण’ उनकी उपाधि है जो उन्हें चित्रकूट के राज हृदयराम के पुत्र रुद्रशाह ने दी थी –

कुल सुलंकि चित्रकूट-पति साहस सील-समुद्र।
कवि भूषण पदवी दई, हृदय राम सुत रुद्र॥

पन्ना नरेश छत्रसाल से भी भूषण का संबंध रहा। वास्तव में भूषण केवल छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रसाल इन दो राजाओं के ही सच्चे प्रशंसक थे। उन्होंने स्वयं ही स्वीकार किया है-

और राव राजा एक मन में न ल्याऊं अब।
साहू को सराहों कै सराहौं छत्रसाल को॥
संवत 1772 तदनुसार ईस्वी 1715 में भूषण परलोकवासी हो गए।

रचनाएँ

विद्वानों ने इनके छह ग्रंथ माने हैं – शिवराजभूषण, शिवाबावनी, छत्रसालदशक, भूषण उल्लास, भूषण हजारा, दूषनोल्लासा। परन्तु इनमें शिवराज भूषण, छत्रसाल दशक व शिवा बावनी ही उपलब्ध हैं। शिवराजभूषण में अलंकार, छत्रसाल दशक में छत्रसाल बुंदेला के पराक्रम, दानशीलता व शिवाबवनी में छत्रपति शिवाजी महाराज के गुणों का वर्णन किया गया है।

शिवराज भूषण से कुछ छन्द

इन्द्र जिमि जंभ पर , वाडव सुअंभ पर।
रावन सदंभ पर , रघुकुल राज है ॥१॥
पौन बरिबाह पर , संभु रतिनाह पर।
ज्यों सहसबाह पर , राम द्विजराज है ॥२॥
दावा द्रुमदंड पर , चीता मृगझुंड पर।
भूषण वितुण्ड पर , जैसे मृगराज है ॥३॥
तेजतम अंस पर , कान्ह जिमि कंस पर।
त्यों म्लेच्छ बंस पर , शेर सिवराज है ॥४॥

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