अमीर खुसरो का साहित्यिक परिचय
अमीर खुसरो का साहित्यिक परिचय : अबुल हसन यमीनुद्दीन अमीर ख़ुसरो (1253-1325) चौदहवीं सदी के लगभग दिल्ली के निकट रहने वाले एक प्रमुख कवि, शायर, गायक और संगीतकार थे। उनका परिवार कई पीढ़ियों से राजदरबार से सम्बंधित था I

सामान्य परिचय
- जन्मकाल- 1255 ई. (1312 वि.)
- मृत्युकाल – 1324 ई. (1381 वि.)
- जन्मस्थान – गांव- पटियाली,जिला-एटा
- मूलनाम- अबुल हसन
- उपाधि- खुसरो सुखन ( यह उपाधि मात्र 12 वर्ष की अल्प आयु में बुजर्ग विद्वान ख्वाजा इजुद्दीन द्वारा प्रदान की गई थी)
- उपनाम-
- तुर्क-ए-अल्लाह
- तोता-ए-हिन्द ( हिंदुस्तान की तूती)
- गुरु का नाम – निजामुद्दीन ओलिया
काव्यभाषा
‘काव्यभाषा’ का ढाँचा अधिकतर शौरसेनी या पुरानी ब्रजभाषा का ही बहुत काल से चला आता था। अतः जिन पश्चिमी प्रदेशों की बोलचाल खड़ी होती थी, उनमें भी जनता के बीच प्रचलित पद्यों, तुकबंदियों आदि की भाषा ब्रजभाषा की ओर झुकी हुई रहती थी।
खुसरो के समय बोलचाल की स्वाभाविक भाषा घिसकर बहुत कुछ उसी रूप में आ गई थी, जिस रूप में खुसरो में मिलती है। कबीर की अपेक्षा खुसरो का ध्यान बोलचाल की भाषा की ओर अधिक था; उसी प्रकार जैसे अंगरेजों का ध्यान बोलचाल की भाषा की ओर अधिक रहता है। खुसरो का लक्ष्य जनता का मनोरंजन था। पर कबीर धर्मोपदेशक थे, अतः उनकी बानी पोथियों की भाषा का सहारा कुछ-न-कुछ खुसरो की अपेक्षा अधिक लिये हुए है।
अमीर खुसरो की पहेलियां
नीचे खुसरो की कुछ पहेलियाँ, दोहे और गीत दिए जाते हैं-
1)
तरवर से इक तिरिया उतरी उसने बहुत रिझाया
बाप का उससे नाम जो पूछा आधा नाम बताया
आधा नाम पिता पर प्यारा बूझ पहेली मोरी
अमीर ख़ुसरो यूँ कहेम अपना नाम नबोली
(उत्तर=निम्बोली)
2)
फ़ारसी बोली आईना,
तुर्की सोच न पाईना
हिन्दी बोलते आरसी,
आए मुँह देखे जो उसे बताए
(उत्तर=दर्पण)
3)
बीसों का सर काट लिया
ना मारा ना ख़ून किया
(उत्तर=नाखून)
4)
एक परख है सुंदर मूरत, जो देखे वो उसी की सूरत
फिक्र पहेली पायी ना, बोझन लागा आयी ना
(उत्तर=आईना)
5)
घूस घुमेला लहँगा पहिने, एक पाँव से रहे खडी।
आठ हाथ हैं उस नारी के, सूरत उसकी लगे परी।
सब कोई उसकी चाह करे, मुसलमान, हिंदू छतरी।
खुसरो ने यही कही पहेली, दिल में अपने सोच जरी।
(उत्तर=छतरी)
6)
आदि कटे से सबको पारे। मध्य कटे से सबको मारे।
अन्त कटे से सबको मीठा। खुसरो वाको ऑंखो दीठा॥
(उत्तर=काजल)
7)
एक नार ने अचरज किया। साँप मार पिंजरे में दिया
ज्यों-ज्यों साँप ताल को खाए। सूखै ताल साँप मरि जाए
(उत्तर=दिये की बत्ती)
8)
खड़ा भी लोटा पड़ा पड़ा भी लोटा।
है बैठा और कहे हैं लोटा।
खुसरो कहे समझ का टोटा॥
(उत्तर=लोटा)
9)
खेत में उपजे सब कोई खाय
घर में होवे घर खा जाय
(उत्तर=फूट)
बूझ पहेली
यह वो पहेलियाँ हैं जिनका उत्तर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप में पहेली में दिया होता है यानि जो पहेलियाँ पहले से ही बूझी गई हों:
1.
गोल मटोल और छोटा-मोटा, हर दम वह तो जमीं पर लोटा।
खुसरो कहे नहीं है झूठा, जो न बूझे अकिल का खोटा।।
(उत्तर=लोटा)
2.
श्याम बरन और दाँत अनेक, लचकत जैसे नारी।
दोनों हाथ से खुसरो खींचे और कहे तू आ री।।
(उत्तर=आरी)
3.
हाड़ की देही उज् रंग, लिपटा रहे नारी के संग।
चोरी की ना खून किया वाका सर क्यों काट लिया।
(उत्तर=नाखून)
4.
एक नार तरवर से उतरी, सर पर वाके पांव।
ऐसी नार कुनार को, मैं ना देखन जाँव।।
(उत्तर=मैंना)
5.
सावन भादों बहुत चलत है माघ पूस में थोरी।
अमीर खुसरो यूँ कहें तू बुझ पहेली मोरी।।
(उत्तर=मोरी (नाली)
6.
बाला था जब सबको भाया, बड़ा हुआ कुछ काम न आया।
खुसरो कह दिया उसका नाव, अर्थ करो नहीं छोड़ो गाँव।।
(उत्तर=दिया)
7.
नारी से तू नर भई और श्याम बरन भई सोय।
गली-गली कूकत फिरे कोइलो-कोइलो लोय।।
(उत्तर=कोयल)
अमीर खुसरो की प्रमुख रचनाएं:-
खालिकबारी
पहेलियां
मुकरियाँ
ग़जल
दो सुखने
नुहसिपहर
नजरान-ए-हिन्द
हालात-ए-कन्हैया
अमीर खुसरो के बारे में विशेष तथ्य:
- इनकी खालिकबारी रचना एक शब्दकोश है यह रचना गयासुद्दीन तुगलक के पुत्र को भाषा ज्ञान देने के उद्देश्य से लिखी गई थी|
- इनकी ‘नूहसिपहर’ है रचना में भारतीय बोलियों के संबंध में विस्तार से वर्णन किया गया है|
- इनको हिंदू-मुस्लिम समन्वित संस्कृति का प्रथम प्रतिनिधि कवि माना जाता है|
- यह खड़ी बोली हिंदी के प्रथम कवि माने जाते हैं|
- खुसरो की हिंदी रचनाओं का प्रथम संकलन ‘जवाहरे खुसरवी’ नाम से सन 1918 ईस्वी में मौलाना रशीद अहमद सलाम ने अलीगढ़ से प्रकाशित करवाया था|
- इसी प्रकार का द्वितीय संकलन 1922 ईसवी में ‘ब्रजरत्नदास’ में नागरी प्रचारिणी सभा काशी के माध्यम से ‘खुसरो की हिंदी कविता’ नाम से करवाया|
- रामकुमार वर्मा ने इनको ‘अवधी’ का प्रथम कवि कहा है|
- ये अपनी पहेलियों की रचना के कारण सर्वाधिक प्रसिद्ध हुए हैं|
- इन्होंने गयासुद्दीन बलबन से लेकर अलाउद्दीन और कुतुबुद्दीन मुबारक शाह तक कई पठान बादशाहों का जमाना देखा था|
- यह आदि काल में मनोरंजन पूर्ण साहित्य लिखने वाले प्रमुख कवि माने जाते हैं|
- इनका प्रसिद्ध कथन-” मैं हिंदुस्तान की तूती हूं, अगर तुम भारत के बारे में वास्तव में कुछ पूछना चाहते हो तो मुझसे पूछो”
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