हरिकृष्ण प्रेमी का साहित्यिक परिचय

प्रेम की अतृप्त तृष्णा ने हरिकृष्ण प्रेमी को स्वयं ‘प्रेमी’ बना दिया। बंधु-बांधवों के प्रति स्नेहालु, मित्रों के प्रति अनुरक्त, स्वदेशानुराग, मनुष्य मात्र के प्रति सौहाएद-यही उनके अंतर मन का विकास है।

हरिकृष्ण प्रेमी का साहित्यिक जीवन परिचय

हरिकृष्ण ‘प्रेमी’ का जन्म 1908 ई. को गुना, ग्वालियर, मध्य प्रदेश में हुआ था। इनका परिवार राष्ट्रभक्त था तथा इनमें बचपन से ही राष्ट्रीयता के संस्कार थे। दो वर्ष की अवस्था में माता की मृत्यु हो गयी थी।

हरिकृष्ण प्रेमी जी की रचनाएँ

  • ‘प्रेमी’ जी की सर्वप्रथम प्रकाशित रचना ‘स्वर्ण विहान’ (1930 ई.) गति-नाट्य है। 
  • पहले ऐतिहासिक नाटक ‘रक्षा-बंधन’ (1938 ई.) में गुजरात के बहादुर शाह के आक्रमण के अवसर पर चित्तौड़ की रक्षा के लिए रानी कर्मवती द्वारा मुग़ल सम्राट हुमायूँ को राखी भेजने का प्रसंग है।
  • प्रेमी’ जी के सामाजिक नाटक ‘बंधन’ (1940 ई.) में मजदूरों और पूँजीपति के संघर्ष का चित्रण है।
  •  ‘प्रेमी’ जी के दो एकांकी संग्रह ‘मंदिर’ (1942 ई.) और ‘बादलों के पार’ (1942 ई.) भी प्रकाशित हुए है।
  •  ‘प्रेमी’ जी का कविता-संग्रह ‘आँखों में’ (1930 ई.) प्रेम के विरह-विदग्ध वेदनामय स्वरूप स्वरूप की अभिव्यक्ति है। ‘जादूगरनी’ (1932 ई.) में कबीर की ‘माया महाठगिनी’ के मोहक प्रभाव का वर्णन एवं रहस्यात्मक अनुभूतियों की व्यंजना है। ‘अनंत के पथ पर’ (1932 ई.) रहस्यानुभूमि को औरघनीभूत रूप में उपस्थित करता है।

हरिकृष्ण प्रेमी जी का वर्ण्य विषय

‘प्रेमी जी’ के विद्रोही दृष्टिकोण, नवीन मान्यताओं और नूतन आदर्शों की बड़ी प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति है।

हरिकृष्ण प्रेमी जी का लेखन कला

‘प्रेमी’ जी ने इधर गीति-नाट्य की शैली के कई प्रयोग किये हैं। 

हरिकृष्ण प्रेमी जी साहित्य में स्थान

हरिकृष्ण जी का हिंदी नाटककारों में अपना विशिष्ट स्थान है। मध्यकालीन इतिहास से कथा प्रसंगो को लेकर उन्होंने हमें राष्ट्रीय जागरण, धर्म निरपेक्षता तथा विश्व-बंधुत्व के महान् संदेश दिये हैं। 

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