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हरिकृष्ण प्रेमी

हरिकृष्ण प्रेमी का साहित्यिक परिचय

प्रेम की अतृप्त तृष्णा ने हरिकृष्ण प्रेमी को स्वयं 'प्रेमी' बना दिया। बंधु-बांधवों के प्रति स्नेहालु, मित्रों के प्रति अनुरक्त, स्वदेशानुराग, मनुष्य मात्र के प्रति सौहाएद-यही उनके अंतर मन का विकास है। हरिकृष्ण प्रेमी का साहित्यिक जीवन