रसखान का साहित्यिक परिचय

रसखान का साहित्यिक परिचय

भक्ति काल के एक प्रमुख हस्ताक्षर सैय्यद इब्राहीम “रसखान” को ‘रस की खान’ कहा जाता है। इनके काव्य में भक्ति, श्रृंगार रस दोनों प्रधानता से मिलते हैं। 

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रसखान

रसखान का जन्म उपलब्ध स्रोतों के अनुसार सन् 1533 से 1558 के बीच का माना जाता है। अकबर का राज्यकाल 1556-1605 है, ये लगभग अकबर के समकालीन हैं। कुछ लोगों का मानना है कि इनका जन्मस्थान ‘पिहानी’ है जो दिल्ली के नजदीक है। वहीं कुछ अन्य लोगों का मानना है कि वे ‘पिहानी’ उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में पैदा हुए थे। 

हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने अपनी पुस्तक में रसखान के दो नाम लिखे हैं:– सैय्यद इब्राहिम और सुजान रसखान। जबकि सुजान रसखान की एक रचना का नाम है। हालांकि रसखान का असली नाम सैयद इब्राहिम था और “खान’ उसकी उपाधि थी। 

रसखान का जीवन-परिचय

  • आपका जन्म सं. 1615 (सन् 1558) के आसपास दिल्ली में हुआ,
  • इन्होंने ब्रज में आकर निवास किया और गोस्वामी विठ्ठलनाथ की शिष्यता ग्रहण की।
  • आपने ब्रजवास करते हुए सम्वत् 1675 (सन् 1618) में कृष्ण का सानिध्य प्राप्त किया।

रसखान की रचनाएँ-

◆सुजान रसखान-यह रसखान द्वारा रचित कवित्त और सवैया छन्दों का संग्रह है। रसखान के लोकप्रिय छन्द इसी में संग्रहीत
◆प्रेम वाटिका-यह एक लघुकाय छन्द-संग्रह है। कवि ने प्रेम को ही इसके छन्दों का विषय बनाया है। इसकी अनेक उक्तियाँ अत्यन्त मार्मिक हैं।

रसखान स्वयं बताते हैं कि गदर के कारण दिल्ली श्मशान बन चुकी थी, तब उसे छोड़कर वे ब्रज चले गए। सैय्यद इब्राहिम रसखान के काव्य के आधार भगवान श्रीकृष्ण हैं। रसखान ने उनकी ही लीलाओं का गान किया है। ब्रज साहित्य को प्रचुर करने में रसखान का योगदान अहम है।

रसखान के पिता जागीरदार थे, इसलिए उनका बचपन बहुत लाड़-प्यार में बीता। जानकारों का मानना है कि ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनकी पूरी काव्य रचना में किसी विशेष प्रकार की कटुता नहीं पाई जाती। उन्होंने बहुत बहुत ऊंचे की तालीम हासिल हुई। उनकी विद्वत्ता उनके काव्य की अभिव्यक्ति में जाहिर होते हैं। रसखान को फारसी हिंदी एवं संस्कृति का अच्छा ज्ञान था। उन्होंने “श्रीमद्भागवत’ का अनुवाद फारसी में किया था। 

रसखान ने अपनी रचनाओं में प्रेम की असली परिभाषा दी है। 

प्रेम प्रेम सब कोउ कहत, प्रेम न जानत कोइ।
जो जन जानै प्रेम तो, मरै जगत क्यों रोइ॥

कमल तंतु सो छीन अरु, कठिन खड़ग की धार।
अति सूधो टढ़ौ बहुरि, प्रेमपंथ अनिवार॥

काम क्रोध मद मोह भय, लोभ द्रोह मात्सर्य।
इन सबहीं ते प्रेम है, परे कहत मुनिवर्य॥ 

बिन गुन जोबन रूप धन, बिन स्वारथ हित जानि।
सुद्ध कामना ते रहित, प्रेम सकल रसखानि॥

अति सूक्ष्म कोमल अतिहि, अति पतरौ अति दूर।
प्रेम कठिन सब ते सदा, नित इकरस भरपूर॥

प्रेम अगम अनुपम अमित, सागर सरिस बखान।
जो आवत एहि ढिग बहुरि, जात नाहिं रसखान॥

भले वृथा करि पचि मरौ, ज्ञान गरूर बढ़ाय।
बिना प्रेम फीको सबै, कोटिन कियो उपाय॥

दंपति सुख अरु विषय रस, पूजा निष्ठा ध्यान।
इन हे परे बखानिये, सुद्ध प्रेम रसखान॥

प्रेम रूप दर्पण अहे, रचै अजूबो खेल।
या में अपनो रूप कछु, लखि परिहै अनमेल॥

हरि के सब आधीन पै, हरी प्रेम आधीन।
याही ते हरि आपु ही, याहि बड़प्पन दीन॥

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