Browsing Tag

भाषा विज्ञान

हिन्दी आंदोलन से संबंधित संस्थाएँ

हिन्दी आंदोलन से संबंधित संस्थाएँ हिन्दी आंदोलन से संबंधित धार्मिक सामाजिक संस्थाएँ नाममुख्यालयस्थापनासंस्थापकब्रह्म समाजकलकत्ता1828 ई०राजा राम मोहन रायप्रार्थना समाजबंबई1867 ई०आत्मारंग पाण्डुरंगआर्य समाजबंबई1875 ई०दयानंद

राष्ट्रभाषा हिंदी के लिए नेताओं का योगदान

महात्मा गाँधी राष्ट्र के लिए राष्ट्रभाषा को नितांत आवश्यक मानते थे। उनका कहना था : 'राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है'। गाँधीजी हिन्दी के प्रश्न को स्वराज का प्रश्न मानते थे : 'हिन्दी का प्रश्न स्वराज का प्रश्न है'। भाषाविज्ञान

हिंदी भाषा विकास में सामाजिक संस्थाओं का योगदान

हिंदी के लिए धर्म/समाज सुधारकों का योगदान: धर्म/समाज सुधार की प्रायः सभी संस्थाओं ने हिन्दी के महत्व को भाँपा और हिन्दी की हिमायत की। Complete course of Hindi literature हिंदी भाषा विकास में सामाजिक संस्थाओं का योगदानब्रह्म समाज

हिंदी भाषा के लिए अंग्रेजों का योगदान

हिन्दी की व्यावहारिक उपयोगिता, देशव्यापी प्रसार एवं प्रयोगगत लचीलेपन के कारण अंग्रेजों ने हिन्दी को अपनाया। उस समय हिन्दी और उर्दू को एक ही भाषा मानी जाती थी जो दो लिपियों में लिखी जाती थी। अंग्रेजों ने हिन्दी को प्रयोग में लाकर हिन्दी की

आधुनिक कालीन हिन्दी – खड़ी बोली

हिन्दी के आधुनिक काल तक आतेआते ब्रजभाषा जनभाषा से काफी दूर हट चुकी थी और अवधी ने तो बहुत पहले से ही साहित्य से मुँह मोड़ लिया था। 19वीं सदी के मध्य तक अंग्रेजी सत्ता का महत्तम विस्तार भारत में हो चुका था। इस राजनीतिक परिवर्तन का प्रभाव मध्य…

मध्यकालीन हिन्दी

मध्यकाल में हिन्दी का स्वरूप स्पष्ट हो गया तथा उसकी प्रमुख बोलियाँ विकसित हो गई। इस काल में भाषा के तीन रूप निखरकर सामने आए- ब्रजभाषा, अवधी व खड़ी बोली। मध्यकालीन हिन्दी ब्रजभाषा और अवधी का अत्यधिक साहित्यिक विकास हुआ तथा तत्कालीन

राजभाषा का शाब्दिक अर्थ

राजभाषा का शाब्दिक अर्थ है- राज-काज की भाषा। जो भाषा देश के राजकीय कार्यों के लिए प्रयुक्त होती है, वह 'राजभाषा' कहलाती है। राजाओं-नवाबों के जमाने में इसे 'दरबारी भाषा' कहा जाता था। राजभाषा का दर्जा राजभाषा की उपयोगिताहिन्दी दिवस कब

हिन्दी की संवैधानिक स्थिति

हिन्दी की संवैधानिक स्थिति हिन्दी की संवैधानिक स्थितिअध्याय 1 : संघ की भाषाअनु० 343 : संघ की राजभाषा अनु० 344 : अध्याय 2 : प्रादेशिक भाषाएँअनु० 345 : अनु० 346 : अनु० 347 : अध्याय 3 : SC, HC आदि की भाषाअनु० 348 : अनु० 349 : अध्याय 4 :

प्राचीन हिन्दी- पुरानी हिन्दी- आदिकालीन हिन्दी

प्राचीन हिन्दी या पुरानी हिन्दी- आदिकालीन हिन्दी से अभिप्राय है- अपभ्रंश-अवहट्ट के बाद की भाषा । हिन्दी साहित्य पुरानी हिन्दी- आदिकालीन हिन्दी मध्यदेशीय भाषा-परंपरा की विशिष्ट उत्तराधिकारिणी होने के कारण हिन्दी का स्थान आधुनिक