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अंधेर नगरी प्रहसन

अंधेर नगरी – कथासार

अंधेर नगरी - कथासार अंधेर नगरी - कथासार अंधेर नगरी नाटक का कथानक एक दृष्टांत की तरह है और उसका संक्षिप्त सार इस प्रकार है एक महन्त अपने दो चेलों - गोवर्धनदास और नारायणदास के साथ भजन गाते हुए एक भव्य और सुन्दर नगर में आता है।

अंधेर नगरी की भाषा – शैली एवं संवाद योजना

अंधेर नगरी की भाषा - शैली एवं संवाद योजना संवाद नाटक की आत्मा होते हैं। उन्हीं के आधार पर नाटक की कथा निर्मित और विकसित होती है, पात्रों के चरित्र के सम्बन्ध में जानकारी मिलती है, उनका विकास होता है। संवाद ही नाटक में सजीवता, रोचकता

अंधेर नगरी: पात्र परिकल्पना एवं चरित्रिक विशेषताएँ

अंधेर नगरी नाटक में यूँ कहने को तो इसमें अनेक पात्र हैं विशेषतः बाजार वाले दृश्य में। पर वे केवल एक दृश्य तक सीमित हैं और उनके द्वारा लेखक या तो बाजार का वातावरण उपस्थित करता है या फिर तत्कालीन राजतंत्र एवं न्याय व्यवस्था पर कटाक्ष करता

अंधेर नगरी प्रहसन व्याख्या

अंधेर नगरी प्रहसन व्याख्या राम के नाम से काम बनै सब,राम के भाजन बिनु सबहिं नसाई ||राम के नाम से दोनों नयन बिनु सूरदास भए कबिकुलराई । राम के नाम से घास जंगल की, तुलसी दास भए भजि रघुराई ॥ शब्दार्थ- दोनों नयन बिनु-जिनके दोनों