सूरदास का साहित्यिक परिचय: वैसे तो हिंदी की काव्य उद्यान कितने ही रंग-बिरंगे और सुगंधित फूल खिले किंतु जैसा सौरभ सूरदास की रचनाओं का है , वैसा और किसी भी कवि की रचनाओं का नहीं है. इसलिए किसी सहृदय आलोचक ने ‘ सूर- सूर, तुलसी- शशि ‘कहकर सूरदास को हिन्दी काव्य के आकाश का सूर्य कहा है. सूरदास का ऐसा सम्मान उचित ही है.
सूरदास का साहित्यिक परिचय

सूरदास का संक्षिप्त परिचय
- सूरदास का नाम कृष्ण भक्ति की अजस्र धारा को प्रवाहित करने वाले भक्त कवियों में सर्वोपरि है।
- हिन्दी साहित्य में भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक और ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि महात्मा सूरदास हिंदी साहित्य के सूर्यमाने जाते हैं।
- सूरदास के पिता, रामदास गायक थे।
- सूरदास के जन्मांध होने के विषय में मतभेद है।
- प्रारंभ में सूरदास आगरा के समीप गऊघाट पर रहते थे। वहीं उनकी भेंट श्री वल्लभाचार्य से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में दीक्षित कर के कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया।
- सूरदास की मृत्यु गोवर्धन के निकट पारसौली ग्राम में १५८० ईस्वी में हुई।
- मदन मोहन वास्तविक नाम
सूरदास की जन्म-तिथि
वैशाख शुक्ला पंचमी, संवत् १५३५ वि० समीचीन मृत्यु संवत् १६२० से १६४८ वि० के मध्य
मान्य आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी के मतानुसार सूरदास का जन्म संवत् १५४० वि० के सन्निकट और मृत्यु संवत् १६२० वि० के आसपास मानी जाती है।
सूरदास का जन्म स्थल
(‘चौरासी वैष्णव की वार्ता’ के आधार पर) उनका जन्म रुनकता अथवा रेणु का क्षेत्र (वर्तमान जिला आगरान्तर्गत) में हुआ था। ( “भावप्रकाश’ में )
सूर का जन्म स्थान सीही नामक ग्राम बताया गया है।
सूरदास जी के ग्रन्थ
सूरदास जी द्वारा लिखित पाँच ग्रन्थ बताए जाते हैं:
- (१) सूरसागर – जो सूरदास की प्रसिद्ध रचना है। जिसमें सवा लाख पद संग्रहित थे। किंतु अब सात-आठ हजार पद ही मिलते हैं।
- (२) सूरसारावली
- (३) साहित्य-लहरी – जिसमें उनके कूट पद संकलित हैं।
- (४) नल-दमयन्ती
- (५) ब्याहलो
उपरोक्त में अन्तिम दो अप्राप्य हैं।
सूरदास के भावपक्ष
सूर ने अपनी कल्पना और प्रतिभा के सहारे कृष्ण के बाल्य-रूप का अति सुंदर, सरस, सजीव और मनोवैज्ञानिक वर्णन किया है। बालकों की चपलता, स्पर्धा, अभिलाषा, आकांक्षा का वर्णन करने में विश्व व्यापी बाल-स्वरूप का चित्रण किया है। बाल-कृष्ण की एक-एक चेष्टा के चित्रण में कवि ने कमाल की होशियारी एवं सूक्ष्म निरीक्षण का परिचय दिया है़-
सूरदास के कलापक्ष
सूर ने वात्सल्य, श्रृंगार और शांत रसों को मुख्य रूप से अपनाया है।
कोमलकांत पदावली, भावानुकूल शब्द-चयन, सार्थक अलंकार-योजना, धारावाही प्रवाह, संगीतात्मकता एवं सजीवता सूर की भाषा में है, उसे देखकर तो यही कहना पड़ता है कि सूर ने ही सर्व प्रथम ब्रजभाषा को साहित्यिक रूप दिया है।
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने सूर की कवित्व-शक्ति के बारे में लिखा है-
सूरदास जब अपने प्रिय विषय का वर्णन शुरू करते हैं तो मानो अलंकार-शास्त्र हाथ जोड़कर उनके पीछे-पीछे दौड़ा करता है। उपमाओं की बाढ़ आ जाती है, रूपकों की वर्षा होने लगती है।
- इस प्रकार हम देखते हैं कि सूरदास हिंदी साहित्य के महाकवि हैं, क्योंकि उन्होंने न केवल भाव और भाषा की दृष्टि से साहित्य को सुसज्जित किया, वरन् कृष्ण-काव्य की विशिष्ट परंपरा को भी जन्म दिया।