भाषा संप्रेषण का स्वरूप


संप्रेषण एक परस्पर क्रिया है, जिसमें एक पक्ष संदेश का संप्रेषण करता है. दूसरा पक्ष उस संदेश को ग्रहण करता है। संप्रेषण हर जीवित प्राणी का गुणधर्म है।

चींटियाँ गंध द्वारा अपने समाज के अन्य प्राणियों को शिकार या खाद्यपदार्थ या शत्रु का संदेश देती हैं। मधुमक्खियाँ अपने साथियों को ‘नाच’ द्वारा संदेश संप्रेषित करती हैं। घोड़ा, कुत्ता आदि जानवर ध्वनियों के माध्यम से संप्रेषण करते हैं। लेकिन इनका संप्रेषण कथ्य, परिवेश तथा काल की दृष्टि से अति सीमित हैं।

उन्नत संप्रेषण व्यवस्था का सबसे अच्छा उदाहरण मानवों की भाषा है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि भाषा संप्रेषण का सबसे अच्छा माध्यम है।

भाषा विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम है। यानी भाषा के इस्तेमाल में वक्ता और श्रोता (या लेखक और पाठक) ये दो पक्ष अनिवार्य हैं। भले ही हम अपने मन में (अपने आपसे) बातचीत कर लें, भाषा के व्यवहार के लिए दो पक्ष चाहिए ही।

परस्पर भाषिक व्यवहार का माध्यम जो भी हो (पत्र लेखन, रेडियो प्रसारण, टेलीफ़ोन पर बातचीत) या उसका स्वरूप जो भी हो (लेखन, बातचीत. संकेत. हाव-भाव). कुल मिलाकर संदेश संप्रेषण ही हमारा प्रमुख ध्येय है। इस तरह संप्रेषण का केंद्र बिंदु संदेश है।

भाषा संप्रेषण का स्वरूप


संप्रेषण के दो प्रमुख पात्र हैं – वक्ता और श्रोता। जब तक दोनों में संदेश के आदान-प्रदान की सक्रिय सहभागिता न हो, सफल संप्रेषण नहीं हो सकता।

सफल संप्रेषण का आधार

भाषाई दक्षता

सफल संप्रेषण का एक आधार भाषाई दक्षता है। वक्ता को संदर्भ के अनुसार उचित भाषा का उपयोग करना चाहिए। विचारों का तार्किक क्रम, सही प्रतिक्रिया, सही शब्दावली और उपयुक्त भाव-भंगिमा का प्रदर्शन, वक्तव्य की स्पष्टता आदि विशेषताएँ संप्रेषण को प्रभावपूर्ण बनाती हैं।

अभीष्ट रूप में श्रोता तक पहुंच

संप्रेषण का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है कि हम जानें कि संदेश अभिप्रेत या अभीष्ट रूप में श्रोता तक पहुंच गया है या नहीं। आपने अनुभव किया होगा कि कभी आप गंभीरता से कोई बात कहते हैं और श्रोता समझता है कि आपने मज़ाक किया है।

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