भाषा विकास के चरण

भाषा विकास के चरण के बारे में जानेंगे

भाषा विकास एक प्रक्रिया है जिसे मानवीय जीवन की शुरुआत में शुरू किया जाता है। शिशुओं का विकास भाषा के बिना शुरू होता है, फिर भी 10 महीने तक, बच्चे भाषण की आवाज को अलग कर सकते हैं और वे अपनी मां की आवाज़ और भाषण पैटर्न पहचानने लगते है और जन्म के बाद अन्य ध्वनियों से उन्हें अलग करने लगते है।

भाषा विकास के चरण क्रमशः निम्न हैं –

मनुष्य में भाषा का प्रारंभिक रूप विभिन्न प्रकार के पशुओं की तरह आंगिक रहा होगा। वनबिलाव गुस्सा प्रकट करने के लिए अपने बालों को खड़ा कर लेता है, तो बंदर ओठों को अजीब ढंग से फैलाकर दाँत निकाल देता है और कुत्ता प्यार प्रदर्शन के लिए मालिक के शरीर को चाटता है, तो कभी पूँछ हिलाता है। ये आंगिक भाषा के ही रूप हैं।

भाषा का दूसरा रूप वाचिक में उच्चरित ध्वनियों का प्रयोग हुआ। आरंभ में मानव-भाषा में आंगिक संकेत अधिक थे और वाचिक कम, किंतु धीरे-धीरे पहले का प्रयोग सीमित होता गया और दूसरे का बढ़ता गया। यों आज का सभ्य मानव भी अपनी भाषा के उस आदिम आंगिक रूप को पूर्णतः भूल नहीं सका है, इसी कारण वाचिक भाषा के साथ- साथ विभिन्न अंगों को हिला, उठा, तान आदि कर वह अपनी अभिव्यक्ति को सशक्त बनाता है।

भाषा का तीसरा रूप लिखित ने भाषा की उपयोगिता बहुत बढ़ा दी है। आंगिक भाषा बड़ी स्थूल और सीमित थी। प्रेम, क्रोध, भूख आदि के सामान्य भाव ही वह प्रकट कर सकती थी। साथ ही उसके लिए दूसरे की आंगिक चेष्टाओं को देखना भी आवश्यक था। बिना दिखाये अभिव्यक्ति संभव न थी। इसका आशय यह हुआ कि इसके लिए प्रकाश अनिवार्यतः आवश्यक था।

अपने लिखित रूप में भाषा देश- काल से बँधी नहीं है। यांत्रिक भाषा के जरिये आज लिखकर दो-चार दस वर्ष बाद भी उसे पढ़ा जा सकता है, या इसी प्रकार यहाँ लिखकर उसे सात समुन्दर पार भी पहुँचाया जा सकता है।

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