प्रेमाख्यानक काव्य

प्रेमाख्यानक काव्य’ का अर्थ है जायसी आदि निर्गुणोपासक प्रेममार्गी सूफी कवियों के द्वारा रचित प्रेम-कथा काव्य।

प्रेमाख्यानक काव्य को प्रेमाख्यान काव्य, प्रेमकथानक काव्य, प्रेम काव्य, प्रेममार्गी (सूफी) काव्य आदि नामों से भी पुकारा जाता है।

प्रेमाख्यानक काव्य की विशेषताएँ :
(1) विषय वस्तु/कथावस्तु का प्रयोग
(2) अवांतर/गौण प्रसंगों की भरमार व काव्येतर विषयों का समावेश
(3) विभिन्न तरह के पात्र
(4) प्रेम का आधिक्य
(5) काव्य-रूप – कथा काव्य
(6) द्वंद्वात्मक काव्य-शिल्प (लोक कथा व शिष्ट कथा का मेल)
(7) काव्य-भाषा-अवधी
(8) कथा रूपक या प्रतीक काव्य
(9) वियोग श्रृंगार/विरह श्रृंगार को अधिक महत्व (‘पद्यावत’ के एक अंश-नागमती का विरह वर्णन- को हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि कहा जाता है)

यों तो सभी प्रेमाख्यानों में सामान्य मानव की प्रेम कथाएं है लेकिन सूफियों का तर्क है कि इश्क मजाजी (मानवीय प्रेम) इश्क हकीकी (दैविक प्रेम) की सीढ़ी है।

पद्मावत

मलिक मुहम्मद जायसी जायस के रहने वाले थे। ये सिंकदर लोदी एवं बाबर के समकालीन थे।जायसी के यश का आधार है- ”पद्मावत’।’पद्मावत’ प्रेम की पीर की व्यंजना करने वाला विशद प्रबंध काव्य है। यह चौपाई-दोहा में निबद्ध (7 चौपाई के बाद 1 दोहा) मसनवी शैली में लिखा गया है।’पद्मावत’ की कथा चितौड़ के शासक रतन सेन और सिंहलद्वीप की राजकन्या पदमिनी की प्रेम कहानी पर आधारित है। इसमें ( ‘पद्मावत’ में) रतनसेन की पहली पत्नी नागमती के वियोग का अनूठा वर्णन किया गया है। ‘पद्मावत’ के नागमती-वियोग खंड को हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि माना जाता है।

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