अरस्तू पाश्चात्य काव्यशास्त्री
अरस्तू का मूल यूनानी नाम ‘अरिस्तोतिलेस’ (Aristotiles) था।
अरस्तू का संक्षिप्त जीवन वृत्त निम्नांकित हैं-
जन्म-मृत्यु | जन्म स्थान | पत्नी | शिष्य था | गुरु था |
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384-322 ई० पू० | मकदूनिया | वीथियास | प्लेटो का | सिकन्दर का |
अरस्तू ने पूर्ण ज्ञान की परिभाषा दी थी, ”ज्ञान की सभी शाखाओं में अबाध गति।”
- अरस्तू के ग्रन्थों की संख्या चार सौ बतायी जाती है, जिनमें सर्वप्रमुख तीन हैं-
- (1) पेरिपोइएतिकेस (काव्य शास्त्र)- काव्य के मौलिक सिद्धान्तों का विवेचन।
- (2) तेखनेस रितोरिकेस (भाषा शास्त्र)- भाषण, भाषा एवं भावों का वर्णन।
- (3) वसीयतनामा- दास-प्रथा से मुक्ति का प्रथम घोषणा पत्र।
- अरस्तू कृत ‘वसीयतनामा’ को इतिहास में दास-प्रथा से मुक्ति का प्रथम घोषणा पत्र माना जाता है, क्योंकि ‘वसीयतनामा’ के द्वारा उन्होंने अपने सभी दासों को दासता से मुक्त कर दिया था।
- अरस्तू ने ‘पेरिपोइएतिकेस’ की रचना अनुमानत: 330 ई० पू० के आस-पास की। इस कृति का संक्षिप्त परिचय निम्न है-
यूनानी नाम (मूल) | अध्याय व पृष्ठ | प्रथम अंग्रेजी अनुवादक व अनुवाद |
---|---|---|
पेरिपोइएतिकेस | छब्बीस व पचास | टी० विन्स्टैन्ली- आन-पोएटिक्स (1780) |
- अरस्तू ने किसी वस्तु को ठीक से समझने के लिए, घड़ा निर्माण की प्रक्रिया के उदाहरण द्वारा, चार बातों पर ध्यान देना आवश्यक बताया है, जिसे निम्न ढंग से दर्शाया जा सकता है-
- प्रयोजन……… उपादानकरण ………निमित्तकरण ………तत्व
- जल …………..मिट्टी………………कुम्हार या चाक …….घड़ा
- अरस्तू के ‘काव्यशास्त्र’ में अध्यायानुसार निरूपित विषयों की तालिका इस प्रकार है।
अध्याय | विषय |
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1.5 | अनुकरणात्मक काव्य के रूप में त्रासदी (टैजेडी), महाकाव्य (एपिक) तथा प्रहसन (कॉंमेडी) का विवेचन तथा माध्यम, विषय एवं पद्धति के आधार पर इनका पारस्परिक भेद। |
6-19 | यह ग्रन्थ का केन्द्रीय भाग है। इसमें त्रासदी का सविस्तार विवेचन तथा इसकी परिभाषा, संरचना, प्रभाव आदि का वर्णन है। |
20 | पद-विभाग आदि का व्याकरणिक विवेचन। |
21-22 | पदावली और लक्षणा का निरूपण। |
23-24 | महाकाव्य के स्वरूप का विवेचन |
25 | प्लेटो या अन्य लोगों द्वारा काव्य पर किये गए आक्षेपों का निराकरण |
26 | महाकाव्य और त्रासदी की तुलनात्मक मूल्यांकन |
अरस्तू कृत ‘काव्यशास्त्र’ में अध्याय संख्या 12 और 20 प्रक्षिप्त माने जाते हैं।
- अरस्तू ने ‘काव्य-शास्त्र’ की रचना दो दृष्टियों से की है-
- (1) यूनानी काव्य का वस्तुगत विवेचन व विश्लेषण;
- (2) प्लेटो के द्वारा काव्य पर लगाये गए आक्षेपों का समाधान।
- अरस्तू ने महाकाव्य, दुखान्तक प्रहसन आदि को अनुकरण का भेद माना है।
- अरस्तू काव्य के लिये छन्द को अनिवार्य नहीं मानते थे।
- महाकाव्य, दुखान्तक, प्रहसन आदि कलाओं के तीन भेदक तत्व है-
- (1) माध्यम
- (2) विषय और
- (3) पद्धति।
- दुखान्तक (Tragedy) के छह अंग हैं, जो निम्न हैं-
- (1) कथानक (Plot)
- (2) चरित्र (Character)
- (3) विचार (Thought)
- (4) पदयोजना (Diction
- (5) गीत (Song)
- (6) दृश्य (Spectacle)।
- अरस्तू ने काव्य दोषों के पाँच आधार माने हैं-
- (1) असम्भव वर्णन- जो मन को अग्राह्य हो,
- (2) अयुक्त वर्णन- जिसमें कार्य-कारण भाव का अभाव हो,
- (3) अनैतिक वर्ण – जिसमें स्वीकृत मूल्यों की अपेक्षा हो,
- (4) विरुद्ध वर्णन- जहाँ दो विरोधी वस्तुओं का वर्णन हो,
- (5) शिल्पगत दोष- कला सम्बन्धी भूल।
- अरस्तु के ‘काव्यशास्त्र’ में आए कुछ प्रमुख यूनानी शब्द निम्न हैं-
यूनानी शब्द | हिन्दी अनु० | अंग्रेजी अनु० |
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पेरिपेतेइआ (Peripeteia) | स्थिति-विपर्यय | Reversal of the situation |
अनग्नोरिसिस (Anagnorisis) | अभिज्ञान | Recognition |
मिमेसिस (Mimesis) | अनुकरण | Imitation |
कथार्सिस (Katharsis) | विरेचन | |
माइथास (Maithos) | कथावस्तु | Plat |
एथोस (Ethos) | चरित्र | Character |
पाथोस (Pathos) | भाव | Emotion |
प्राक्सिस (Praxis) | कार्यव्यापार | Action |
अरस्तू के काव्यशास्त्र में आए कुछ शब्दों का पारिभाषिक अर्थ निम्नलिखित है-
शब्द | पारिभाषिक अर्थ |
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दुखान्तक | यह ऐसे कार्य-व्यापार का अनुकरण है जो गम्भीर स्वतः पूर्ण तथा कुछ विस्तृत हो, जिसे भाषा में विभिन्न कलात्मक अलंकरणों से विभूषित किया जाता है तथा जो कार्य-व्यापार के रूप में हो न कि आख्यान के किया जाता है तथा जो कार्य-व्यापार के रूप में हो न कि आख्यान के रूप में; जो करुणा एवं भय को उद्धुद्ध कर इन भावों का विरेचन करे। |
स्थिति-विपर्यय | स्थिति-विपर्यय दुखान्तक के अन्तर्गत कथानक में ऐसे परिवर्तन का नाम है जिससे कार्य-व्यापार सर्वथा विपरीत दिशा में मुड़ जाता है। यह मोड़ संभाव्यता या आवश्यकता के अनुसार होता है। |
अभिज्ञान | अभिज्ञान का अर्थ है अज्ञान की ज्ञान में परिणति। यह दुखान्तक के अन्तर्गत कथानक में पात्रों के मन में प्रेम या घृणा उत्पन्न करती है जो पात्रों के सौभाग्य या दुर्भाग्य का कारण बनती है। |
प्रकृति | अरस्तू ने इसके छह अर्थ माने है- (1) यह गति का कारण या साधन है। (2) इसका अर्थ विषय या वस्तु भी होता है। (3) यह तत्व का भी पर्याय है। (4) आकृति या रूप का नाम प्रकृति है। (5) ‘विकास प्रक्रिया’ को प्रकृति कहते हैं। (6) ‘घटक’ को भी प्रकृति कहते हैं। (बुचर के अनुसार प्रकृति वस्तु का वह आन्तरिक धर्म है जो विश्व की सर्जनात्मक शक्ति है।) |
कला | कला प्रकृति का अनुकरण है। |
अनुकरण | वस्तु का उन्नत रूपान्तरण ही अनुकरण है। अतः अनुकरण के तीन अर्थ है- (1) जो वस्तुएँ थी या हैं, (2) उन्हें जैसा कहा या माना जाता है, (3) उन्हें जैसा होना चाहिए। |
चरित्र | जिसके अन्तर्गत सभी विशिष्ट नैतिक गुण या स्थायी चित्तवृत्तियाँ आती हो, वह चरित्र है। |
भाव | भाव अनुभूति या संवेदना की मनोदशा का नाम है। |
कार्य-व्यापार | जो आन्तरिक कार्यों को बोधित करता हो, वह कार्य-व्यापार है। |
विरेचन | यह भारतीय चिकित्साशास्त्र का पारिभाषिक शब्द है। विरेचन मल निष्कासन द्वारा शरीर शोधन की अन्यतम क्रिया का नाम है। कला के क्षेत्र में विरेचन करुणा एवं भय को निष्काषित कर भावात्मक विश्रांति और भावात्मक परिष्कार करती है। |
अरस्तू प्रथम काव्यशास्त्री थे जिन्होंने उपयोगी कला (Art) और ललित कला (Fine Art) का भेद स्पष्ट किया और ललित कला की स्वायत्तता घोषित की।
अरस्तू ने लिखा है, ”कार्य व्यापार में निरत मनुष्य अनुकरण का विषय है।”बूचर के अनुसार, अरस्तू के अनुकरण का अर्थ है, ”सादृश्य-विधान अथवा मूल का पुनरुत्पादन- सांकेतिक उल्लेखन नहीं।
अरस्तू का विरेचन सिद्धांत
1.विरेचन सिद्धांत मूलतः किसका अनुवाद है?
1. इमीटेशन
2.कैथारसिस ✅
3.मिमेसिश
4.औचित्य
2. अरस्तू के परवर्ती विद्वानों ने विरेचन शब्द की व्याख्या किस संदर्भ में नहीं की है??
1. धर्म परक
2. नीति परक
3. आध्यात्म परक ✅
4. कलापरक
3. “यूनानी त्रासदी का प्रयोग कलात्मक अभिरुचि के लिए नहीं बल्कि धार्मिक अंधविश्वास के रूप में महामारी के निवारण के लिए हुआ था।”
1.अरस्तू
2. वर्जिज
3.गिल्बर्ट मरे ✅
4.बूचर
4.विरेचन का कलापरक अर्थ किस विद्वान ने नहीं लिया??
1. नगेन्द्र, गेटे
2.बूचर, नगेन्द्र
3. कारनेस, रेसी ✅
4. एस. एस. गुप्त
5.मनोरोगी का उपचार मनोविश्लेषण शास्त्र के किस प्रणाली द्वारा किया जाता है?
1. दमन प्रणाली
2. उत्तेजना प्रणाली
3.शमनकर प्रणाली
4.उन्मुक्त विचार प्रवाह प्रणाली ✅
6. प्रो. गिल्बर्ट मरे व लिवि ने विरेचन की व्याख्या किस अर्थ में किया है?
1. धर्म परक ✅
2. नीति परक
3. कला परक
4.दर्शन परक
7.विरेचन का उल्लेख अरस्तू के किन रचनाओं में मिलता है?
1. पोयटिक्स, राजनीतिक ✅
2.राजनीतिक, स्टेट्समैन
3. इयोन, सिम्पोजियम
4. तेखनेस, रितोरिकेस
8. अरस्तू के विरेचन को किसने चिकित्सा शास्त्रीय रूपक कहा है?
1. लेसिंग
2. वंड्सवर्थ
3. वर्जिज व डेचेज ✅
4. मिल्टन
9.”संगीत का अध्ययन एक नहीं वरन् अनेक उद्देश्यों की सिद्धि के लिए होना चाहिए ।” वक्तव्य है?
1. प्लेटो
2.अरस्तू ✅
3. मरे
4.बारनेज
10. त्रासदी के अतिरिक्त विरेचन शब्द का उल्लेख अरस्तू ने …………संदर्भ में भी किया है।
1.मन
2.नैतिक
3.संगीत ✅
4. करुणा
11. प्लेटो द्वारा काव्य पर लगाये गये आक्षेप का निराकरण किस सिद्धांत ने किया??
1. अरस्तू – अनुकरण
2. अरस्तू – विरेचन ✅
3. कल्पना – कालरिज
4. काव्य भाषा सिद्धांत – वंड्सवर्थ
12.’पहले मनोवेगों को उत्तेजित करें तदुपरांत उसका शमन कर मनः शांति प्रदान करें।’ बूचर के अनुसार क्या है?
1. नीति अनुरूप
2. धर्म अनुरूप
3. अभावात्मक ✅
4. भावात्मक
13. जर्मन विद्वान बारनेज ने विरेचन की व्याख्या किस अर्थ में किया है?
1. धर्म परक
2. कला परक
3. नीति परक ✅
4. दर्शन परक
14. विरेचन और ……… का घनिष्ठ संबंध देखा जा सकता है।
1.साधारणीकरण ✅
2. अभिव्यंजना
3. वक्रोक्ति
4. रीति
15. “विरेचन से अरस्तू का अभिप्राय कलात्मक सौन्दर्य के अनुभूति गत आनंद से था जिससे मानसिक शांति प्राप्त होती है। ” वक्तव्य है–
1. लेसिंग
2. रिचर्ड्स
3.विलियम मैटिनल डिक्सन ✅
4. वड्सवर्थ
16. अरस्तू ने त्रासदी के कितने अंग माने हैं??
1. 4
2.5
3.6 ✅
4. 7
17. अरस्तू के अनुकरण सिद्धान्त का विरोध किस सिद्धांत से है?
1. सहजानुभूति ✅
2. कल्पना
3.मूल्य
4. काव्य भाषा
18. अरस्तू अनुसार कला —-
1. प्रकृति की अनुकृति है। ✅
2.हू ब हू नकल है।
3. जीवनानुकुलन है।
4. कोई नहीं