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हिंदी साहित्य का रीतिकाल

सन् 1700 ई. के आस-पास हिंदी कविता में एक नया मोड़ आया। इसे विशेषत: तात्कालिक दरबारी संस्कृति और संस्कृत साहित्य से उत्तेजना मिली। संस्कृत साहित्यशास्त्र के कतिपय अंशों ने उसे शास्त्रीय अनुशासन की ओर प्रवृत्त किया। हिंदी में ‘रीति’ या ‘काव्यरीति’ शब्द का प्रयोग काव्यशास्त्र के लिए हुआ था। इसलिए काव्यशास्त्रबद्ध सामान्य सृजनप्रवृत्ति और रस, अलंकार आदि के निरूपक बहुसंख्यक लक्षणग्रंथों को ध्यान में रखते हुए इस समय के काव्य को ‘रीतिकाव्य’ कहा गया। इस काव्य की शृंगारी प्रवृत्तियों की पुरानी परंपरा के स्पष्ट संकेत संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, फारसी और हिंदी के आदिकाव्य तथा कृष्णकाव्य की शृंगारी प्रवृत्तियों में मिलते हैं।

रीतिमुक्त कवि बोधा का परिचय

बोधा का परिचय बोधा का जन्म राजापुर जिला बाँदा मे हुआ यह सरयू पारी ब्राह्मण थे। इनका मूल नाम बुद्धिसेन था। शिव सिंह सरोज के अनुसार इनका जन्म संवत् 1804 (1747 ई. ) मे हुआ। इनका काव्य काल संवत्1830 -1860 (1773