स्काउट में प्राथमिक सहायता (First Aid in Scouting)
प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स की जानकारी प्रत्येक स्काउट/गाइड को प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स की जानकारी होना नितान्त आवश्यक है। प्राथमिक सहायता देने के लिये कुछ सामग्री की आवश्यकता पड़ती है । इस आवश्यक सामग्री को रखने के लिए बनाए गए बॉक्स को फस्ट एड किट कहते हैं
प्राथमिक सहायता किट (First Aid Kit)

किसी औसत प्राथमिक बॉक्स में निम्नलिखित वस्तुएं होनी चाहिए:-
- गोल पट्टी (Roller Bandage) & 4 इंच चौड़ी 2 मीटर लम्बी-8 पट्टियाँ,
- तिकोनी पट्टी (Triangular Bandage) : – 38″ (1 मीटर) का वर्गाकार सफेद व सस्ता कपड़ा लेकर उसे कर्णवत् काट कर किनारे की सिलाई कर दें। ऐसी-4 पट्टियाँ।
- गॉज-1/2 इंच चौड़ी 4 इंच लम्बी पोलिथीन में रखी प्रेशरकुकर में उबालकर – गॉज।
- चिकनी पट्टी3 इंच चौड़ी-12 पट्टियाँ।
- गर्म पट्टी- 3 इंच चौड़ी-1 रोल।
- कैंची-1
- चिमटी-2
- डिटोल की शीशी-1
- सोफ्रामाइसीन ट्यूब-1
- पोलिथीन में लिपटी हुई मोटी गॉज की गद्दियाँ-3
- टिंचर आयोडीन या आयोडैक्स-2 डिबियां।
- रुई का पैकेट-1
- लिन्ट पाउडर-50ग्राम
- एडेसिव प्लास्टर
- एन्टी सैफटिक क्रीम या लोशन
- (खपच्चियों) स्पिलिन्टस
- सेफ्टी पिन -12
- थर्मामीटर-1
- ड्रापर -1
- आइ-वॉश कप-1
- नपना गिलास-1
- सोडियम बाइकार्बोनेट या खाने का सोडा
- सर्जिकल ब्लेड/साधारण ब्लेड
- अन्य आवश्यक दवाइयाँ जैसे:-
-सादा नमक।
– पैरा सिटामौल
– हरा पोदीना
– ग्लूकोज
– इलैक्ट्रोल
– आई ड्राप व एयर ड्राप
-बरनौल
-टूनिकेट, साबुन, तौलिया आदि।
प्राथमिक सहायता (First Aid)
परिभाषा-
दुर्घटना के समय डॉक्टरी सहायता मिलनेसे पूर्व घायल व्यक्ति को दी जाने वाली सहायता को प्राथमिक सहायता कहते हैं.
प्राथमिक सहायक की आवश्यकता घरों, कारखानों, सड़क दुर्घटनाओं, प्राकृतिक प्रकोप जैसे-भूचाल, बाढ़, युद्ध, महामारी आदि में पड़ती है।
एक प्राथमिक चिकित्सक के कार्यों को संक्षेप में तीन भागों में बांटा जा सकता है।:-
1. डॉक्टर के आने तक या रोगी को डॉक्टर के पास पहुंचाने तक रोग व तकलीफ को बढ़ने से रोकना।
2.रोगी का जीवन बचाना।
3. चिकित्सक के पास पहुंचाना।
प्राथमिक सहायक के गुण
एक कुशल प्राथमिक सहायक में निम्नलिखित गुण होने चाहिए:-
*
- उसमें नेतृत्व की क्षमता हो, वह साहसी हो, भीड़ नियंत्रण कर सके तथा स्थानीय आवश्यक सहायता ले सकें।
- निरीक्षण शक्ति तीव्र हो ताकि रोग का कारण जान सके।
- आत्मसंयम व शान्ति से काम करे तथा आतंक न मचाये।
- रोग की प्राथमिकता के आधार पर उपचार करे।
- व्यवहार कुशल हो। रोगी और उसके परिजनों को सांत्वना दे सके।
- अपने कार्य में दक्ष हो।
- प्रत्युत्पन्नमति तथा आत्म-विश्वासी हो अर्थात् सूझबूझ से काम ले सके।
प्राथमिक सहायता के स्वर्णिम नियम-
- अति आवश्यक कार्य पहले करें।
- सबसे अधिक आवश्यकतावाले रोगी को पहले प्राथमिक सहायता दें।
- सांस रूकने वालेव्यक्ति को सबसे पहले कृत्रिम श्वास दें। उसके लिए प्रत्येक सैकिण्ड महत्वपूर्ण है।
- रक्त स्त्राव को तुरंत रोकें।
- रोगी व उसकेपरिजनों को सान्त्वना दें।
- भीड़ को हटायें और रोगी को ताजी हवा आने दें।
- रोगी को अस्पताल पहुंचाने या डाक्टर को बुलाने की तुरन्त व्यवस्था करें।
- उनके घर पर भी सूचना भिजवाने की व्यवस्था करें।
- रोगी को गर्म रखें।
- घाव को ढक कर रखें।
अस्थि-भंग के प्रकार व उपचार
हड्डी की टूटन या दरार को अस्थि-भंग कहते है। यह टूटन निम्नांकित तीन प्रकार की हो सकती है:-
1. साधारण अस्थि-भंग –
इसमें हड्डी में दरार आ सकती है किन्तु त्वचा यथावत रहती है।
लक्षण –
हड्डी के टूटने के स्थान पर रोगी को दर्द होता है। अंग कार्य नहीं करता तथा रोगी को सदमा हो सकता है। उस हिस्से पर हाथ लगाने से दर्द होता है। टूटे भाग में सूजन आ जाती है। वह भाग विकृत दिखता है तथा टूटी हड्डी में किरकिराहट की आवाज आती है।
उपचार –
टूटे भाग पर खपच्ची या उपलब्ध सामग्री बांध दें। रोगी को सांत्वना दें। सदमे की स्थिति में उसका उपचार करें तथा डॉक्टर को बुलाने या रोगी को चिकित्सालय तक पहुंचाने की व्यवस्था करें।
2. मिश्रित अस्थि भंग –
इसमें हड्डी टूटने के अलावा कोई अयव, धमनी, सिरा या नस भी प्रभावित रहती है।
लक्षण –
व्यक्ति टूटे हुए अंग को साधारण रूप में प्रयोग नहीं कर पाता, हड्डी के तीखे या टूटे किनारों के बीच के भाग को अनुभव किया जा सकता है। टूटे स्थान पर दर्द होता है तथा सूजन आ जाती है। यह अंग छोटा या टेढ़ा हो जाता है जिससे रोगी सामान्य अवस्था में कार्य नहीं कर पाता। अंग निर्जीव व विकृत-सा लगता है। टूटी हड्डी के किनारों से किट किट की आवाज आती है।
उपचार –
- अस्थि भंग को सीधा करने का प्रयास न करें।
- मिश्रित अस्थि भंग की स्थिति में घाव को रोगाणुरोधक पट्टी से ढक दें तथा घाव पर मरहम पट्टी कर दें।
- आकर्षक पट्टी बांधने में समय नष्ट न करें।
- पोले स्थानों को भरने के लिये गदियों का प्रयोग करें।
- आस-पास के जोड़ों को गतिहीन कर दें।”सख्त खपच्ची का प्रयोग न करें।
- अस्थि भंग स्थान से ऊपर पहले पट्टी बांधे।
- खपच्ची लगाने से पूर्व गद्दी लगायें तथा खपच्ची उचित आकार की हो।
- यदि खुला घाव हो तो पहले खून का बहना बन्द करें।
जबड़े की हड्डी का टूटना (Jaw Fracture)-
- सदमे का उपचार करें
- रोगी को चिकित्सालय पहुँचाने की व्यवस्था करें।
3. विषम टूट (Complicated Fracture)
इसमें हड्डी टूटने के साथ-साथ ‘मांस पेशियां, फैफडे, रीढ़ की हड्डी, जिगर, तिल्ली या मस्तिष्क को भी चोट पहुँचती है।
हड्डी टूटने की पहचान:-
- उस स्थान के अंग का शक्तिहीन हो जाना।
- सूजन आ जाना, वहां अत्याधिक दर्द होना।
- उस स्थान पर विकृति आ जाना।
- हड्डी का अपने स्थान से अस्तव्यस्त हो जाना, उस अंग का लटक जाना।
- हिलाने डुलाने पर कर-कर की आवाज़ आना।
उपचार-
रोगी को हिलाने डुलाने न दें, तुरंत अस्पताल भिजवायें।
भुजा की हड्डी का टूटना (Arm Fracture)
- यदि कुहुनी मोड़ी जा सके तो उसे धीरे-धीरे मोड़कर सीने पर लायें।
- हाथ व सीने के मध्य गदियों का प्रयोग करें।
- हंसली व कलाई बंध झोली (Collar &Cuff Sling) का प्रयोग करें।
- भुजा को हिलाने-डुलाने से बचाने के लिये तथा उसे छाती पर स्थिर रखने के लिये एक आड़ी पट्टी या दो चौड़ी पट्टियों, एक कन्धे के निकट दूसरी कुहनी के नीचे से बांध दें।
- यदि कुहनी मोड़ना सम्भव न हो तो हाथ से तीन जगह चौड़ी पट्टी से बांध दें।
हंसली की हड्डी का टूटना (Fracture of CollarBone )
हंसली की हड्डी टूटने पर आहत व्यक्ति दूसरे हाथ कुहनी को सहारा देता है। तथा सिर को उसी ओर झुकाता।
उपचार –
- जिस ओर की हंसली की हड्डी टूटी हो उस हाथ को सहारा दें। दोनों कन्धों पर संकरी पट्टी इस प्रकार बांधे के गाँठ आगे हो।
- काँरव में गद्दी रखें।
- दोनों पट्टियों को स्थिर रखने के लिये एक तीसरी पट्टी गोलाई में छाती पर बांध दें।
- हाथ को सीने पर मिलाकर एक तिकोनी झोली (St. John’s Sling) प्रकार बांधे कि गाँठ कन्धे में रहें।
- यदि दोनों ओर से हंसली की हड्डी टूटी हो तो दोनों हाथों को सीने पर क्रास पोजीशन में रखकर चौड़ी पट्टी बांध दें।
पैर की हड्डी का टूटना (Fracture of Feet)
पैर की हड्डी टूटने पर पैर को धीरे-धीरे सीधा करें। गद्दी युक्त खपच्ची लगाकर अंग्रेजी के आठ के आकार में पैर व टखने पर पट्टी बाधें । जांघ व घुटनों पर चौड़ी पट्टी बांधे। दो और पट्टियाँ एक टूटे स्थान के ऊपर दूसरी कुछ नीचे बांध दें। इस प्रकार कुल पाँच पट्टियाँ बांधनी होगी।
यदि जांघ की हड्डी टूटी हो तो खपच्ची हाथ की काँख से पैर तक लगानी होगी। पहली पट्टी काँख के निकट, दूसरी कमर पर, तीसरी टखनों पर, चौथी जांघ पर टूटे स्थान के ऊपर, पाँचवीं टूटे स्थान के नीचे, छठी दोनों पैरों पर तथा सातवीं दोनों घुटनों पर बांध दें।
कमर की हड्डी टूटने का उपचार
कूल्हे या कमर की हड्डी प्रायः सीधी चोट के कारण टूटती है। जब भारी मलवा गिर जाय अथवा ऊँचाई से पैर को कड़ा करते हुए दोनों पैरों के बल जोर से गिरने से। जब कूल्हा टूट जाय तो भीतरी अंग विशेषकर मूत्राशय तथा मूत्र मार्ग भी चोटिल हो सकते है।
लक्षण –
हिलने या खांसने से कमर के आस-पास की पीड़ा बढ़ जाती है। निचले अंगों में चोट न लगने पर भी आहत व्यक्ति खड़ा नहीं हो सकता। भीतरी अंगों में रक्त स्त्राव हो सकता है। मलमूत्र त्याग की बार-बार इच्छा होती है।
उपचार –
घायल को ऐसी स्थिति में सीधे लिटाइये जिसमें उसे अधिक आराम मिले । पीठ के बल लेटा कर घुटने सीधे रखें, घुटनों को थोड़ा मोड़ना हो तो उन्हें तह कर कम्बल से सहारा देना चाहिए। हो सके तो वह मलमूत्र रोके रखें। यदि चिकित्सालय दूर हो तो कूल्हे के आस-पास दो चौड़ी पट्टी बाँध दें, घुटनों और टखनों के बीच पट्टियाँ लगा दें। घुटनों और टखनों पर अंग्रेजी के आठ के आकार की पट्टी बाँध दें। रोगी को स्ट्रेचर पर औषधालय ले जायें।
सदमा (Shock) लगने पर प्राथमिक चिकित्सा कैसे लें
शरीर अथवा मस्तिष्क के आवश्यक कायों में व्याप्त उदासीनता की दशा को सदमा कहते हैं । यह रुधिर संचार व्यवस्था में अव्यवस्था का परिणाम है।
कारण –
आन्तरिक या बाह्य रक्त-स्त्राव, अस्थि-भंग, दबने, डूबने, जलने, झुलसने, विषपान या सर्पदंश आदि से सदमा होता है।
लक्षण –
रोगी ठण्ड का अनुभव करता है, शरीर ठण्डा व पसीने से तर हो जाता है। होंठ व चेहरा पीला पड़ जाता है। वह बैचेनी का अनुभव करता है, नाड़ी मंद चलती है तथा सांस तेज हो जाती है, जीभ सूख जाती है। गम्भीर सदमे की स्थिति में रोगी अचेत हो जाता है।
उपचार –
सर्व प्रथम सदमे का कारण जानना चाहिए। यदि रक्तस्त्राव हो रहा हो तो उसे रोकने का प्रयास करें। यदि रोगी अचेत न हो तो उसे चित्त लिटाकर सिर को शरीर के स्तर से कुछ नीचे व पैरों को ऊपर रखें। कपड़ों को ढीला कर दें और पसीना पोंछ दें। जीभ सूखने पर पूंट-घूट कर पानी या बर्फ के टुकड़े दें। रोगी को सांत्वना दें और यथाशीघ्र औषधालय पहुँचाने की व्यवस्था करें।
बिजली का सदमा ( Electric Shock)-
किसी व्यक्ति को बिजली का सदमा लगने पर सर्वप्रथम विद्युतधारा को अलग करें। मेन स्विच बन्द कर दें। यदि रोगी विद्युत तार पर चिपका हो तो सावधानी से किसी कुचालक वस्तु जैसे-सूखी लाठी, कागज का बन्डल आदि से उसे तार से अलग करें। यदि कृत्रिम सांस देने की आवश्यकता हो तो दें। रोगी को यथा शीघ्र औषधालय पहुँचाने की व्यवस्था करें।
बेहोशी (Fainting) होने से प्राथमिक चिकित्सा कैसे लें
बेहोशी (Fainting) – मस्तिष्क में रक्त कम पहुँचने के परिणाम स्वरूप बेहोशी होती है।
कारण –
थकावट का होना, भोजन की कमी, शक्ति से अधिक परिश्रम, संवेग की स्थिति में, मानसिक सदमा या भय का होना, खून का दृश्य देखकर, अपने प्रिय की दुर्घटना या मृत्यु देखकर, किसी दुर्घटना का शिकार होने पर, शरीर में रक्त कमी होने से, ऑपरेशन के समय, स्वच्छ हवा की कमी, मौसम की कठोरता व तीव्रता आदि कारणों से बेहोशी हो सकती है।
लक्षण –
चक्कर आना, भूमि पर गिर पड़ना, त्वचा व चेहरे का पीला पड़ना व चेहरे पर पसीना होना, सांस हल्की व मंद चलना, नाड़ी की गति धीमी व मन्द हो जाना आदि।
उपचार –
रोगी को पीठ के बल लिटा दें पर पैर कुछ ऊंचे रखें, कपड़े ढीले कर दें। रोगी के आस-पास भीड़ न लगने दें ताकि उसे स्वच्छ हवा मिल सके। चेहरे पर पानी के छीटें दें। यदि नमक उपलब्ध हो तो उसे सुंघायें। रोगी के ठीक होने पर उसे गर्म चाय या कॉफी दें।
लू लगना (Sun-Stroke) )
हमारे शरीर का तापमान लगभग 36.7° सेन्टीग्रेड या 98.4 फौरनहाइड रहता हैं। ग्रीष्म ऋतु में जब अत्यधिक गर्म हवायें चलने लगती है जिनमें नमी कम हो जाती है और तापमान 37.2 से. या 99° फैरनहाइट से अधिक हो जाता है तो धूप में चलने से व्यक्ति का तापमान भी तीव्रता से बढ़ जाता है।
रोगी को थकावट, सिरदर्द, जी मचलाना, गिर पड़ना आदि लक्षण होते हैं । अतः ऐसे रोगी को ठंडे स्थान पर पीठ के बल लिटा दें। अनावश्यक वस्त्र उतार दें। रोगी के शरीर पर पानी का छिड़काव करें। सिर थोड़ा ऊँचा रखें। धड़ के ऊपर गीले तौलिये से बार-बार शरीर पोछे। सीने व पीठ पर गीली पट्टी रखें। कच्चे आम को भूनकर पानी पिलायें। नींबू की शिंकजी, प्याज का रस और पुदीने का पानी भी पिलाया जा सकता है।
गर्मी लगना (Heat Exhaustion)
गर्मी के दिनों में भीषण गर्मी के कारण यह स्थिति बनती है। चित कपड़े न पहनने, गर्म बन्द कमरे में जहाँ हवा का आगमन न हो अथवा आदमियों से भरे कमरे या गाड़ी में, ताजी हवा न मिलने वाली जगहों में काम करने वाले मजदूरों, सफर में जाने या परेड में उपस्थित होने वाले सिपाहियों को अधिकतर गर्मी लगने की शिकायत रहती है।
इसमें रोगी को चक्कर आने लगते है। सिर घूमने की शिकायत होती है, थकावट अनुभव होती है। चमड़ी गर्म और शुष्क हो जाती है। नाड़ी मंद पड़ जाती है। शरीर का तापमान कम हो जाता है। बेचैनी महसूस होती है। शरीर में पानी की मात्रा कम पड़ जाती है।
इसके बचाव के लिये हल्के और ढीले कपड़े पहनें अधिक मात्रा में पानी पियें, मरीज को ठण्डे स्थान पर ले जायें। सिर और गर्दन पर पानी डालें। पंखा हो तो पंखे से हवा करें। मूर्छा और कमजोरी का इलाज करें
दम घुटने (Choking) से प्राथमिक चिकित्सा कैसे लें
दम घुटना (Choking) -श्वास नली में सांस लेने में अवरोध होने पर दम घुटने का अनुभव होता है।
कारण –
गले में भोजन, फल या अन्य चीज अटक जाने पर सांस लेने में बाधा पड़ती है।
लक्षण –
रोगी को अचानक खांसी होती है, चेहरा पीला पड़ जाता है तथा शरीर ढीला पड़ जाता है।
उपचार –
रोगी को पूरे जोर से खांसने को कहें। यदि बड़ी चीज अटकी हो तो एक हाथ से रोगी की कमर पकड़कर गर्दन आगे झुका दें। दूसरे हाथ से गले के निकट पीठ में मुट्ठी से मारें। तीन बार मारने पर वह वस्तु बाहर न निकले तो पेट दबाने की विधि अपनाएं। इस प्रक्रिया में खड़े तथा लिटाकर पेट को दबाया जाता है। यदि यह विधि भी असफल रहे तो तर्जनी अंगुली को गले में डालकर अटकी वस्तु निकाल दी जाती है। पेट दबाने की (Heimlich’s Manocurer) ठीक तकनीक अपनाएं।
डूबने (Drawning) से प्राथमिक चिकित्सा कैसे करें
डूबना (Drawning)-
डूबने की घटनाएं आये दिन होती रहती हैं। प्रत्येक स्काउट/गाइड को डूबते को बचाने की कला आनी चाहिए। बचाने वाले को तैरने का अच्छा अभ्यास हो। कभी-कभी डूबता व्यक्ति बचाने वाले पर इस प्रकार लिपट जाता है कि उसे भी डुबा सकता है। अतः ऐसी स्थिति में अपने को तुरन्त छुड़ा लेना चाहिए।
अपने को सदैव उसके पीछे रखें । डूबते व्यक्ति को चित्त कर उसकी कुहनी या गर्दन के पीछे पकड़कर स्वयं भी पीठ के बल तैरना चाहिए। यदि बचाव दल पास में हो तो जीवन रक्षक डोरी का प्रयोग किया जा सकता है। डूबते हुए व्यक्ति के पेट में पानी भर जाने की स्थिति में उसका उपचार करें।
उसे रेत पर औंधा मुंह कर लिटा दें तथा पानी बाहर निकालने का अभ्यास शुरु करें। अचेतावस्था में उसे कृत्रिम सांस दें । कृत्रिम सांस-देते समय देख लें कि उसकी जीभ गले में न अटक जाये। सदमे का इलाज करें तथा डॉक्टर को बुलायें।
कपड़ों पर आग लगना-
किसी के कपड़ों पर आग लग जाय तो व्यक्ति को पर को तुरंत भूमि पर लिटा दें। कम्बल या मोटे कपड़े से ढक दें। जिस व्यक्ति के वस्त्रों आग लगी हो, वह इधर-उधर भागे नहीं वरन् जमीन पर लेट कर पल्टी मारे ताकि आग को ऑक्सीजन न मिल सकें। अधिक घायलावस्था में तुरंत चिकित्सक दिखायें अथवा चिकित्साालय पहुँचायें।
वाहन-दुर्घटना पर क्या करें ?
वाहन दुर्घटना में तुरंत पुलिस को सूचित करें। वाहन के अंदर फंसे व्यक्तियों को बाहर निकालें। वाहन की चपेट में आने पर घायल व्यक्ति को आवश्यकतानुसार प्राथमिक सहायता दें। यदि पुलिस के आने में देरी हो तो किसी अन्य वाहन से घायल को पास के चिकित्सालय में पहुँचायें, सम्भव हो तो घायल व्यक्ति के परिजनों को सूचना दें।
कामचलाऊ डोली (Improvised Stretcher)
बीमार या जख्मी व्यक्ति को ले जाने के लिए चिकित्सालयों में लोहे की स्टेचर (Iron Stretcher) काम में लाई जाती है किन्तु स्काउट देश-काल-परिस्थिति के अनुसार रोगी को ले जाने के लिये कामचलाऊ (कृत्रिम) डोली बना लेते हैं जैसे हाथों से | (Hand Sheets)] लाठी और कम्बल, चादर, दरी आदि से, लाठी व रस्सी अथवा लाठी-कमीज पेटी, स्कार्फ आदि की सहायता से।
रोगी की हालत देखकर आवश्यकतानुसार दो हाथ, तीन हाथ या चार हाथों की शीट तैयार कर ली जाती है। यदि रोगी को हल्की चोट हो तो दो हाथ, यदि रोगी का सामान/ थैला आदि भी ले जाना हो तो तीन हाथ की शीट, यदि रोगी को गम्भीर चोट हो तो चार हाथ की शीट पर उठाया जा सकता है।
यदि रोगी अचेत हो या अस्तिभंग हो तो काम चलाऊ लाठी-कम्बल आदि की डोली (Stretcher) बनाकर उठाना चाहिए। एक अच्छा प्राथमिक सहायक बनने के लिये आप सेंट जॉन एम्बूलेंस की प्राथमिक सहायता पुस्तक का अध्ययन कर सकते हैं और उनके द्वारा आयोजित कोसों में सम्मिलित हो सकते हैं।
घायल व्यक्तियों को कैसे सुरक्षित स्थान में पहुँचाना होता है ?
किसी घायल को सुरक्षित स्थान में निम्नलिखित विधियों से ले जाया जा सकता है:-
- एक ही सहायक से सहारा देकर।
- हस्त आसन (Hand Seats) पर।
- बैसाखी पर (Stretcher)।
- पहिए वाली गाड़ी पर (Wheeled Transport) ।
भेजने के ढंग या ढंगों का निर्णय निम्नलिखित बातों पर किया जायेगा:-
- चोट की दशा।
- चोट की भीषणता।
- उपलब्ध सहायकों की संख्या।
- जाने वाले मार्ग की दशा।
उपचार के बाद ध्यान देने योग्य बातें
प्राथमिक सहायता उपचार के उचित उपचार के बाद निम्नलिखित सिद्धांतों को ध्यान में रखना चाहिए:-
(1) रोगी जिस आसान में हो या जिस स्थिति में रखा जाए उसे अनावश्यक न बदलिए।
(2) रोगी को ले जाते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान अवश्य रखना चाहिए।
- रोगी की साधारण दशा।
- कई मरहम पट्टी इत्यादि जो बांधी गई हो।
- रक्त स्त्राव का पुनः होना।
(3) रोगी को ले जाने का कार्य अवश्य सुरक्षित, सधा हुआ तथा शीघ्र होना चाहिए।
- वाहकों द्वारा उठाना (प्रथम गति)
- दो वाहकों द्वारा उठाना (द्वितीय गति)
जब घायल को उतार रहे हों तो उसका सिर सबसे आगे बैसाखी के सिर के ऊपर उठा कर ले जाएँ।
जलने व फफोलों का उपचार (Burns & Scalds)
मामूली जलने पर उस अंग को ठण्डे पानी में डुबा देना चाहिए। गर्म लोहा, बिजली, रस्सी की रगड़ अथवा रसायनों से शरीर का कोई भाग जल सकता है। जबकि गर्म भाप, उबलते पानी, गर्म तेल आदि से जलने पर फफोले पड़ जाते हैं। गम्भीर रूप से जलने व फफोले पड़ने पर रोगी को सदमे से बचायें तथा कम्बल से ढक दें। गर्म चाय दें।
फफोले को कदापि न फोड़ें। प्राथमिक सहायक के हाथ साफ हों तथा घाव को न छूएं। घाव को गर्म किये गांज से ढक कर पट्टी बांध दें। डिटौल के घोल से जले घाव को धीरे से साफ करें
डंक लगना व काटना (Stings & Bites)
मधुमक्खी, भौरा, ततैया आदि के काटने पर सर्वप्रथम डंक निकाल लेना चाहिए। सोडियम बाईकाबोनट से घाव धोना चाहिए।
बिच्छू का काटना (Scorpion Bites )
गर्म -पानी में कपड़े की गददी भिगोकर दस पन्द्रह मिनट तक बार-बार रखें। लहसुन पास कर डकलगे स्थान पर लगा दें।
सर्प दंश या सांप काटने (Snake Bite) पर कैसे करें
सर्प के काटने पर तुरन्त डॉक्टर को बुलाना चाहिए। सर्प की पहचान करनी चाहिए। यदि सर्प अधिक जहरीला हो तो तुरन्त कार्यवाही की जानी चाहिए। टूनिकेट या बन्ध का प्रयोग कर जहर को हृदय की ओर जाने से रोकें तथा जहर को बाहर निकालने के लिये तेज धार के चाकू या
ब्लेड से. (घन) के चिन्ह का कट लगाकर जहर मिश्रित रक्त को बहनें दें। फिर घाव का पोटेशियम परमेग्नेट से धो डालें। रोगी को गर्म रखें तथा सोने न दें।
मोच आने (Sprain) से कैसे उपचार करें
जोड़ों के चारों ओर के अस्थिबन्धन तन्तुओं में खिंचाव आने से फटने से मोच आती है। इस दशा में रोगी के जोड़ों दर्द होता है। सूजन आ जाती है। रोगी उस अंग को हिला नहीं सकता। मोच आने पर रोगी को हिलने-डुलन न दे तथा मोच पर कसकर पट्टी बाध दें। ठण्डे पानी से पट्टी को भिगोते रहें। रोगी को डॉक्टर को दिखावें।
ड्रेसिंग (Dressing)
यह वह आवरण (Covering) है जिससे घाव या आहत अंग ढका जाता है। इससे खून का बहना, घाव का फैलाव तथा रोगाणुओं से रक्षा की जाती है।
ड्रेसिंग के प्रकार
यह दो प्रकार से की जा सकती है- सूखी (Dry)और नम (Wet)।
सूखी ड्रेसिंग का तात्पर्य है कि जब घाव खुला हो- उस पर रोगाणुमुक्त ड्रेसिंग (Sterilized Dressing) करनी हो, खुले या जले घाव या रक्त श्राव की स्थिति में सूखी ड्रेसिंग की जाती है। यह ड्रेसिंग रोगाणुमुक्त (Sterilised) मिलती है। यदि इस प्रकार की ड्रेसिंग उपलब्ध न हो तो किसी साफ सफेद कपड़े का प्रयोग करना चाहिए। इसके अभाव में किसी साफ रुमाल या स्कार्फ का प्रयोग करना चाहिए। ड्रेसिंग करने से पूर्व प्राथमिक चिकित्सक को अपने हाथों को रोगाणु रोधक घोल से अच्छी तरह धो लना चाहिए। इसके बाद ही रोगाणु रोधक घोल या लोशन से घाव साफ करना चाहिए। घाव के ऊपर ड्रेसिंग रख कर रुई से ढक कर पट्टी बांधनी चाहिए।
नम ड्रेसिंग को बन्द घाव पर प्रयुक्त किया जाता है। इसका प्रयोग खुले घाव पर कदापि न करें और न ही रोगाणुरोधक ड्रेसिंग का प्रयोग करें। इसमें ठण्डे पानी की या बर्फ की सेंक (Cold Compress) दी जाती है। बन्द घाव में टिंचर आयोडीन या टिंचर बैन्जोइन का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए। आहत अग पर अन्तः रक्तश्राव या सूजन की स्थिति में नम ड्रेसिंग का प्रयोग किया जाना चाहिए। किसी स्वच्छ तौलिये, रुमाल या वस्त्र को पानी में भिगो कर उसे निचोड़कर घाव पर रखते रहना चाहिए.
कटने तथा खरोच का उपचार –
प्राथमिक चिकित्सक को डिटोल या किसी कीटाणु नाशक से अपने हाथ धोकर गाँज रखने के बाद उस पर पट्टी बांध
देनी चाहिए ताकि धूल, मक्खी व कीटाणुओं से बचाव हो।