संत काव्य / निर्गुण काव्य की विशेषताएँ

संत काव्य /निर्गुण काव्य की विशेषताएँ-

संत काव्य / निर्गुण काव्य की विशेषताएँ
संत काव्य / निर्गुण काव्य की विशेषताएँ

संत काव्य / निर्गुण काव्य की विशेषताएँ

धार्मिक क्षेत्र में :

  • निर्गुण निराकार ईश्वर में विश्वास
  •  गुरु की महत्ता
  • योग व भक्ति का समन्वय
  •  पंचमकार
  •  अनुभूति की प्रामाणिकता व शास्त्र ज्ञान की अनावश्यकता
  • धार्मिक रूढ़ियों व सामाजिक कुरीतियों का विरोध
  •  संप्रदायवाद का विरोध;
  •  रहस्यवाद का प्रभाव

सामाजिक क्षेत्र में:

  •  जाति प्रथा का विरोध व हिन्दू-मुस्लिम एकता का समर्थन
  •  समानता के प्रेम पर बल;
  • लौकिक प्रेम द्वारा अलौकिक/आध्यात्मिक प्रेम की अभिव्यक्ति

शिल्पगत क्षेत्र में:

  • मुक्तक काव्य-रूप
  • मिश्रित भाषा
  •  उलटबाँसी शैली (संधा/संध्याभाषा-हर प्रसाद शास्त्री)
  • पौराणिक संदर्भो व हठयोग से संबंधित मिथकीय प्रयोग
  • प्रतीकों का भरपूर प्रयोग।
  • लोक भाषा का प्रयोग।

रामचन्द्र शुक्ल ने कबीर की भाषा को ‘सधुक्कड़ी भाषा’ की संज्ञा दी है।

श्यामसुंदर दास ने कई बोलियों के मिश्रण से बनी होने के कारण कबीर की भाषा को ‘पंचमेल खिचड़ी’ कहा है।

बोली के ठेठ शब्दों के प्रयोग के कारण ही हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर को ‘वाणी का डिक्टेटर’ कहा है।

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