बरखा आथे कक्षा 6 हिन्दी
बरखा आथे
खेती ल हुसियार बनाय बर भुइयाँ म बरखा आथे।
जिनगी ल ओसार बनाय बर भुइयाँ म बरखा आथे।
सोन बनाय बर माटी ल सपना ल सिरतोन बनाय बर,
आँसू ल बनिहार बनाय बर भुइयाँ म बरखा आथे।
बाजत रहिथे झिमिर झिमिर रोज चिकारा अस बरखा के।
बाजत रहिथे घड़-घड़-घड़ रोज नंगारा अस बरखा के।
खुसियाली के चिट्ठी लेके बादर दुरिहा – दुरिहा जाथे,
करिया करिया बादर ल समझव हलकारा अस बरखा के।
जोत जोगनी के तारा अस जुग-जुग बरथे अँधियारी म आसा,
मन के, बिजली बन के चम चम करथे अँधियारी म
मेचका मन के आरो मिलथे कपस कपस जाथे लइका हर,
हवा बही कस कभू उदुप कहूँ खुसरथे अँधियारी म ।
कहूँ तोरइ, तूमा, रमकेलिया झूलत होवे बखरी म ।
कहूँ करेला-कुँदरु अउ रखिया फूलत होवे बखरी म ।
कहूँ जरी ह लामे होही, बरबट्टी ह ओरमे होही ।
खुस होके लड़का- पिचका मन बूत होही बखरी म ।
अतका पानी दे तैं, जतका जिनगी के बिस्वास माँगथे।
अतका पानी दे तैं, जतका अन लछमी ह साँस माँगथे।
मोर देस के गाँव-गाँव ल अतका पानी दे तैं बरखा,
जतका पानी पनिहारिन ल तरिया तीर पियास माँगथे।