भारत दुर्दशा (भारतेन्दु हरिश्चन्द्र) : प्रमुख बिंदु

भारत दुर्दशा (भारतेन्दु हरिश्चन्द्र) : प्रमुख बिंदु

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा सन 1875 ई में रचित एक हिन्दी नाटक है।

भारत दुर्दशा (भारतेन्दु हरिश्चन्द्र) : प्रमुख बिंदु - भारत दुर्दशा भारतेन्दु हरिश्चन्द्र - हिन्दी साहित्य नोट्स संग्रह

भारत दुर्दशा में भारतेन्दु ने अपने सामने प्रत्यक्ष दिखाई देने वाली वर्तमान लक्ष्यहीन पतन की ओर उन्मुख भारत का वर्णन किया है।

भारतेन्दु ब्रिटिश राज और आपसी कलह को भारत की दुर्दशा का मुख्य कारण मानते हैं। तत्पश्चात वे कुरीतियाँ, रोग, आलस्य, मदिरा, अंधकार, धर्म, संतोष, अपव्यय, फैशन, सिफारिश, लोभ, भय, स्वार्थपरता, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, अकाल, बाढ़ आदि को भी भारत दुर्दशा का कारण मानते हैं। लेकिन सबसे बड़ा कारण अंग्रेजों की भारत को लूटने की नीति को मानते हैं।

अंग्रेजी काल के समय भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का भारत दुर्दशा नाटक प्रकाशित हुआ। उन्होंने लिखा-

रोअहु सब मिलिकै आवहु भारत भाई।
हा हा! भारतदुर्दशा न देखी जाई ॥
भारत दुर्दशा एक दुखान्त नाटक है।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

भारत दुर्दशा अतीत गौरव की चमकदार स्मृति है, आँसू-भरा वर्तमान है और भविष्य-निर्माण की भव्य प्रेरणा है। इसमें भारतेंदु का भारत प्रेम करुणा की सरिता के रूप में उमड़ चला आया है। आशा की किरण के रूप में झिलमिला उठा है।

डॉ जयनाथ नलिन

‘भारत दुर्दशा’ में छः अंक है।

भारत-दुर्दशा’ की भाषा भी सीधे जनता से जुड़ी भाषा है।

Comments are closed.