दिव्या-यशपाल

‘दिव्या’ का कथानक बौद्धकाल की स्मृतियों पर आधारित है। ‘दिव्या’ यशपाल के श्रेष्ठ उपन्यासों में एक से है। इस उपन्यास में युग-युग की उस दलित-पीड़ित नारी की करुण कथा है, जो अनेकानेक संघर्षों से गुज़रती हुई अपना स्वस्थ मार्ग पहचान लेती है। यशपाल जी का ‘दिव्या’ एक काल्पनिक ऐतिहासिक उपन्यास है।  उपन्यास में वर्णित घटनाएँ पाठकों के हृदय को गहराई से प्रभावित करती हैं।

दिव्या-यशपाल - Divya Yashpal - हिन्दी साहित्य नोट्स संग्रह

‘दिव्या’ इतिहास नहीं, ऐतिहासिक कल्पना मात्र है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर व्यक्ति और समाज की प्रवृत्ति और गति का चित्र है। लेखक ने कला के अनुराग से काल्पनिक चित्र में ऐतिहासिक वातावरण के आधार पर यथार्थ का रंग देने का प्रयत्न किया है। चित्र में त्रुटि रह जाना सम्भव है। उस समय का हमारा इतिहास यथेष्ट प्राप्य नहीं। जो प्राप्य है, उस पर लेखक का विशेष अधिकार नहीं। अपनी यह न्यूनता जान कर भी लेखक ने कल्पना का आधार उसी समय को बनाया; कारण है-उस समय के चित्रमय ऐतिहासिक काल के प्रति लेखक का मोह। सूक्ष्मदर्शी पाठक के प्रति इनसे अन्याय हो सकता है। असंगति देख कर उन्हें विरक्ति हो सकती है।

अपने अतीत का मनन और मन्थन हम भविष्य के लिये संकेत पाने के प्रयोजन से करते हैं। वर्तमान में अपने आपको असमर्थ पाकर भी हम अपने अतीत में अपनी क्षमता का परिचय पाते हैं। इतिहास घटनाओं के रूप में अपनी पुनरावृत्ति नहीं करता। परिवर्तन का सत्य ही इतिहास का तत्त्व है परन्तु परिवर्तन की श्रृंखला में अपने अस्तित्व की रक्षा और विकास के लिये व्यक्ति और समाज का प्रयत्न निरन्तर विद्यमान रहा है। यही सब परिवर्तनों की मूल शक्ति है।

इतिहास का तत्त्व परिस्थितियों में व्यक्ति और समाज की रचनात्मक क्षमता का विश्लेषण करता है। मनुष्य केवल परिस्थितियों को सुलझाता ही नहीं, वह परिस्थितियों का निर्माण भी करता है। यह प्राकृतिक और भौतिक परिस्थितियों में परिवर्तन करता है, सामाजिक परिस्थितियों का वह सृष्टा है।

इतिहास विश्वास की नहीं, विश्लेषण की वस्तु है। इतिहास मनुष्य का अपनी परम्परा में आत्म-विश्लेषण है। जैसे नदी में प्रतिक्षण नवीन जल बहने पर भी नदी का अस्तित्व और उसका नाम नहीं बदलता वैसे ही किसी जाति में जन्म-मरण की निरन्तर क्रिया और व्यवहार के परिवर्तन से वह जाति नहीं बदल जाती। अतीत में अपनी रचनात्मक सामर्थ्य और परिस्थितियों के सुझाव के अपने प्रयत्नों के परिचय से जाति वर्तमान और भविष्य के सुलझाव और रचना के लिये निर्देश पाती है।

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