कृष्णाश्रयी शाखा/कृष्ण भक्ति काव्य
जिन भक्त कवियों ने विष्णु के अवतार के रूप में कृष्ण की उपासना को अपना लक्ष्य बनाया वे ‘कृष्णाश्रयी शाखा’ के कवि कहलाए।
कृष्णाश्रयी शाखा/कृष्ण भक्ति काव्य:-
कृष्ण भक्ति काव्य के प्रतिनिधि कवि सूरदास हैं
मध्य युग में कृष्ण भक्ति का प्रचार ब्रज मण्डल में बड़े उत्साह और भावना के साथ हुआ। इस ब्रज मण्डल में कई कृष्ण-भक्ति संप्रदाय सक्रिय थे। इनमें बल्लभ, निम्बार्क, राधा वल्लभ, हरिदासी (सखी संप्रदाय) और चैतन्य (गौड़ीय) संप्रदाय विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इन संप्रदायों से जुड़े ढ़ेर सारे कवि कृष्ण काव्य रच रहे थे।
लेकिन जो समर्थ कवि कृष्ण काव्य को एक लोकप्रिय काव्य आंदोलन के रूप में प्रतिष्ठित किया वे सभी बल्लभ संप्रदाय से जुड़े थे।
बल्लभ संप्रदाय का दार्शनिक सिद्धांत ‘शुद्धाद्वैत’ तथा साधना मार्ग ‘पुष्टि मार्ग’ कहलाता है। पुष्टि मार्ग का आधार-ग्रंथ ‘भागवत’ (श्रीमदभागवत) है।
निम्बार्क संप्रदाय से जुड़े कवि थे- श्री भट्ट, हरि व्यास देव;
राधाबल्लभ संप्रदाय से संबद्ध कवि हित हरिवंश थे;
हरिदासी संप्रद्राय की स्थापना स्वामी हरिदास ने की और वे ही इस संप्रदाय के प्रथम और अंतिम कवि थे।
चैतन्य संप्रदाय से संबद्ध कवि गदाधर भट्ट थे।
कृष्ण भक्ति काव्य की विशेषताएँ :
- कृष्ण का ब्रह्म रूप में चित्रण
- बाल-लीला व व वात्सल्य वर्णन
- आश्रयत्व का विरोध
- लोक संस्कृति पर बल
- लोक संग्रह
- काव्य-रूप : मुक्तक काव्य की प्रधानता
- काव्य-भाषा-ब्रजभाषा
- गेय पद परंपरा।
- श्रृंगार चित्रण
- नारी मुक्ति
- सामान्यता पर बल
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के मतानुसार,
‘यद्यपि तुलसी के समान सूर का काव्य क्षेत्र इतना व्यापक नहीं कि उसमें जीवन की भिन्न-भिन्न दशाओं का समावेश हो पर जिस परिमित पुण्यभूमि में उनकी वाणी ने संचरण किया उसका कोई कोना अछूता न छूटा। श्रृंगार और वात्सल्य के क्षेत्र में जहाँ तक इनकी दृष्टि पहुँची वहाँ तक और किसी कवि की नहीं। इन दोनों क्षेत्रों में तो इस महाकवि ने मानो औरों के लिए कुछ छोड़ा ही नहीं।’
भक्ति आंदोलन में कृष्ण काव्यधारा ही एकमात्र ऐसी धारा है जिसमें नारी मुक्ति का स्वर मिलता है। इनमें सबसे प्रखर स्वर मीरा बाई का है।
कृष्ण भक्ति काव्य और उनके रचनाकार
- रास पंचाध्यायी, भंवर गीत (प्रबंध काव्य)- नंद दास
- युगल शतक- श्री भट्ट
- हित चौरासी- हित हरिवंश
- हरिदास जी के पद स्वामी -हरिदास
- भक्त नामावली, रसलावनी- ध्रुव दास
- नरसी जी का मायरा, गीत गोविंद टीका, राग गोविंद, राग सोरठ के पद- मीराबाई
- प्रेम वाटिका, सुजान रसखान, दानलीला -रसखान
- सुदामा चरित- नरोत्तमदास
- सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी, भ्रमरगीत (सूरसागर से संकलित अंश) -सूरदास
- फुटकल पद -कुंभनदास
- परमानंद सागर -परमानंद दास
- जुगलमान चरित्र- कृष्ण दास
- फुटकल पद -गोविंद स्वामी
- द्वादशयश, भक्ति प्रताप, हितजू को मंगल -चतुर्भुज दास
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