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संस्कृत काव्यशास्त्र

संस्कृत आलोचना के प्रमुख आचार्य

संस्कृत आलोचना के प्रमुख आचार्य भरतमुनि भामह दण्डी वामन उद्भट रूद्रट आनंद वर्धन अभिनव गुप्त कुन्तक कुन्तक क्षेमेंद्र विश्वनाथ जगन्नाथ

अभिनवगुप्त संस्कृत काव्यशास्त्री

अभिनवगुप्त संस्कृत काव्यशास्त्री अभिनवगुप्त कश्मीर के निवासी थे। यह दशम शती के अंत और एकादश शती के आरंभ में विद्यमान थे। इनका काव्यशास्त्र के साथ साथ दर्शनशास्त्र पर भी समान अधिकार था। यही कारण है कि काव्यशास्त्रीय विवेचन को आप अपना

भरतमुनि संस्कृत काव्यशास्त्री

भरतमुनि संस्कृत काव्यशास्त्री भरत मुनि की ख्याति नाट्यशास्त्र के प्रणेता के रूप में है, पर उनके जीवन और व्यक्तित्व के विषय में इतिहास अभी तक मौन है। इस संबंध में विद्वानों का एक मत यह भी है कि भरतमुनि वस्तुतः एक काल्पनिक मुनि का नाम है।

भामह संस्कृत काव्यशास्त्री

भामह संस्कृत काव्यशास्त्री आचार्य बलदेव उपाध्याय ने भामह का समय 6 शती का पूर्वार्द्ध निश्चित किया है। भामह कश्मीर के निवासी थे तथा इनके पिता का नाम रक्रिल गोमी था। सर्वप्रथम भामह ने ही अलंकार को नाट्यशास्त्र की परतन्त्रता से मुक्त कर एक

दण्डी संस्कृत काव्यशास्त्री

दण्डी संस्कृत काव्यशास्त्री आचार्य दण्डी का समय सप्तम शती स्वीकार किया गया है। यह दक्षिण भारत के निवासी थे। दण्डी पल्लव नरेश सिंह विष्णु के सभा पंडित थे। दंडी अलंकार संप्रदाय से सम्बद्ध है तथा इनके तीन ग्रंथ उपलब्ध होते हैं 'काव्यदर्श',

वामन संस्कृत काव्यशास्त्री

वामन संस्कृत काव्यशास्त्री वामन कश्मीरी राजा जयापीड़ के सभा-पंडित थे। इनका समय 800 ई. के आसपास है। इनका प्रसिद्ध ग्रंथ 'काव्यालंकारसूत्रवृत्ति' है।काव्यशास्त्रीय ग्रंथों में यह पहला सूत्र-बद्ध ग्रंथ है। सूत्रों की वृत्ति भी स्वयं वामन ने

उद्भट संस्कृत काव्यशास्त्री

उद्भट संस्कृत काव्यशास्त्री उद्भट कश्मीर राजा जयापीड़ के सभा-पण्डित थे। इनका समय नवम शती का पूर्वार्द्ध है। यह अलंकार वादी सिद्धांत से संबंध आचार्य हैं। इनकी तीन ग्रंथ प्रसिद्ध हैं- 'काव्यालंकारसारसंग्रह', 'भामह-विवरण' और 'कुमारसम्भव'।

रूद्रट संस्कृत काव्यशास्त्री

रूद्रट संस्कृत काव्यशास्त्री रुद्रट कश्मीर के निवासी थे तथा इनका जीवन-काल नवम शती का आरंभ माना जाता है। sanskrit-aacharya इनके ग्रंथ का नाम 'काव्यालंकार' है, जिसमें १६ अध्याय हैं और कुल ७३४ पद है। यद्यपि रुद्रट अलंकारवादी युग के

आनंदवर्धन संस्कृत काव्यशास्त्री

आनंदवर्धन संस्कृत काव्यशास्त्री आनंदवर्धन कश्मीर के राजा अवन्ति वर्मा के सभापंडित थे। इनका जीवन काल नवम शती का मध्य भाग है। आनंदवर्धन ने काव्यशास्त्र मे 'ध्वनि सम्प्रदाय' की स्थापना की। sanskrit-aacharya इनकी ख्याति 'ध्वन्यालोक'

कुन्तक संस्कृत काव्यशास्त्री

कुन्तक संस्कृत काव्यशास्त्री कुंतक कश्मीर के निवासी थे तथा इन्हें 'वक्रोक्ति' संप्रदाय के प्रवर्तक माना जाता है। कुंतक का समय दशम शती का अंत तथा एकादश शती का आरंभ माना जाता है। इनकी प्रसिद्धि 'वक्रोक्तिजीवितम्' नामक ग्रंथ के कारण है।