कृष्णभक्ति शाखा के कवयित्री- मीराबाई
कृष्णभक्ति शाखा के कवयित्री- मीराबाई

- मीरा का जन्म सम्वत् 1555 (सन् 1498) में मेवाड़ के ग्राम चौकड़ी में हुआ।
- इनके पिता राणा रत्नसिंह थे।
- आपका विवाह राणा साँगा के पुत्र भोजराज के साथ हुआ।
- सम्वत् 1603 (सन् 1546) में कृष्ण की यह आराधिका द्वारकाधीश में ही विलीन हो गयीं।
- रचनाएँ-मीराबाई की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
◆‘नरसीजी का मायरा’,
◆‘गीत-गोविन्द की टीका’,
◆‘राग-गोविन्द’ तथा
◆‘राग-सोरठ’ आदि।
मीराजी की कृष्ण भक्ति
मीराजी की कृष्ण भक्ति एक अनूठी मिसाल रही है.
मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरौ न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।।
छांड़ि दई कुल की कानि कहा करै कोई।
संतन ढिग बैठि बैठि लोक लाज खोई।
अंसुवन जल सींचि सींचि प्रेम बेलि बोई।
दधि मथि घृत काढ़ि लियौ डारि दई छोई।
भगत देखि राजी भइ, जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरिधर तारो अब मोई।