संस्कृत आलोचना के प्रमुख आचार्य

संस्कृत आलोचना के प्रमुख आचार्य भरतमुनि भामह दण्डी वामन उद्भट रूद्रट आनंद वर्धन अभिनव गुप्त कुन्तक कुन्तक क्षेमेंद्र विश्वनाथ जगन्नाथ

काव्य प्रयोजन

काव्य रचना का उद्देश्य ही काव्य प्रयोजन होता है. संस्कृत आचार्यों के अनुसार काव्य-प्रयोजन भरत मुनि – धर्म्यं यशस्यं आयुष्यं हितं बुद्धि विवर्धनम्।लोको उपदेश जननम् नाट्यमेतद् भविष्यति।। भरत मुनि धर्म, यश, आयु-साधक, हितकर,

छंद परिचय

छंद शब्द 'चद्' धातु से बना है जिसका अर्थ है 'आह्लादित करना', 'खुश करना'। यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की नियमित संख्या के विन्यास से उत्पन्न होता है। इस प्रकार, छंद की परिभाषा होगी 'वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद

उत्तर आधुनिकतावाद

आधुनिकतावाद 1970 के दशक में एक क्रांतिकारी फ्रिंज आंदोलन के रूप में शुरू हुआ था, लेकिन 1980 के दशक में 'डिजाइनर दशक' का प्रमुख रूप बन गया। ज्वलंत रंग, नाटकीयता और अतिशयोक्ति: सब कुछ एक स्टाइल स्टेटमेंट था। आधुनिकतावाद (Uttar

अस्तित्ववाद

अस्तित्ववादी विचार या प्रत्यय की अपेक्षा व्यक्ति के अस्तित्व को अधिक महत्त्व देते हैं। इनके अनुसार सारे विचार या सिद्धांत व्यक्ति की चिंतना के ही परिणाम हैं। पहले चिंतन करने वाला मानव या व्यक्ति अस्तित्व में आया, अतः व्यक्ति अस्तित्व ही

कलावाद

कलावाद कला के प्रति एक मत या दृष्टिकोण है। इसके तहत कला कला के लिए कहा गया। 'कला कला के लिए' फ्रेंच भाषा के सूत्र वाक्य 'ल आर्त पोर ल आर्त' के अंग्रेजी अनुवाद 'द आर्ट इज फॉर द आर्ट्स सेक' का हिन्दी अनुवाद है। कलावाद के तहत साहित्य में

प्रतीकवाद

प्रतीकवाद उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में कविता और अन्य कलाओं में फ्रांसीसी, रूसी और बेल्जियम मूल का कला आंदोलन था, जो मुख्य रूप से प्रकृतिवाद और यथार्थवाद के खिलाफ प्रतिक्रिया के रूप में प्रतीकात्मक छवियों और भाषा के माध्यम से पूर्ण सत्य

फ्रॉयड का मनोविश्लेषणवादी सिद्धान्त

मनोविश्लेषणवाद का प्रवर्तक फ्रायड को माना जाता है। फ्रायड ने मानव मस्तिष्क के तीन भाग चेतन, अवचेतन और अर्ध-चेतन किये। उन्होंने काम और व्यक्ति की दमित भावनाओं को सर्वाधिक महत्व दिया। फ्रायड के शिष्य एडलर ने काम की जगह अहम को मुख्य माना जबकि

हिन्दी नाटक का विकास

हिन्दी नाटक का विकास भारतेंदु युग (प्रथम उत्थान) द्विवेदी युग (द्वितीय उत्थान) प्रसाद युग (तृतीय उत्थान ) प्रसादोत्तर नाटक (चतुर्थ उत्थान ) समकालीन नाटक ( पंचम उत्थान)