जॉन ड्राइडन पाश्चात्य काव्यशास्त्री
जॉन ड्राइडन पाश्चात्य काव्यशास्त्री
जॉन ड्राइडन कवि एवं नाटककार थे। इनकी प्रमुख कृति 'ऑफ ड्रमेटी पोइजी' (नाट्य-काव्य, 1668 ई०) है।जॉन ड्राइडन को आधुनिक अंग्रेजी गद्य और आलोचना दोनों का जनक माना जाता है।ड्राइडन ने 'ऑफ ड्रेमेटिक पोइजी' की!-->!-->!-->…
लोंजाइनस पाश्चात्य काव्यशास्त्री
लोंजाइनस (मूल यूनानी नाम लोंगिनुस ('Longinus') का समय ईसा की प्रथम या तृतीय शताब्दी माना जाता है।लोंजाइनस के ग्रन्थ का नाम 'पेरिहुप्सुस' है। इस ग्रन्थ का प्रथम बार प्रकाशन सन् 1554 ई० में इतालवी विद्वान रोबेरतेल्लो ने करवाया!-->…
अभिनवगुप्त संस्कृत काव्यशास्त्री
अभिनवगुप्त संस्कृत काव्यशास्त्री
अभिनवगुप्त कश्मीर के निवासी थे। यह दशम शती के अंत और एकादश शती के आरंभ में विद्यमान थे। इनका काव्यशास्त्र के साथ साथ दर्शनशास्त्र पर भी समान अधिकार था। यही कारण है कि काव्यशास्त्रीय विवेचन को आप अपना!-->!-->!-->…
आधे अधूरे के प्रमुख पात्रों का चरित्र-चित्रण
आधे अधूरे के प्रमुख पात्रों का चरित्र-चित्रण
पुरुष एक महेन्द्रनाथ
पुरुष एक अर्थात् महेन्द्रनाथ नाटक में प्रतीक रूप में वर्णित, मध्य से निम्न मध्य - वित्तीय स्थितियों की ओर अग्रसर हो रहे परिवार का मुखिया है। इस दृष्टि से उसे हम!-->!-->!-->!-->!-->…
आधे अधूरे : कथासार
आधे अधूरे : कथासार
नाटककार मोहन राकेश ने 'आधे अधूरे' की कथावस्तु को एक ऐसे नव्य रूप में प्रस्तुत किया है जिससे सहज ही स्वातंत्र्योत्तर चेतना का आभास होता है। मोहन राकेश ने मध्य वर्गीय परिवार के घर को मंच पर प्रस्तुत करके एक ऐसे व्यक्ति!-->!-->!-->…
अंधेर नगरी – कथासार
अंधेर नगरी - कथासार
अंधेर नगरी - कथासार
अंधेर नगरी नाटक का कथानक एक दृष्टांत की तरह है और उसका संक्षिप्त सार इस प्रकार है
एक महन्त अपने दो चेलों - गोवर्धनदास और नारायणदास के साथ भजन गाते हुए एक भव्य और सुन्दर नगर में आता है।!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
आधे-अधूरे सप्रसंग व्याख्या
आधे-अधूरे सप्रसंग व्याख्या -
आप शायद सोचते हों कि मैं नाटक में कोई एक निश्चित इकाई हूँ- अभिनेता, प्रस्तुतकर्त्ता, व्यवस्थापक या कुछ और। परंतु मैं अपने संबंध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कह सकता उसी तरह जैसे इस नाटक के संबंध में नहीं कह!-->!-->!-->…
भारतेंदु की नाट्य कला
भारतेंदु की नाट्य कला
भारतेंदु के समय तक भारत की समृद्ध साहित्यिक नाट्य परंपरा, जिसकी अविच्छिन्न धारा भरत के नाटकों से लेकर लगभग 10वीं शताब्दी तक संस्कृत, रंगमंच से जुड़ी रही, वह लुप्त हो चुकी थी।
दसवीं शताब्दी के बाद संस्कृत में जो!-->!-->!-->!-->!-->…
अंधेर नगरी की भाषा – शैली एवं संवाद योजना
अंधेर नगरी की भाषा - शैली एवं संवाद योजना
संवाद नाटक की आत्मा होते हैं। उन्हीं के आधार पर नाटक की कथा निर्मित और विकसित होती है, पात्रों के चरित्र के सम्बन्ध में जानकारी मिलती है, उनका विकास होता है। संवाद ही नाटक में सजीवता, रोचकता!-->!-->!-->…
अंधेर नगरी: पात्र परिकल्पना एवं चरित्रिक विशेषताएँ
अंधेर नगरी नाटक में यूँ कहने को तो इसमें अनेक पात्र हैं विशेषतः बाजार वाले दृश्य में। पर वे केवल एक दृश्य तक सीमित हैं और उनके द्वारा लेखक या तो बाजार का वातावरण उपस्थित करता है या फिर तत्कालीन राजतंत्र एवं न्याय व्यवस्था पर कटाक्ष करता!-->…