नीति के दोहे कक्षा 6 हिन्दी
नीति के दोहे
तुलसी मीठे बचन तें, सुख उपजत चहुँ ओर।
बसीकरण यह मंत्र है, परिहरि बचन कठोर ।।
मुखिया मुख सो चाहिए, खान-पान को एक
पार्ले पोसै सकल अंग, तुलसी सहित बिबेक
आवत हिय हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह ॥
तुलसी तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह ||
तुलसी संत सुअंब तरु, फूलि – फलहिं पर हेत ।
इतते ये पाहन हनत, उतते वे फल देत ॥
तरुवर फल नहिं खात हैं, सरबर पियहिं न पान ।
कहि रहीम परकाज हित, संपति संचहिं सुजान ॥
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि
जहाँ काम आवै सुई, कहाँ करै तलवारि ।।
जो रहीम उत्तम प्रकृति का कर सकत कुसंग ।
चंदन बिष व्यापै नहीं, लिपटे रहत भुजंग ॥
रहिमन निज मन की व्यथा, मनहीं राखौ गोय
सुनि इठले हैं लोग सब, बाँटि न लैहै कोय ||
काल करै सो आज कर, आज करै सो अब ।
पल में परलय होयगी, बहुरि करेगा कब ।।
माला तो कर में फिरै, जीभ फिरै मुख माँहि ।
मनुआ तो चहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहि ।।
दुरलभ मानुष जनम है, देड़ न बारंबार ।
तरुबर ते पता झड़े, बहुरि न लागै डार ||
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप ।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप ॥