देवनागरी लिपि का स्वरूप,गुण,दोष,सुधार
देवनागरी लिपि का स्वरूप
यह लिपि बायीं ओर से दायीं ओर लिखी जाती है। जबकि फारसी लिपि (उर्दू, अरबी, फारसी भाषा की लिपि) दायीं ओर से बायीं ओर लिखी जाती है।
यह अक्षरात्मक लिपि (Syllabic script) है जबकि रोमन लिपि (अंग्रेजी भाषा की लिपि) वर्णात्मक लिपि (Alphabetic script) है।

देवनागरी लिपि के गुण
(1) एक ध्वनि के लिए एक ही वर्ण संकेत
(2) एक वर्ण संकेत से अनिवार्यतः एक ही ध्वनि व्यक्त
(3) जो ध्वनि का नाम वही वर्ण का नाम
(4) मूक वर्ण नहीं
(5) जो बोला जाता है वही लिखा जाता है
(6) एक वर्ण में दूसरे वर्ण का भ्रम नहीं
(7) उच्चारण के सूक्ष्मतम भेद को भी प्रकट करने की क्षमता
(8) वर्णमाला ध्वनि वैज्ञानिक पद्धति के बिल्कुल अनुरूप
(9) प्रयोग बहुत व्यापक (संस्कृत, हिन्दी, मराठी, नेपाली की एकमात्र लिपि)
(10) भारत की अनेक लिपियों के निकट
देवनागरी लिपि के दोष
(1) कुल मिलाकर 403 टाइप होने के कारण टंकण, मुद्रण में कठिनाई
(2) शिरोरेखा का प्रयोग अनावश्यक अलंकरण के लिए
(3) समरूप वर्ण (ख में र व का, घ में ध का, म में भ का भ्रम होना)
(4) वर्णों के संयुक्त करने की कोई निश्चित व्यवस्था नहीं
(5) अनुस्वार एवं अनुनासिकता के प्रयोग में एकरूपता का अभाव
(6) त्वरापूर्ण लेखन नहीं क्योंकि लेखन में हाथ बार-बार उठाना पड़ता है।
(7) वर्णों के संयुक्तीकरण में र के प्रयोग को लेकर भ्रम की स्थिति (
10) इ की मात्रा ( ि) का लेखन वर्ण के पहले पर उच्चारण वर्ण के बाद
देवनागरी लिपि में किये गये सुधार
(1) बाल गंगाधर का ‘तिलक फांट’ (1904-26)
(2) सावरकर बंधुओं का ‘अ की बारहखड़ी’
(3) श्याम सुन्दर दास का पंचमाक्षर के बदले अनुस्वार के प्रयोग का सुझाव
(4) गोरख प्रसाद का मात्राओं को व्यंजन के बाद दाहिने तरफ अलग रखने का सुझाव (जैसे, कुल- क ु ल)
(5) श्री निवास का महाप्राण वर्ण के लिए अल्पप्राण के नीचे s चिह्न लगाने का सुझाव
(6) हिन्दी साहित्य सम्मेलन का इन्दौर अधिवेशन और काका कालेलकर के संयोजकत्व में नागरी लिपि सुधार समिति का गठन (1935) और उसकी सिफारिशें
(7) काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा अ की बारहखड़ी और श्री निवास के सुझाव को अस्वीकार करने का निर्णय (1945)
(8) उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित आचार्य नरेन्द्र देव समिति का गठन (1947) और उसकी सिफारिशें
(9) शिक्षा मंत्रालय के देवनागरी लिपि संबंधी प्रकाशन- ‘मानक देवनागरी वर्णमाला’ (1966 ई०), ‘हिन्दी वर्तनी का मानकीकरण’ (1967 ई०), ‘देवनागरी लिपि तथा हिन्दी वर्तनी का मानकीकरण’ (1983 ई०) आदि।