नाथ साहित्य के बारे में तथ्य

नाथ साहित्य के बारे में तथ्य

नाथ साहित्य के बारे में तथ्य - complete course of hindi literature - हिन्दी साहित्य नोट्स संग्रह
हिन्दी साहित्य : नाथ साहित्य
  • नाथ पंथ के प्रवर्तक- मत्स्येन्द्रनाथ व गोरखनाथ
  • भगवान शिव के उपासक नाथों के द्वारा जो साहित्य रचा गया वही नाथ साहित्य कहलाता है|
  • राहुल संकृत्यायन जी ने नाथ पंथ को सिद्धों की परंपरा का ही विकसित रूप माना है|
  • हजारी प्रसाद द्विवेदी ने नाथ पंथ या नाथ संप्रदाय को ‘सिद्ध मत, सिद्ध मार्ग, योग मार्ग, योग संप्रदाय, अवधूत मत एवं अवधूत संप्रदाय’ के नाम से पुकारा है|

■■  रचनाकाल

विविध इतिहासकारों ने गोरख नाथ जी का समय निम्नानुसार निर्धारित किया है:

  • राहुल संकृत्यायन – 845 ईसवी
  • हजारी प्रसाद द्विवेदी – नौवीं शताब्दी
  • डा. पीतांबर दत्त बड़थ्वाल- 11वीं शताब्दी
  • रामकुमार वर्मा- 13 वीं शताब्दी
  • रामचंद्र शुक्ल – 13 वीं शताब्दी

नोट:- नवीनतम खोजों के अनुसार गोरखनाथ जी का सर्वमान्य रचना का तेरहवीं शताब्दी का प्रारंभिक काल ही निर्धारित किया गया है |

■■ नाथो की कुल संख्या ( नौ नाथ )

  • आदिनाथ (भगवान शिव)
  • मत्स्येन्द्रनाथ
  • गोरखनाथ
  • चर्पटनाथ
  • गाहणीनाथ
  • ज्वालेन्द्रनाथ
  • चौरंगीनाथ
  • भर्तृहरिनाथ
  • गोपीचंदनाथ

नाथ साहित्य की विशेषताएँ

  • इस साहित्य में नारी निंदा का सर्वाधिक उल्लेख प्राप्त होता है
  • इसमें ज्ञान निष्ठा को पर्याप्त महत्व प्रदान किया गया है
  • यहाँ मनोविकारों की निंदा की गई है
  • इसमें सिद्ध साहित्य के भोगविलास की भर्त्सना की गई है
  • नाथ साहित्य में गुरु को विशेष महत्व प्रदान किया गया है
  • इस साहित्य में हठयोग का उपदेश प्राप्त होता है
  • रूखापन और गृहस्थ के प्रति अनादर का भाव इस साहित्य की सबसे बड़ी कमजोरी मानी जाती है
  • मन, प्राण, शुक्र, वाक्, और कुण्डलिनी- इन पांचों के संयमन के तरीकों को राजयोग, हठयोग, वज्रयान, जपयोग या कुंडलीयोग कहा जाता है|

नाथों की साधना-प्रणाली हठयोग

गोरखनाथ के ‘सिद्ध-सिद्धान्त-पद्धति’ ग्रंथ के अनुसार ‘हठ’ शब्द में प्रयुक्त ‘ह’ का अर्थ ‘सूर्य’ तथा ‘ठ’ का अर्थ ‘चन्द्रमा’ ग्रहण किया जाता है इन दोनों के योग को ही हठयोग कहते है|

नाथों की साधना-प्रणाली ‘हठयोग’ पर आधारित है। इस साधना पद्धति के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति कुण्डलिनी और प्राणशक्ति लेकर पैदा होता है। सामान्य तया कुण्डलिनी शक्ति सुषुप्त रहती है। साधक प्राणायाम के द्वारा कुण्डलिनी को जागृत कर ऊर्ध्वमुख करता है। शरीर में छह चक्रों और तीन नाड़ियों की बात कही गयी है। जब योगी प्राणायाम के द्वारा इडा पिंगला नामक श्वास मार्गों को रोक लेता है। तब इनके मध्य में स्थित सुषुम्ना नाड़ी का द्वार खुलता है। कुण्डलिनी शक्ति इसी नाड़ी के मार्ग से आगे बढ़ती है और छ.चनों को पार कर मतिष्क के निकट स्थित शून्यचक्र में पहुँचती है। यही पर जीवात्मा को पहुँचा देना योगी का चरम लक्ष्य होता है। यही परमानन्द तथा ब्रह्मानुभूति की अवस्था है। यही हठयोग साधना है।

गोरखनाथ की रचनाएँ :-

गुरु गोरखनाथ द्वारा रचित कुल ग्रंथों की संख्या 40 मानी जाती है परंतु डॉक्टर पीतांबर दत्त बडथ्वाल ने इनके द्वारा रचित ग्रंथों की संख्या 14 मानी है यथा-

  • सबदी ( सबसे प्रामाणिक रचना)
    • पद
    • प्राण संकली
    • सिष्यादरसन
    • नरवैबोध
    • अभैमात्राजोग
    • आतम-बोध
    • पन्द्रह-तिथि
    • सप्तवार
    • मछींद्र गोरखबोध
    • रोमवली
    • ग्यानतिलक
    • ग्यानचौंतिसा
    • पंचमात्रा

विशेष तथ्य:

  • हिंदी साहित्य में डी. लिट्. की उपाधि प्राप्त करने वाले वाले सर्वप्रथम विद्वान डॉ पीतांबर दत्त बड़थ्वाल ने 1942 ईस्वी में ‘गोरखबानी’ नाम से उनकी रचनाओं का संकलन किया है| इसका प्रकाशन हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग के द्वारा किया गया था|
  • रामचंद्र शुक्ल के अनुसार यह रचनाएं गोरख नाथ जी द्वारा नहीं अपितु उनके अनुयायियों द्वारा रची गई थी|
  • गोरखनाथ ने षट्चक्रों वाला योग मार्ग हिंदी साहित्य में चलाया था |
  • हजारी प्रसाद द्विवेदी ने नागरी प्रचारिणी सभा काशी के माध्यम से ” नाथ-सिद्धि की बानियाँ ” नामक पुस्तक का संपादन किया था |
  • नाथ पंथ के प्रवर्तक- मत्स्येन्द्रनाथ व गोरखनाथ
  • भगवान शिव के उपासक नाथों के द्वारा जो साहित्य रचा गया वही नाथ साहित्य कहलाता है|
  • राहुल संकृत्यायन जी ने नाथ पंथ को सिद्धों की परंपरा का ही विकसित रूप माना है|
  • हजारी प्रसाद द्विवेदी ने नाथ पंथ या नाथ संप्रदाय को ‘सिद्ध मत, सिद्ध मार्ग, योग मार्ग, योग संप्रदाय, अवधूत मत एवं अवधूत संप्रदाय’ के नाम से पुकारा है|

नाथ साहित्य की देन को स्पष्ट करते हुए डॉ. रामकुमार वर्मा लिखते हैं –

“गोरखनाथ ने नाथ सम्प्रदाय को जिस आन्दोलन का रूप दिया वह भारतीय मनोवृत्ति के सर्वथा अनुकूल सिद्ध हुआ है। उसमें जहाँ एक ओर ईश्वरवाद की निश्चित धारणा उपस्थित की गई वहाँ दूसरी ओर विकृत करने वाली समस्त परम्परागत रूढ़ियों पर भी आघात किया। जीवन को अधिक से अधिक संयम और सदाचार के अनुशासन में रखकर आत्मिक अनुभूतियों के लिए सहज मार्ग की व्यवस्था करने का शक्तिशाली प्रयोग गोरखनाथ ने किया।”

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