देव जी का साहित्यिक जीवन परिचय

देव जी का साहित्यिक जीवन परिचय

प्रसिद्ध देव कवि का जन्म सं. १७३० में हुआ था। ये द्यौसरिया (देवसरिया) कान्यकुब्ज द्विवेदी ब्राह्मण थे। इनका निवासस्थान इटावा था. उनका पूरा नाम देवदत्त था।

देव जी की रचनाएँ

निर्विवाद रूप से जिन १८ ग्रंथों को देवकृत स्वीकार किया जा सकता है वे इस प्रकार हैं-

(१) भावविलास (२) अष्टयाम (३) भवानीविलास (४) रसविलास (५) प्रेमचंद्रिका (६) राग रत्नाकर (७) सुजानविनोद (८) जगद्दर्शन पचीसी (९) आत्मदर्शन पचीसी(१०) तत्वदर्शन पचीसी (११) प्रेम पचीसी (इन चारों पचीसियों का नाम देवशतक भी है।) (१२) शब्दरसायन (१३) सुखसागर तरंग (इतने ग्रंथ प्रकाशित हैं)

हस्तलिखित ग्रंथ हैं -(१४) प्रेमतरंग (१५) कुसलविलास (१६) जातिविलास (१७) देवचरित्र (१८) देवमायाप्रपंच।

देव जी का वर्ण्य विषय

देव ने कई आश्रयदाताओं के यहाँ रहकर अपनी रचनाएँ कीं। इनकी रचना ‘अष्टयाम’ औरंगजेब के पुत्र आजमशाह के संकेत पर हुई थी और उसने उन्हें पुरस्कृत भी किया था। संभवत: ‘भावविलास’ भी आजमशाह के आश्रय में लिखा गया हो। देव के दूसरे आश्रयदाता दादरीपति राजा सीताराम के भतीजे भवानीदत्त वैश्य थे। ये चरखी दादरी (रेवाड़ी) के निवासी थे। इनके लिए इन्होंने ‘भवानीविलास’ नामक ग्रंथ लिखा। देव के तीसरे आश्रयदाता कुशलसिंह थे। ये फफूँद के रहनेवाले थे और देव ने इनके लिए ‘कुशलविलास’ नामक ग्रंथ की रचना की। देव के वास्तविक गुण-ग्राहक और आश्रयदाता राजा भोगीलाल हुए जिनके लिए इन्होंने ‘रसविलास’ नामक ग्रंथ की रचना की। इनके संबंध में देव ने अपने रसविलास में लिखा है-

भोगीलाल भूप लख पाखर लिवैया जिन
लाखन खरचि रुचि आषर खरीदे हैं।

देव


देव की कृति ‘प्रेमचंद्रिका’ डयोंड़िया खेड़े के राव मर्दनसिंह के पुत्र उद्योतसिंह को समर्पित है। ‘सुजानविनोद’ की रचना दिल्ली के रईस पातीराम के पुत्र सुजानमणि के लिए हुई। इनकी अंतिम रचना ‘सुखसागर तरंग’ पिहानी के राजा अली अकबर खाँ के आश्रय में लिखी गई।

देव जी का लेखन कला

देव के सवैया और घनाक्षरी दोनों ही अपनी छाप रखते हैं और देव की सुंदर रचनाओं को किसी दूसरे कवि की रचनाओं से मिलाकर छिपा रखना संभव न होगा। देव की रचनाओं में जितना व्यापक अनुभव मिलता है उतनी ही गहरी भावुकता भी प्राप्त होती है। किसी भी भाव का देव जैसा सजीव और मर्मस्पर्शी वर्णन असाधारण वस्तु है। देव की कल्पना केवल ऊहात्मक विशेषता ही नहीं रखती, वरन् वह अनुभूति के रस से सिंचित होकर सरसता संपन्न होती है।

देव जी साहित्य में स्थान

हिन्दी के ब्रजभाषा काव्य के अंतर्गत देव को महाकवि का गौरव प्राप्त है।

“मतिराम और जसवंत सिंह के बाद यदि कोई सचमुच ही शक्तिशाली कवि और अलंकारिक कवि हुआ तो वह देव कवि थे”

हजारी प्रसाद द्विवेदी
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