जगन्नाथदास रत्नाकर का साहित्यिक परिचय

जगन्नाथदास रत्नाकर (1866- 21 जून 1932) आधुनिक युग के श्रेष्ठ ब्रजभाषा कवि का जन्म सं. 1923 (सन्‌ 1866 ई.) के भाद्रपद शुक्ल पंचमी के दिन हुआ था। भारतेंदु बावू हरिश्चंद्र की भी यही जन्मतिथि थी और वे रत्नाकर जी से 16 वर्ष बड़े थे। उनके पिता का नाम पुरुषोत्तमदास और पितामह का नाम संगमलाल अग्रवाल था जो काशी के धनीमानी व्यक्ति थे।

रत्नाकर जी की रचनाएँ

पद्य

हरिश्चंद्र (खंडकाव्य) [1]गंगावतरण 1923 (पुराख्यान काव्य), उद्धवशतक (प्रबंध काव्य), हिंडोला1894 (मुक्तक), कलकाशी (मुक्तक) समालोचनादर्श (पद्यनिबंध) श्रृंगारलहरी, गंगालहरी, विष्णुलहरी (मुक्तक), रत्नाष्टक (मुक्तक), [2]वीराष्टक (मुक्तक), प्रकीर्णक पद्यावली (मुक्तक संग्रह) ।

गद्य

(क) साहित्यिक लेख – रोला छंद के लक्षण, महाकवि बिहारीलाल की जीवनी, बिहारी सतसई संबंधी साहित्य, साहित्यिक ्व्राजभाषा तथा उसके व्याकरण की सामग्री, बिहारी सतसई की टीकाएँ, बिहारी पर स्फुट लेख।

(ख) ऐतिहासिक लेख – महाराज शिवाजी का एक नया पत्र, शुगवंश का एक शिलालेख, शुंग वंश का एक नया शिलालेख, एक ऐतिहासिक पापाणाश्व की प्राप्ति, एक प्राचीन मूर्ति, समुद्रगुप्त का पाषाणाश्व, घनाक्षरी निय रत्नाकर, वर्ण, सवैया, छंद आदि।

संपादित रचनाएँ

सुधासागर (प्रथम भाग), कविकुल कंठाभरण, दीपप्रकाश, सुंदरश्रृंगार, नृपशंमुकृत नखशिख, हम्मीर हठ, रसिक विनोद, समस्यापूर्ति (भाग 1), हिततरंगिणी, केशवदासकृत नखशिख, सुजानसागर, बिहारी रत्नाकर, सूरसागर।

रत्नाकर जी ब्रजभाषा काव्य के अंतिम ऐतिहासिक कवि थे। ब्रजभाषा के आधुनिक काल के कवियों में उनका स्थान अद्वितीय है। उनकी कविता भक्ति काल और रीति काल दोनों का एक-एक साथ प्रतिनिधित्व करती है। भ्रमर गीत की परंपरा में रत्नाकर जी के ‘उद्धव शतक’ का विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान है।

Leave a Comment

You cannot copy content of this page