पद्य साहित्य

आधुनिक काल 1850 से हिंदी साहित्य के इस युग को भारत में राष्ट्रीयता के बीज अंकुरित होने लगे थे। स्वतंत्रता संग्राम लड़ा और जीता गया। छापेखाने का आविष्कार हुआ, आवागमन के साधन आम आदमी के जीवन का हिस्सा बने, जन संचार के विभिन्न साधनों का विकास हुआ, रेडिओ, टी वी व समाचार पत्र हर घर का हिस्सा बने और शिक्षा हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार। इन सब परिस्थितियों का प्रभाव हिंदी साहित्य पर अनिवार्यतः पड़ा। आधुनिक काल का हिंदी पद्य साहित्य पिछली सदी में विकास के अनेक पड़ावों से गुज़रा। जिसमें अनेक विचार धाराओं का बहुत तेज़ी से विकास हुआ। जहाँ काव्य में इसे छायावादी युग, प्रगतिवादी युग, प्रयोगवादी युग, नयी कविता युग और साठोत्तरी कविता इन नामों से जाना गया, छायावाद से पहले के पद्य को भारतेंदु हरिश्चंद्र युग और महावीर प्रसाद द्विवेदी युग के दो और युगों में बाँटा गया।

भूल गलती : मुक्तिबोध का वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भूल गलती : मुक्तिबोध का वस्तुनिष्ठ प्रश्न 1. मुक्तिबोध को उबड़खाबड़ व्यक्तित्व का किसने माना है:१. प्रभाकर माचवे२. अशोक बाजपेयी✔३. श्रीकांत वर्मा४. नामवर सिंह 2. “भूल गलती “कविता में किसे कैदी बनाया गया है :१. मैं को२. ईमान को✔३. भूल गलती को४. आम दरबारी को 3. भूल गलती कविता में विश्वविजेता है:१. भूल गलती✔२. ईमान३. […]

भूल गलती : मुक्तिबोध का वस्तुनिष्ठ प्रश्न Read More »

पृथ्वीराज रासो का परिचय

पृथ्वीराज रासो हिन्दी भाषा में लिखा एक महाकाव्य है जिसमें पृथ्वीराज चौहान के जीवन और चरित्र का वर्णन किया गया है। इसके रचयिता चंद बरदाई पृथ्वीराज के बचपन के मित्र और उनके राजकवि थे और उनकी युद्ध यात्राओं के समय वीर रस की कविताओं से सेना को प्रोत्साहित भी करते थे। ११६५ से ११९२ के बीच जब पृथ्वीराज चौहान का राज्य अजमेर से दिल्ली तक फैला हुआ था।

पृथ्वीराज रासो का परिचय Read More »

भक्तिकाल की प्रसिद्ध पंक्तियाँ

तुलसीदास की पंक्तियाँ कबीरदास की पंक्तियाँ मलिक मुहम्मद जायसी  की पंक्तियाँ सूरदास की पंक्तियाँ रहीमदास की पंक्तियाँ सुरतिय, नरतिय, नागतिय, सब चाहत अस होय।गोद लिए हुलसी फिरै, तुलसी सो सुत होय।।-रहीम दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे मांहि।ज्यों रहीम नटकुंडली, सिमिट कूदि चलि जांहि।।-रहीम तब लग ही जीबो भला देबौ होय न धीम।जन में रहिबो

भक्तिकाल की प्रसिद्ध पंक्तियाँ Read More »

श्री वल्लभाचार्य जी : सगुण धारा कृष्ण-भक्ति शाखा के कवि

श्री वल्लभाचार्यजी वैष्णव धर्म के प्रधान प्रवर्त्तकों में से थे। ये वेदशास्त्र में पारंगत धुरंधर विद्वान् थे। वल्लभाचार्य ने सगुण रूप को ही असली पारमार्थिक रूप बताया और निर्गुण को उसका अंशतः तिरोहित रूप कहा। श्री वल्लभाचार्य जी : सगुण धारा कृष्ण-भक्ति शाखा के कवि जीवन परिचय आचार्य जी का जन्म संवत् 1535, वैशाख कृष्ण

श्री वल्लभाचार्य जी : सगुण धारा कृष्ण-भक्ति शाखा के कवि Read More »

हिंदी साहित्य में नवगीत

हिंदी साहित्य में नवगीत, हिन्दी काव्य-धारा की एक नवीन विधा है। इसकी प्रेरणा सूरदास, तुलसीदास, मीराबाई और लोकगीतों की समृद्ध भारतीय परम्परा से है। हिंदी साहित्य के प्रमुख नवगीतकार में सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, राजेन्द्र प्रसाद सिंह, ठाकुर प्रसाद सिंह, शान्ति सुमन, माहेश्वर तिवारी, सुभाष वशिष्ठ और कुमार रवीन्द्र नाम प्रमुख हैं . “नवगीत” एक यौगिक

हिंदी साहित्य में नवगीत Read More »

हिन्दी साहित्य में ग़ज़ल

हिन्दी साहित्य में ग़ज़ल को सम्मानपूर्ण स्थान प्राप्त है। यह हिन्दी साहित्य की एक सशक्त और अत्यन्त लोकप्रिय काव्य – विधा है। ग़ज़ल की शुरुआत ग़ज़ल की शुरुआत लगभग पन्द्रह सौ वर्ष पहले अरबी भाषा में हुई थी। अरबी में मुख्य रूप से कसीदे ( राजाओं की प्रशंसा में लिखे जाने वाले काव्य ) और

हिन्दी साहित्य में ग़ज़ल Read More »

दलित कविता का विकास

दलित कविता का विकास संत रैदास को हिंदी का प्रथम दलित कवि माना जाता है। आधुनिक युग के दलित कवियों में प्रथम नाम हीरा डोम और स्वामी अच्युतानंद का नाम लिया जाता है। दलित विद्वानों ने सन 1914 ईस्वी में सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हीरा डोम की कविता अछूत की शिकायत को हिंदी की प्रथम

दलित कविता का विकास Read More »

आधुनिक हिन्दी साहित्य में पद्य का विकास

आधुनिक हिन्दी साहित्य में पद्य का विकास आधुनिक काल की कविता के विकास को निम्नलिखित धाराओं में बांट सकते हैं। १. नवजागरण काल (भारतेंदु युग) 1850 ईस्वी से 1900 ईस्वी तक२. सुधार काल (द्विवेदी युग) 1900 ईस्वी से 1920 ईस्वी तक३. छायावाद 1920 ईस्वी से 1936 ईस्वी तक४. प्रगतिवाद प्रयोगवाद 1936 ईस्वी से 1953 ईस्वी

आधुनिक हिन्दी साहित्य में पद्य का विकास Read More »

जैन साहित्य की सामान्य विशेषताएँ

अपभ्रंश साहित्य को जैन साहित्य कहा जाता है, क्योंकि अपभ्रंश साहित्य के रचयिता जैन आचार्य थे। जैन कवियों की रचनाओं में धर्म और साहित्य का मणिकांचन योग दिखाई देता है। जैन कवि जब साहित्य निर्माण में जुट जाता है तो उस समय उसकी रचना सरस काव्य का रूप धारण कर लेती है और जब वह

जैन साहित्य की सामान्य विशेषताएँ Read More »