पद्य साहित्य

आधुनिक काल 1850 से हिंदी साहित्य के इस युग को भारत में राष्ट्रीयता के बीज अंकुरित होने लगे थे। स्वतंत्रता संग्राम लड़ा और जीता गया। छापेखाने का आविष्कार हुआ, आवागमन के साधन आम आदमी के जीवन का हिस्सा बने, जन संचार के विभिन्न साधनों का विकास हुआ, रेडिओ, टी वी व समाचार पत्र हर घर का हिस्सा बने और शिक्षा हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार। इन सब परिस्थितियों का प्रभाव हिंदी साहित्य पर अनिवार्यतः पड़ा। आधुनिक काल का हिंदी पद्य साहित्य पिछली सदी में विकास के अनेक पड़ावों से गुज़रा। जिसमें अनेक विचार धाराओं का बहुत तेज़ी से विकास हुआ। जहाँ काव्य में इसे छायावादी युग, प्रगतिवादी युग, प्रयोगवादी युग, नयी कविता युग और साठोत्तरी कविता इन नामों से जाना गया, छायावाद से पहले के पद्य को भारतेंदु हरिश्चंद्र युग और महावीर प्रसाद द्विवेदी युग के दो और युगों में बाँटा गया।

निर्गुण काव्य धारा या सूफी काव्य ( प्रेममार्गी शाखा)

सूफी काव्य : भक्तिकाल के निर्गुण संत काव्य के अंतर्गत सूफी काव्य को प्रेममार्गी सूफी शाखा’के नाम से संबोधित किया है। अन्य नामों में प्रेमाख्यान काव्य, प्रेम काव्य, आदि प्रमुख है। इस काव्य परम्परा को सूफी संतो की देन माना जाता है। सूफी शब्द की उत्पत्ति सूफी शब्द की उत्पत्ति के संबंध में ‘सूफ’ को […]

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निर्गुण काव्य धारा या संत काव्य (ज्ञानाश्रयी शाखा)

ज्ञानाश्रयी शाखा के भक्त-कवि ‘निर्गुणवादी’ थे, और नाम की उपासना करते थे। गुरु का वे बहुत सम्मान करते थे, और जाति-पाति के भेदों को नहीं मानते थे। वैयक्तिक साधना को वह प्रमुखता देते थे। मिथ्या आडंबरों और रूढियों का विरोध करते थे। साधारण जनता पर इन संतों की वाणी का ज़बरदस्त प्रभाव पड़ा। इन संतों

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सगुण भक्ति उद्भव एवं विकास

यहाँ पर सगुण भक्ति उद्भव एवं विकास के बारे में दिया गया हैं जो आपके विविध परीक्षाओं के दृष्टिकोण से बेहद उपयोगी साबित हो सकती हैं. भक्ति हिंदी साहित्य का श्रेष्ठ युग है जिसको जॉर्ज ग्रियर्सन ने स्वर्णकाल, श्यामसुन्दर दास ने स्वर्णयुग, आचार्य राम चंद्र शुक्ल ने भक्ति काल एवं हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लोक

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कृष्णभक्ति शाखा के कवि

कृष्ण भक्ति काव्य धारा से अभिप्राय उस काव्यधारा से है जिसमें कवियों ने भगवान विष्णु के अवतार कृष्ण को आधार बनाकर अपने काव्य ग्रंथों की रचना की। कृष्ण-काव्य-धारा के मुख्य प्रवर्तक हैं- श्री वल्लभाचार्य। उन्होंने निम्बार्क, मध्व और विष्णुस्वामी के आदर्शों को सामने रखकर श्रीकृष्ण का प्रचार किया। कृष्णभक्ति शाखा के कवि सूरदास, नंददास, कृष्णदास, परमानंद, कुंभनदास,

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सूफी काव्य और उनके रचनाकार

 सूफी कवियों ने लौकिक प्रेम कहानियों के माध्यम से अलौकिक प्रेम की अभिव्यंजना की है। इन की यह प्रेम कहानियाँ प्रबन्ध काव्य की कोटि में आती है। इन कवियों का उद्देश कोरी प्रेम कहानी न होकर प्रेमतत्व का निरुपण करना तथा उसका महत्व निर्धारित करना है। सूफी काव्य और उनके रचनाकार पद्मावत, अखरावट, आखिरी कलाम,

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कबीरदास पर वस्तुनिष्ठ प्रश्न

कबीरदास पर वस्तुनिष्ठ प्रश्न 1)भक्तिकाल का उदय “इस्लामी आक्रमण की प्रतिक्रिया स्वरूप”मानने वाले विद्वान है???ग्रिर्यसनशुक्ल✔हजारी प्रसादमुक्तिबोध 2)आचार्य शुक्लानुसार संत काव्य धारा का प्रथम कवि है???कबीरदास✔नामदेवगुरुनानकदेवरैदास 3)हिन्दी मे भक्ति साहित्य की परंपरा का प्रर्वतन किसे किया—रैदासकबीरदास✔नामदेवदादूदयाल 4)असंगत चुनिऐ—कबीर–जुलाहाजंभनाथ –राजपूतमलूकदास-क्षत्रिय✔सुंदरदास-बनिया 5)कबीर की वचनावली की सबसे प्राचीन प्रति कब लिखी गयी है???1400ई1490ई1504ई1512ई✔ 6)राती रानी बिरहनी,ज्यौ बच्चो को कुंज।कबीर

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घनानंद कवित्त वस्तुनिष्ठ प्रश्न

घनानंद कवित्त वस्तुनिष्ठ प्रश्न 1. ” लट लोल कपोल कलोल करै, कल कंठ बनी जलजावलि द्वै।अंग अंग तरंग उठै दुति की , पहिरे नौ रूप अवै धर च्वै ” में अलंकार है:१. उत्प्रेक्षा २. रूपक३. व्यतिरेक✔४. विरोधाभास। 2. ” प्रेम सदा अति ऊंची लहै सु कहै इहि भांति की बात छकी” किसकी पंक्ति है:१. भूषण२.

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विनय पत्रिका पर वस्तुनिष्ठ प्रश्न

विनय पत्रिका पर वस्तुनिष्ठ प्रश्न 1) तुलसीदास ने विनयपत्रिका की रचना किस उद्देश्य से की है- स्वान्तः सुखायबाहुक पीड़ा से मुक्तिलोक कल्याणकलिकाल निवारण✔ 🌸🌸🌸🌸🌸2) “राम के रूप निहारती जानकी कंकन के नग की परछाहीं ” यह पंक्ति किस ग्रंथ से उधृत है विनयपत्रिकारामचरित मानसकवितावली✔गीतावली 💐💐💐💐💐3) आचार्य शुक्ल ने तुलसी कृत ग्रन्थों की संख्या माना है

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विनय पत्रिका पद का शब्दार्थ सहित व्याख्या

विनय-पत्रिका- श्रीगणेश-स्तुति का शब्दार्थ सहित व्याख्या
राग बिलावल

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कबीर : कबीर ग्रंथावली (आरंभिक 100 पद) सं. श्याम सुन्दर दास

कबीर : कबीर ग्रंथावली (आरंभिक 100 पद) सं. श्याम सुन्दर दास गुरुदेव को अंग सतगुर सवाँन को सगा, सोधी सईं न दाति।हरिजी सवाँन को हितू, हरिजन सईं न जाति॥1॥ बलिहारी गुर आपणैं द्यौं हाड़ी कै बार।जिनि मानिष तैं देवता, करत न लागी बार॥2॥सतगुर की महिमा, अनँत, अनँत किया उपगार।लोचन अनँत उघाड़िया, अनँत दिखावणहार॥3॥ राम नाम

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