काव्यशास्त्र

‘काव्यशास्त्र’ काव्य और साहित्य का दर्शन तथा विज्ञान है।

काव्य लक्षण की विशेषताएँ

प्रस्तुत पोस्ट को पढ़ने के बाद आप : काव्य लक्षण की विशेषताएँ काव्य लक्षण करते समय कहा गया है कि उसमें निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए – निष्कर्ष यह कि ‘अरथ अमित अति आखर थोरे’ (थोड़े शब्दों में अपार अथ) का गुण अर्थात सूत्रबद्धता का गुण ही लक्षण की शक्ति है। काव्य लक्षण के विवेचन में […]

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शब्द शक्ति से तात्पर्य

भारतीय काव्यशास्त्र में शब्द-शक्तियों के विवेचन की एक सुदीर्घ और सुचिंतित परंपरा रही है। आचार्यों ने शब्द और अर्थ-चिंतन की परंपरा में दार्शनिकों के चिंतन के साथ-साथ व्याकरण के आचार्य चिंतन को प्रसंगानुसार ग्रहण किया है। भारतीय शब्द-शक्तियों के ढंग का क्रमबद्ध चिंतन पश्चिम में नहीं हुआ है। हाँ, वहाँ शब्द और अर्थ के विवेधन

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प्रतीक का अर्थ

यहाँ पर प्रतीक का अर्थ बताया गया हैं जो आपके विविध परीक्षाओं के दृष्टिकोण से बेहद उपयोगी साबित हो सकती हैं. प्रतीक का अर्थ प्रतीक का शाब्दिक अर्थ है, “चिन्ह। प्रतीक शब्द की उत्पत्ति और अर्थ को स्पष्ट करते हुए, प्रो० क्षेम ने छायावाद के ‘गौरव-चिन्ह’ नामक अपने ग्रन्थ में प्रतीक शब्द की व्याख्या करते

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अभिव्यंजनावाद पर वस्तुनिष्ठ प्रश्न

अभिव्यञ्जनावाद एक आधुनिकतावादी आन्दोलन था जो 20वीं शताब्दी के आरम्भ में जर्मनी से आरम्भ हुआ था। पहले यह काव्य (पोएट्री) और चित्रकला के क्षेत्र में आया था। अभिव्यंजनावाद के प्रवर्तक बेनेदेत्तो क्रोचे (Benedetto Croce) मूलतः आत्मवादी दार्शनिक हैं। उनका उद्देश्य साहित्य में आत्मा की अन्तः सत्ता स्थापित करना था।। क्रोचे के अनुसार “अंतःप्रज्ञा के क्षणों में आत्मा की

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साहित्य में विविध वाद

साहित्य में विविध वाद उत्तर आधुनिकतावाद अति यथार्थवाद अस्तित्ववाद सरंचनावाद कलावाद प्रतीकवाद मिथक मनोविश्लेषण वाद विखंडनवाद स्वछंदतावाद रुपवाद

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काव्य प्रयोजन

काव्य रचना का उद्देश्य ही काव्य प्रयोजन होता है. संस्कृत आचार्यों के अनुसार काव्य-प्रयोजन भरत मुनि – धर्म्यं यशस्यं आयुष्यं हितं बुद्धि विवर्धनम्।लोको उपदेश जननम् नाट्यमेतद् भविष्यति।। भरत मुनि धर्म, यश, आयु-साधक, हितकर, बुद्धि-वर्धक और लोक उपदेश। (एक स्थान पर इन्होंने पीङित मनुष्य को विश्रांति करना भी काव्य का एक प्रयोजन माना है।) भामह –

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छंद परिचय

छंद शब्द ‘चद्’ धातु से बना है जिसका अर्थ है ‘आह्लादित करना’, ‘खुश करना’। यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की नियमित संख्या के विन्यास से उत्पन्न होता है। इस प्रकार, छंद की परिभाषा होगी ‘वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं’। छंद का सर्वप्रथम

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उत्तर आधुनिकतावाद

आधुनिकतावाद 1970 के दशक में एक क्रांतिकारी फ्रिंज आंदोलन के रूप में शुरू हुआ था, लेकिन 1980 के दशक में ‘डिजाइनर दशक’ का प्रमुख रूप बन गया। ज्वलंत रंग, नाटकीयता और अतिशयोक्ति: सब कुछ एक स्टाइल स्टेटमेंट था। आधुनिकतावाद (Uttar adhuniktavad) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग ल्योतार ने 1979 में किया। परंतु इसको व्यापक रूप में परिभाषित करने का कार्य

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अस्तित्ववाद

अस्तित्ववादी विचार या प्रत्यय की अपेक्षा व्यक्ति के अस्तित्व को अधिक महत्त्व देते हैं। इनके अनुसार सारे विचार या सिद्धांत व्यक्ति की चिंतना के ही परिणाम हैं। पहले चिंतन करने वाला मानव या व्यक्ति अस्तित्व में आया, अतः व्यक्ति अस्तित्व ही प्रमुख है, जबकि विचार या सिद्धांत गौण। उनके विचार से हर व्यक्ति को अपना

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