हमर कतका सुंदर गाँव कक्षा 6 हिन्दी
हमर कतका सुंदर गाँव
हमर कतका सुंदर गाँव, जइसे लछिमी जी के पाँव ।
घर उज्जर लीपे पोते, जेला देख हवेली रोथे
सुग्घर चिकनाये भुइयाँ, चाहे भात परुस लय गुइयाँ ।
अँगना मा तुलसी धरुवा, कोठा मा बइला गरुवा
लकठा मा कोलाबारी, जहँ बोथन साग तरकारी।
ये हर अनपूरना के ठाँव ।
बहिर मा खातू के गड्ढा, जहँ गोबर होथे एकट्ठा ।
धरती ला रसा पियाथे, ओला पीके अन उपजाथे।
ल देखा हमर कोठार, जहँ खरही के गंजे पहार।
गये हे गाड़ा बरछा, जेखर लकठा मा
हवे मदरसा नित जेह कुटे, नित खायें।
जहाँ पक्का घाट बँधाये, चला चला तरइया नहाये ।
ओ हो, करिया सफ्फा जल, जहें फूले हे लाल कँवल ।
लकठा मा हय अमरइया, बनबोइर अउर मकैया ।
फूले हय सरसों पिंवरा, जइसे नवा बहू के लुगरा
जहँ घाम लगे न छाँव ।
आपस मा होथन राजी, जहँ नइये मुकदमाबाजी।
भेदभाव नइ जानन, ऊँच नीच नइ मानन
दुख-सुख मा एक हो जाथी, जइसे एक दिया दू बाती ।
जहँ छल-कपट न दुरॉव, हमर कतका सुंदर गाँव । ।