नरपति नाल्ह कृत बीसलदेव रासो

अष्टछाप के कवि

नरपति नाल्ह कृत बीसलदेव रासो नरपति नाल्ह कवि विग्रहराज चतुर्थ उपनाम बीसलदेव का समकालीन था। कदाचित् यह राजकवि था। इसने ‘बीसलदेवरासो’ नामक एक छोटा सा (100 पृष्ठों का) ग्रंथ लिखा है, जो वीरगीत के रूप में है। ग्रंथ में निर्माणकाल यों दिया है- बारह सै बहोत्तरा मझारि। जैठबदी नवमी बुधवारि।नाल्ह रसायण आरंभइ। शारदा तूठी ब्रह्मकुमारि। … Read more

दलपत विजय रचित खुमानरासो (810-1000)

खुम्माण ने 24 युद्ध किए और वि.सं. 869 से 893 तक राज्य किया। यह समस्त वर्णन ‘दलपतविजय’ नामक किसी कवि के रचित खुमानरासो के आधार पर लिखा गया जान पड़ता है।

हिन्दी साहित्य का काल विभाजन

हिन्दी साहित्य का इतिहास

प्रस्तुत पोस्ट में हिन्दी साहित्य के इतिहास का अध्ययन किया जाएगा। इसके अतिरिक्त हिन्दी साहित्य का काल विभाजन पर विस्तृत चर्चा इस पोस्ट में की गयी है। काल विभाजन व नामकरण के संबंध में विभिन्न विद्वानों और आचार्यों के मत भी इस पोस्ट में दिये गये हैं। हिन्दी साहित्य का काल विभाजन किसी भी साहित्य … Read more

मैथिलकोकिल विद्यापति का साहित्यिक परिचय

मैथिलकोकिल विद्यापति का साहित्यिक परिचय :आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार “ विद्यापति के पद अधिकतर शृंगार के ही हैं जिनमें नायिका और नायक राधा-कृष्ण हैं। विद्यापति शैव थे। इन्होंने इन पदों की रचना शृंगार काव्य की दृष्टि से की है, भक्त के रूप में नहीं। विद्यापति को कृष्णभक्तों  की परंपरा में नहीं समझना चाहिये” । … Read more

सूफी काव्य की विशेषताएँ

सूफी काव्य की विशेषताएँ भक्तिकालीन निर्गुण धारा की यह प्रेममार्गी शाखा कहलायी जाती है । इस काव्य धारा के प्रमुख कवि ‘जायसी’ है । प्रेममार्गी सूफी कवियों ने कल्पित कहानियों के माध्यम से प्रेममार्ग का महत्व प्रतिपादन किया है । इन कवियों ने लौकिक प्रेम के बहाने उस प्रेम तत्व का अभास दिया है । … Read more

संत काव्य की सामान्य विशेषताएँ

हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल को निर्गुण और सगुण भक्ति काव्यधारा इन दो भागों में विभाजित किया जाता है । इस काल में निर्गुण भक्ति पद्धति अत्याधिक प्रभावी रही हैं। निर्गुण भक्तिधारा में दो शाखाएँ विकसित हुई एक ज्ञानाश्रयी शाखा और दुसरी प्रेममार्गी शाखा। ज्ञानाश्रयी शाखा को संत काव्य नाम से संबोधित किया जाता हैं। इसके … Read more

अपभ्रंश भाषा के कवियों का परिचय

हिन्दी साहित्य का आदिकाल

अपभ्रंश भाषा के कवियों का परिचय इस पोस्ट में बताया गया है- अपभ्रंश भाषा के कवियों का परिचय हेमचंद्र- गुजरात के सोलंकी राजा सिद्धराज जयसिंह (संवत् 1150-1199) और उनके भतीजे कुमारपाल (संवत् 1199-1230) के यहाँ हेमचंद्र का बड़ा मान था।ये अपने समय के सबसे प्रसिद्ध जैन आचार्य थे।इन्होंने एक बड़ा भारी व्याकरण ग्रंथ सिद्ध हेमचंद्र … Read more

अपभ्रंश काव्य : हिन्दी साहित्य का इतिहास – पंडित रामचंद्र शुक्ल

हिन्दी साहित्य का आदिकाल

अपभ्रंश काव्य : हिन्दी साहित्य का इतिहास – पंडित रामचंद्र शुक्ल का सार जब से प्राकृत बोलचाल की भाषा न रह गई तभी से अपभ्रंश साहित्य का आविर्भाव समझना चाहिए। पहले जैसे ‘गाथा’ या ‘गाहा’ कहने से प्राकृत का बोध होता था वैसे ही पीछे ‘दोहा’ या दूहा’ कहने से अपभ्रंश या लोक प्रचलित काव्यभाषा … Read more

वीरगाथा काल – आचार्य रामचंद्र शुक्ल

हिन्दी साहित्य का आदिकाल

हमने हिंदी साहित्य की पाठ्य सामग्री को विशेष ध्यान देकर परीक्षा उपयोगी बनाई है। इस पोस्ट को बनाने में हमने ” पंडित आचार्य श्री रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिंदी साहित्य का इतिहास ग्रंथ ” की  पूरी मदद ली है । हमने कोशिश की है कि सार संक्षेप में आपको सामग्री उपलब्ध कराई जाए । फिर भी यदि हमसे कोई आवश्यक जानकारी छूट जाती है या  त्रुटि हो जाती है तो इसके लिए हम क्षमा प्रार्थी रहेंगे। इसके अतिरिक्त आपकी परीक्षा तैयारी व परिणाम के लिए हम जिम्मेदारी नहीं ले रहे हैं।

कामायनी महाकाव्य का परिचय

jaishankar prasad जयशंकर प्रसाद

कामायनी महाकाव्य का परिचय में बता दें कि इसको आधुनिक हिन्दी साहित्य का गौरवग्रन्थ माना गया है। यह रहस्यवाद का प्रथम महाकाव्य है। सृष्टि के रहस्य पर विवाद करने वाली दो मुख्य विचारधाराएँ हैं; एक भारतीय, दूसरी पाश्चात्य। पाश्चात्य विचार धारा जो डारविन के सिद्धान्त पर आधारित है। भारतीय विचार मनस्तत्व प्रधान है। प्रकाशन वर्ष … Read more

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