कृष्णभक्ति शाखा के कवि

राम भक्ति काव्य धारा

कृष्ण भक्ति काव्य धारा से अभिप्राय उस काव्यधारा से है जिसमें कवियों ने भगवान विष्णु के अवतार कृष्ण को आधार बनाकर अपने काव्य ग्रंथों की रचना की। कृष्ण-काव्य-धारा के मुख्य प्रवर्तक हैं- श्री वल्लभाचार्य। उन्होंने निम्बार्क, मध्व और विष्णुस्वामी के आदर्शों को सामने रखकर श्रीकृष्ण का प्रचार किया। कृष्णभक्ति शाखा के कवि सूरदास, नंददास, कृष्णदास, परमानंद, कुंभनदास, … Read more

सगुण भक्ति उद्भव एवं विकास

Hindi Sahity

यहाँ पर सगुण भक्ति उद्भव एवं विकास के बारे में दिया गया हैं जो आपके विविध परीक्षाओं के दृष्टिकोण से बेहद उपयोगी साबित हो सकती हैं. भक्ति हिंदी साहित्य का श्रेष्ठ युग है जिसको जॉर्ज ग्रियर्सन ने स्वर्णकाल, श्यामसुन्दर दास ने स्वर्णयुग, आचार्य राम चंद्र शुक्ल ने भक्ति काल एवं हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लोक … Read more

निर्गुण धारा (ज्ञानाश्रयी शाखा)

राम भक्ति काव्य धारा

ज्ञानाश्रयी शाखा के भक्त-कवि ‘निर्गुणवादी’ थे, और नाम की उपासना करते थे। गुरु का वे बहुत सम्मान करते थे, और जाति-पाति के भेदों को नहीं मानते थे। वैयक्तिक साधना को वह प्रमुखता देते थे। मिथ्या आडंबरों और रूढियों का विरोध करते थे। साधारण जनता पर इन संतों की वाणी का ज़बरदस्त प्रभाव पड़ा। इन संतों … Read more

हिंदी साहित्य इतिहास लेखन की परंपरा

हिन्दी साहित्य का इतिहास

हिन्दी साहित्य का इतिहास लेखन परंपरा  हिंदी में साहित्य का इतिहास लेखन की परम्परा की शुरुआत 19 वीं शताब्दी से ही मानी जाती है , लेकिन कुछ पूर्ववर्ती रचनाएं मिलती हैं जो कालक्रम व विषय-वस्तु का विवेचन न होने के कारण इतिहास ग्रन्थ तो नहीं लेकिन उनमें रचनाकारों का विवरण है । इन्हें वृत्त संग्रह कहा जा सकता है । इनमें प्रमुख हैं –  … Read more

हिन्दी नाटक का विकास

हिन्दी नाटक का विकास भारतेंदु युग (प्रथम उत्थान) द्विवेदी युग (द्वितीय उत्थान) प्रसाद युग (तृतीय उत्थान ) प्रसादोत्तर नाटक (चतुर्थ उत्थान ) समकालीन नाटक ( पंचम उत्थान)

मनोविश्लेषणवाद

हिन्दी काव्यशास्त्र

मनोविश्लेषणवाद का प्रवर्तक फ्रायड को माना जाता है। फ्रायड ने मानव मस्तिष्क के तीन भाग चेतन, अवचेतन और अर्ध-चेतन किये। उन्होंने काम और व्यक्ति की दमित भावनाओं को सर्वाधिक महत्व दिया। फ्रायड के शिष्य एडलर ने काम की जगह अहम को मुख्य माना जबकी उनके एक अन्य शिष्य युंग ने दोनो को एक साथ रखा। … Read more

प्रतीकवाद

हिन्दी काव्यशास्त्र

प्रतीकवाद उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में कविता और अन्य कलाओं में फ्रांसीसी , रूसी और बेल्जियम मूल का कला आंदोलन था , जो मुख्य रूप से प्रकृतिवाद और यथार्थवाद के खिलाफ प्रतिक्रिया के रूप में प्रतीकात्मक छवियों और भाषा के माध्यम से पूर्ण सत्य का प्रतिनिधित्व करने की मांग करता था । आधुनिक काव्य का … Read more

कलावाद

हिन्दी काव्यशास्त्र

कलावाद कला के प्रति एक मत या दृष्टिकोण है। इसके तहत कला कला के लिए कहा गया। ‘कला कला के लिए’ फ्रेंच भाषा के सूत्र वाक्य ‘ल आर्त पोर ल आर्त’ के अंग्रेजी अनुवाद ‘द आर्ट इज फॉर द आर्ट्स सेक’ का हिन्दी अनुवाद है। कलावाद के तहत साहित्य में उसके कलापक्ष पर अधिक बल … Read more

अस्तित्ववाद

हिन्दी काव्यशास्त्र

अस्तित्ववादी विचार या प्रत्यय की अपेक्षा व्यक्ति के अस्तित्व को अधिक महत्त्व देते हैं। इनके अनुसार सारे विचार या सिद्धांत व्यक्ति की चिंतना के ही परिणाम हैं। पहले चिंतन करने वाला मानव या व्यक्ति अस्तित्व में आया, अतः व्यक्ति अस्तित्व ही प्रमुख है, जबकि विचार या सिद्धांत गौण। उनके विचार से हर व्यक्ति को अपना … Read more

उत्तर आधुनिकतावाद

हिन्दी काव्यशास्त्र

धुनिकतावाद 1970 के दशक में एक क्रांतिकारी फ्रिंज आंदोलन के रूप में शुरू हुआ था, लेकिन 1980 के दशक में ‘डिजाइनर दशक’ का प्रमुख रूप बन गया। ज्वलंत रंग, नाटकीयता और अतिशयोक्ति: सब कुछ एक स्टाइल स्टेटमेंट था। आधुनिकतावाद (Uttar adhuniktavad) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग ल्योतार ने 1979 में किया। परंतु इसको व्यापक रूप में परिभाषित करने का कार्य … Read more

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